खुदकुशी की कोशिश से करोड़पति उद्यमी और पद्म सम्मान तक, कल्पना सरोज का जीवन है प्रेरणा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 25-11-2021
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पद्मश्री सम्मान लेतीं कल्पना सरोज
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पद्मश्री सम्मान लेतीं कल्पना सरोज

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

गरीबी, घरेलू हिंसा और गैर-बराबरी से जूझने वाली एक महिला, जिसने इन सबसे परेशान होकर खुदकुशी की कोशिश की हो, और जो करोड़ों डॉलर की कंपनी की सीईओ बन जाए, यह परीकथाओं का हिस्सा लगता है. लेकिन यह सच है. वह महिला हैं कल्पना सरोज.

उनकी जिंदगी बेशक किसी हिंदी फिल्म जैसी नाटकीयता और उतार-चढ़ाव से भरी रही है जिसमें उनके रास्ते में जाने कितनी बाधाएं आईं, लेकिन उसकी परिणति आखिरकार सुखद रही है.

कल्पना सरोज की कहानी में वह सब कुछ है जो किसी भी भारतीय महिला को प्रेरणा दे सकता है. शीर्ष पर पहुंचने के लिए कल्पना सरोज ने जाने कितनी बाधाएं पार की हैं.

महाराष्ट्र के अकोला के छोटे से गांव रोपड़खेड़ा में जब 1961 में कल्पना पैदा हुईं तब उनकी जिंदगी किसी भी दलित हिंदुस्तानी लड़की जैसा ही था. उनको स्कूल में दबंगई का सामना करना पड़ा, और महज 12 साल की उम्र में उनकी शादी करा दी गई.

आवाज- द वॉयस के साथ बातचीत में कल्पना कहती हैं, “उस जमाने में मां-बाप की जिम्मेदारी होती थी कि लड़की है तो उसकी शादी करा दो. और लड़कियों से बस घर, बच्चे, चूल्हा-चौकी ही संभालने की उम्मीद की जाती थी.”

कल्पना ने भी अपने विवाह के बाद उसे अपनी नियति मान लिया और घर-बार संभालने लगीं. वह खुद से उम्र में दस साल बड़े पति के साथ रहने के लिए मुंबई आ गई थीं और उन्हें झटका लगा जब उन्होंने देखा कि उनको स्लम में रहना होगा. लेकिन समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं थी. उनके जेठ और जेठानी ने उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया था. वे दोनों कल्पना की तकरीबन रोज पिटाई करते थे और उनकी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से कल्पना अंदर से टूट गई थीं.

उद्यमशीलता को सम्मानः अतीत को पीछे छोड़कर उद्यमी के रूप में सम्मानित होती कल्पना सरोज


वह कहती हैं, “जब जुल्म काफी बढ़ गया और शादी के छह महीने के बाद बाबा मुझे देखने आए तो मुझे पहचान ही नहीं पाए. तब वह मुझे साथ लेकर चले गए और पढ़ाई शुरू करने को कहा.”

लेकिन, उनके समाज को बेटी का मायके लौटना ज्यादा पसंद नहीं आया. ऐसे में यह दबाव उनके मां-बाप को भी झेलना पड़ा. कल्पना कहती हैं, “उस वक्त समाज ने न सिर्फ मुझे टॉर्चर किया बल्कि मेरे मां-बाबा को भी बहुत कुछ झेलना पड़ा, क्योंकि समाज नहीं चाहता था कि शादी-शुदा लड़की मायके में आकर रहे. लेकिन उस यातना से मेरे मन में ख्याल आया कि मुझे मर जाना चाहिए.”


इस फ़ैसले के साथ ही कल्पना ने कीटनाशकों के तीन बोतल पी डाले. लेकिन उनकी चाची सही वक्त पर उनके कमरे में पहुंच गई और कल्पना की जान बचा ली गई. लेकिन इस नई जिंदगी ने कल्पना के लिए जीने की नई चाहत भी पैदा की, और अब गांववालों की टिप्पणियों और फब्तियों को उन्होंने अपने लिए एक चुनौती की तरह लिया.


वह कहती हैं, “मैंने सोचा कि अब इनको जीकर दिखाऊंगी. करके दिखाने के लिए न तो मेरे पास शिक्षा थी, न कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि थी. न कारोबार की समझ थी. ऐसे में जो भी करना था अपने बूते पर ही करना था.”

अब कल्पना ने एक सिलाई मशीन से अपने कारोबारी सफर की शुरुआत की, जिसमें उनका मकसद अपने लिए रोजगार और दिन भर के खर्चे निकालना भर था. कल्पना कहती हैं, “सिलाई को ही मैंने अपनी जिंदगी का सबकुछ बना लिया. और फिर उस काम को आगे बढ़ाने के लिए पचास हजार का कर्ज लेकर एक बूटीक खोलने की कोशिश की. इसके साथ ही मैंने फर्नीचर का काम भी शुरू किया.”

