फैशन स्टाइलिस्ट से मेंटल हेल्थ वॉरियर बनीं सहर हाशमी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 22-07-2025
Sahar Hashmi's 2779 km ride from Delhi to Kashmir: A unique campaign for mental health awareness
Sahar Hashmi's 2779 km ride from Delhi to Kashmir: A unique campaign for mental health awareness

 

मलिक असरग हाशमी / नई दिल्ली

सहर हाशमी की जिंदगी की कहानी साहस, संघर्ष और बदलाव की अनूठी मिसाल है. 29 वर्षीय सहर, जिन्होंने एक समय डिप्रेशन और बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (बीपीडी) जैसी मानसिक बीमारियों से जंग लड़ी, आज भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता फैलाने का एक बड़ा अभियान चला रही हैं. अप्रैल 2025 में उन्होंने ब्रेकिंग स्टिग्मा: वन माइल एट अ टाइम नामक एक विशेष कैंपेन के तहत दिल्ली से कश्मीर तक 2779 किलोमीटर लंबी बाइक राइड पूरी की.

sइस 20 दिन की यात्रा के दौरान उन्होंने 21 शहरों में 30 से अधिक वर्कशॉप आयोजित कीं और 3,500 से ज्यादा लोगों तक पहुँचकर मानसिक बीमारियों से जुड़े मिथकों और सामाजिक कलंक को तोड़ने का प्रयास किया. यह कैंपेन इतना प्रभावशाली रहा कि इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने उन्हें मेंटल हेल्थ पर सबसे अधिक सेमिनार आयोजित करने के लिए रिकॉर्ड टाइटल से सम्मानित किया.

सहर की यह प्रेरणादायक यात्रा उनकी निजी जिंदगी के कठिन अनुभवों से निकली. वे कहती हैं, “मैंने जब अपने जीवन के सबसे अंधेरे दौर में डिप्रेशन और बीपीडी का सामना किया, तब महसूस किया कि मानसिक स्वास्थ्य पर समाज में कितनी चुप्पी है.

अगर उस समय कोई खुलकर इस बारे में बात करता, तो शायद मैं जल्दी ठीक हो जाती। इसी वजह से मैंने ठान लिया कि अब कोई युवा अकेला महसूस न करे।” इस यात्रा में उनके साथ अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता देव देसाई भी थे, जो मानसिक स्वास्थ्य पर संवाद बनाने और सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं को जागरूक करने में सहयोग कर रहे थे.

इस अभियान की टीम छोटी लेकिन बेहद मजबूत थी. सहर के साथ कश्मीर के बराजुदीन, फिल्ममेकर सुमन्यु शुक्ला और सिंगर नाज़नीन शेख भी शामिल थे. यात्रा के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. 20 अप्रैल को रामबन जिले में बादल फटने के कारण लैंडस्लाइड हुआ और जम्मू-श्रीनगर हाईवे कई दिनों तक बंद रहा.

22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, जिससे उनका सफर और कठिन हो गया. 2 मई को एक बार फिर रामबन जिले में लैंडस्लाइड के कारण हाईवे बंद कर दिया गया. खतरनाक पहाड़ी रास्तों, कठोर मौसम और सुरक्षा खतरों के बावजूद सहर और उनकी टीम ने हार नहीं मानी. उनका कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता के लिए यह कठिन यात्रा करना भी उनके लिए एक सम्मान की बात है.

कोविड महामारी के दौरान सहर और देव ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक बड़ी पहल की थी. उन्होंने 90 मनोचिकित्सकों, काउंसलरों और थेरेपिस्ट्स की एक टीम तैयार की, जो फ्री ऑनलाइन काउंसलिंग प्रदान करती थी. आज यह टीम 140 से अधिक पेशेवरों की है और अब तक 300 से अधिक लोगों की मदद कर चुकी है.

sकैंपेन का विश्लेषण सीएसआईआर-नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च के रिटायर वैज्ञानिक प्रोफेसर सुरजीत डबास ने किया और पाया कि लगभग 42.30 प्रतिशत लोग ऐसे मिले जिनका कोई करीबी मानसिक बीमारी से जूझ रहा था.

सहर की इस यात्रा को सोशल मीडिया पर जबरदस्त सराहना मिली. एक यूज़र ने लिखा, “युवा सहर का यह साहसिक प्रयास काबिले तारीफ है. यात्रा से पहले और यात्रा के बाद की सहर में स्पष्ट बदलाव है.” वहीं दूसरे यूज़र ने कहा, “अपनी निजी समस्याओं को सार्वजनिक रूप से साझा करने का साहस बहुत कम लोगों में होता है. सहर ने यह कर दिखाया और हजारों लोगों को प्रेरित किया.”

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति चिंताजनक है. आंकड़ों के अनुसार, देश में 11 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं और हर साल लगभग 1 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं. 70-92 प्रतिशत लोग तो इलाज से भी वंचित रह जाते हैं. ऐसे में सहर जैसी कार्यकर्ताओं की पहल समाज में नई रोशनी लाती है.

सहर एक मोटिवेशनल स्पीकर और फैशन स्टाइलिस्ट हैं, लेकिन उनकी असली पहचान मानसिक स्वास्थ्य की सशक्त योद्धा के रूप में है. वे कहती हैं, “अगर हम मानसिक स्वास्थ्य पर चुप रहेंगे तो यह मौन समाज को धीरे-धीरे खा जाएगा, हमें खुलकर इस विषय पर बात करनी होगी.”

 

उनके भविष्य की योजनाओं में मानसिक स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेटवर्क बनाना शामिल है. वे चाहती हैं कि युवाओं को मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड की तरह प्रशिक्षित किया जाए और स्कूलों व कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रम को शामिल किया जाए.

 

सहर हाशमी की यह राइड न केवल एक व्यक्तिगत जीत है बल्कि पूरे समाज के लिए सीख है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संवाद की शुरुआत करना कितना आवश्यक है. उन्होंने साबित कर दिया कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो व्यक्तिगत पीड़ा को भी समाज की सेवा में बदला जा सकता है.