सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर की सुपुत्री, अप्रतिम प्रतिभावान सिनेमा लेखिका डॉ.अचला नागर के साफगो और बेबाक मिज़ाज का अंदाज़ा उनसे टेलीफोनिक इंटरव्यू के दौरान हुआ. मेरे केवल एक बार फोन करके बातचीत के लिए समय मांगने पर उन्होंने कहा, "नौजवान कलमकारों से बातचीत करने और उनके साथ अपने जीवन के अनुभवों को साझा करने में मुझे लगता है जैसे ताजा हवा का कोइ झोंका मुझे छू गया हो."
पढ़िए साहित्यकार डॉ. अचला नागर से डा. रख़्शंदा रूही मेहदी की खास बातचीत के मुख्य अंशः
सवालः महान साहित्यकार अमृत लाल नागर जी से साहित्य विरासत में मिला आपको?
डॉ. अचला नागरःबाबूजी ने विरासत में हमें संस्कार दिए. गृह समाज नाम की संस्था घर में ही बनाई थी. महात्मा गांधी की फोटो लगा कर उनको अध्यक्ष बनाया गया था. हमें गांधी जी की शिक्षाएं दी जाती थीं. मानवता हमारा धर्म है और सत्य पथ पर चलना हमारी जीवन शैली.
सवालः आपने पहली कहानी कैसे और कब लिखी?
डॉ. अचला नागरः 'पाचू भूखा है, बच्चा भूख मर न जाए ... बचपन में बाबूजी के उपन्यास 'महाकाल' में पोचू का किरदार पढ़कर मन विचलित हुआ. मुझे नींद नहीं आई. पहली तीव्र संवेदना कहानी लिखने का सबब बनी साढ़े चार साल की उम्र में लिखना सीखा. आठ साल की उम्र में पहली कहानी ‘देश का दीपक’छपी. बाबूजी रात की शिफ्ट में रेडियो में काम करते थे मैं उनको चिट्ठियां लिखती और उनके तकिए के नीचे रख देती थी.
सवालः रंगमंच की ओर आप कैसे आई?
डॉ. अचला नागरः आगरा में भाई शरद के साथ खेल में नाटक खेलती थी. रामू नौकर की भूमिका में मेहमानों को बुलावा देने जाती और चवन्नी-अठन्नी जमा करके मिठाई लाती थी और खुद खा जाती थी. विवाह के बाद मथुरा में रंगमंच की दुनिया में कदम रखा.
नवंबर 1971में वह मथुरा की आकाशवाणी सेवा से बतौर उद्घोषिका जुड़ी. रेडियो के चर्चित कार्यक्रम ‘हवा महल’की उद्घोषिका थी मैं 13बरस तक.15मिनट के इस कार्यक्रम के लिए कई नामचीन लेखकों से नाटक लिखवाए और उनके साक्षात्कार किए. तब आगरा में आकाशवाणी नहीं था.
मथुरा आकाशवाणी से ही भरतपुर, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, एटा और मैनपुरी संचालित होता था. जनपद दर्पण कार्यक्रम शुरू किया. हर माह, एक दिन, एक घंटे का ये कार्यक्रम होता और किसी न किसी जिले की बेहतरीन स्टोरी सुनाती. उन सुंदर दिनों की स्मृतियां आज भी मेरे मन में हैं.
सवालः फिल्म पटकथा लेखन में आना आपका सपना था ?
डॉ. अचला नागरः नहीं. ये अचानक हुआ. वह रेडियो और पत्रिकाओं का दौर था. 'भागापुरी' पत्रिका में एक खबर पढ़ी कि संजय खान और जीनत अमान का निकाह हुआ और फिर तलाक हो गया और एक शब्द 'हलाला' भी पढ़ा. मेरे बाबूजी के खास जानकार बाबूखान तबलावादक थे मैंने उनसे पूछा 'हलाला' क्या होता है ?
उन्होंने मुझे बताया तो मैं बहुत रोई और एक कहानी का जन्म हुआ. यह कहानी 'तोहफा' नाम से छपी थी. बी.आर. चोपड़ा जी का इंटरव्यू लेना था मुझे. मैं 'इंसाफ का तराज’के सैट पर पहुंची. मैंने डरते-डरते कहा, मैं कहानियां लिखती हूं... मेरा एक रेडियो प्ले है, हाथ से लिखा हुआ... पापा जी (बी.आर. चोपड़ा) उर्दू में लिखा पढ़ते थे. मेरे कांपते हाथ से पेपर लेकर बोले "अच्छा, तीन दिन बाद फोन करना". गिन-गिनकर तीन दिन गुज़ारे. कई बार फ़ोन लगाया और घबराहट में काट दिया. महमूद साहब से हमारे घरेलू रिश्ते थे. मैं उनके घर गई तो पता चला पापा जी आए हुए हैं. देखते ही पूछा, "फोन क्यों नहीं किया." मैं स्तब्ध थी.