लेकिन, अपनी मेहनत और कामयाब होने की जिद से कल्पना बस आगे बढ़ती रहीं. आज वह करोड़पति हैं और इसके लिए उन्होंने बहुत सारे काम किए. लेकिन, उनके काम के केंद्र में रोजगार पैदा करना रहा. वह कहती हैं, “मैंने भूख और प्यास को नजदीक से देखा था, मैं जानती थी कि बेरोजगारी क्या होती है. मैं चाहती थी कि उस जमाने में जब नौकरियां नहीं थीं, तो मैंने सबको लोन दिलवाने की कोशिश की.”

समाज का भी खयालः कल्पना सरोज अपने गांव को नियमित रूप से जाती हैं


खासतौर, जब कल्पना सरोज ने बिल्डर बनने को कोशिश की तो उनकी हत्या के प्रयास भी हुए. वह कहती हैं, “मैंने मौत को नजदीक से देखा ही था इसलिए मुझे इसका कोई डर नहीं था.”लेकिन तब के पुलिस कमिश्नर भुजंगराव मोहिते ने उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने की पेशकश की, लेकिन सुरक्षा की बजाए कल्पना ने रिवॉल्वर का लाइसेंस मांगा और वह उन्हें एक ही दिन में मिल भी गया.

लेकिन, एक और काम उनका काफी चर्चित रहा था. खैरलांजी में दलित परिवार की बलात्कार के बाद हत्या का मामला काफी चर्चित रहा था. ऐसे में कल्पना ने उस कहानी को दुनिया के सामने लाने के लिए फिल्म कंपनी बना डाली. कल्पना कहती हैं, “यह हादसा पूरी दुनिया में चर्चित हुआ था. लेकिन उस स्टोरी को फिल्म के रूप में दर्शकों तक ले जाना चाहती थी ताकि दुनिया को पता लगे कि दलितों पर किस तरह से जुल्म होते हैं. जिन्हें रोका नहीं गया और जागरूकता नहीं फैली तो समस्या कभी खत्म नहीं होगी.”


आज कल्पना कामयाबी के केंद्र में हैं और उनकी गिनती महाराष्ट्र के बड़े कारोबारियों में होती है. अपने पेसेवर अंदाज के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. छोटे से गांव की इस असहाय रही महिला की कंपनी के नाम पर मुंबई जैसे शहर में दो सड़कों का नाम रखा जा चुका है.


पहले उन्हें समुदाय के नाम पर होने वाली गैर-बराबरी या भेदभाव से गुस्सा आता था लेकिन अब वह उस परिदृश्य को बदलने की ठान ली है. वह कहती हैं, “आज की लड़कियों को बस खुद पर भरोसा रखने की जरूरत है कि हम यह कर सकते हैं और हम करके रहेंगे, फिर हर मुश्किल आसान होती जाएगी.”

बाद में जाकर कल्पना ने फिर से शादी की और अब उनके दो बच्चे हैं.

वह कहती हैं, “तकनीक ने पूरी दुनिया बदल दी है. अब हर वर्ग के उत्थान के लिए सरकार भी सामने है तो आगे क्यों नहीं आना चाहिए. लड़कियां अच्छा कर रही हैं, पर अब बेशक, पहले जैसी मुश्किलें नहीं रही हैं. पर, लड़कियों को अच्छे से तालीम दिए जाने की जरूरत है. तकलीफों से हार मानना ठीक नहीं है.”

फर्श से अर्श तकः अपनी मेहनत के बूते कल्पना ने एक दिवालिया कंपनी को नफे में ला दिया है


अब कल्पना मेटल इंजीनियरिंग कंपनी कमानी ट्यूब्स चला रही हैं, जो कभी भारी कर्जे में डूबा था. दिवालिया हो रही इस कंपनी को उन्होंने नफे में चलने वाले संस्थान में बदल दिया है. कल्पना ने हजारों लोगों को रोजगार दिया है, जिसमें हर पृष्ठभूमि और हर जाति के लोग हैं. कल्पना सरोज नई पहलें करने में विश्वास रखती हैं और उन्होंने हाल ही में अपने गांव में पांच एकड़ जमीन में चंदन की खेती शुरू की है. वह कहती हैं, “विचार नया होना चाहिए. चंदन की खेती ऐसी ही है. इसी तरह फूल, लेमन ग्रास जैसी फसलों से फायदा लिया जा सकता है. महाराष्ट्र में लेवेंडर जैसी फसलों से महिलाएं अच्छा कमा रही हैं. कुल मिलाकर महिलाओं को आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए.”

कल्पना जोर देती हैं कि तकनीक महिलाओं को अधिक ताकतवर बना देता है. इसलिए तकनी का फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिए.

कल्पना सरोज नियमित तौर पर अपने गांव जाती हैं और वहां समाजसेवा के काम किया करती हैं. उनकी आखिरी टिप्पणी काबिलेगौर है, “हमारी अपनी जिम्मेदारी है कि हम न सिर्फ अपनी तरक्की करें बल्कि अपने देश की तरक्की का हिस्सा बनें. हमसब एकजुट होकर अपने देश की ताकत बनें.”