पंडित नरंद्र शर्मा चाचा जी वहां बैठे थे. उन्होंने बताया ये नागर जी की बेटी है अचला नागर.
"मैंने कहानी अपनी बीवी को सुनाई में इस पर फिल्म बनाउंगा. इधर आइए, आपने क्यों नहीं बताया कि आप किसकी बेटी है? मैं ‘तोहफा’फीचर फिल्म बनाऊंगा, पापा जी ने नर्मी से कहा.
"आपको कहानी पसंद न आती तो मैं क्या कहती. बस इसी कारण बाबूजी का नाम नहीं लिया."पापा जी सहजता से मुस्कराए. पापा जी ने फिल्म का नाम "तलाक, तलाक, तलाक" रखा था. फिर ‘निकाह’नाम से फिल्म बनी, सलमा आगा अभिनीत फिल्म सुपर-डुपर हिट हुई.
पटकथा लिखते समय पापा (चोपड़ाजी) ने मेरी भरपूर हौसलाअफजाई की. कहते थे कि तीन सीन लिखकर लाओ, ज़्यादा नहीं. सारे यूनिट के सामने मुझे शाबाशी इस प्रकार देते, "अरे बेटी! बिल्कुल ऐसा सीन लिखा है जैसे बी.आर. चोपड़ा ने..." यह फिल्म बहुत चर्चित हुई थी. करीब चार दशक गुज़रने पर भी लोगों को ‘निकाह’फिल्म याद है मुझे अब भी लोग निकाह फिल्म की प्रशंसा के फोन करते हैं.
सवालः फेमिनिज्म आपके विचार में?
डॉ. अचला नागरः 35 साल पहले ही मैंने यह बात निकाह में लिख दी थी कि औरत, पुरुष की परछाईं नहीं है. आज महिलाएं फैमिनिज्म की बातें करती रह जाती है, महिला सशक्तिकरण पुस्तकों एवं नारों तक सीमित है. आज अगर मैं भी सिर्फ कहती रहती तो यहां तक नहीं पहुंचती.
सवालः तलाक मुस्लिम समुदाय की कुप्रथा है?
डॉ. अचला नागरः तलाक किसी धर्म से जुड़ा मुद्दा नहीं है. हर धर्म की महिला को सुरक्षा, सम्मान और प्यार की जरूरत है. धर्म इनसान से बड़ा नहीं है. कुछ समय पहले केन्द्र सरकार ने तीन तलाक प्रथा के खिलाफ जो कानून बनाया है उसके लिए सबसे पहली आवाज निकाह' फिल्म में उठाई गई.
सवालः साहित्य और कला में कौन अधिक प्रिय है?
डॉ. अचला नागरः साहित्य मेरे खून में प्रवाहित है. रेडियो मेरी पहली कमाई 5 रू. का जरिया बना. फिल्मी पटकथा लिखने के दौरान रेडियो के लिए समय कम मिल पाता था, इसलिए 1994 में विविध भारती से प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव के पद से इस्तीफा दे दिया.
‘साहित्य का दामन मत छोड़ना' बाबूजी ने कहा था. 'निकाह' के बाद ‘आखिर क्यों’,‘बाबुल’, ‘ईश्वर’, ‘नगीना’, ‘निगाहें’, ‘अमीरी-गरीबी’, ‘सैलाब’, ‘मेरा पति सिर्फ मेरा है’,‘सदा सुहागन’,और ‘बागवान’ आदि 32 फिल्में लिखी, जिनमें ज्यादातर सुपरहिट रही.
सवालः पटकथा लिखते समय विषयों का चयन किस आधार पर करती है?
डॉ. अचला नागरः बाबूजी कहते थे कि किसी भी फिल्म को हिट कराने में सबसे बड़ा रोल उस अवाम का होता है, जो सस्ती दरों के टिकट खरीदकर फिल्में देखती है, इसलिए फिल्म लिखते समय उन साधारण लोगों की समस्याओं और पीड़ाओं को ध्यान में रखना.
अतः मैंने सामान्य जन की संवेदनाओं पर विशेष रूप से फिल्मी कहानियां लिखीं. बड़ी रचना वही है, जिसे आम आदमी आपबीती समझे. किसी भी विषय पर कलम चलाने से पहले उस पर पूरी तरह शोध कर लेना में आवश्यक मानती हूं. पाठक हमारे लिखे पर आंख मूंदकर भरोसा कर लेता है, इसलिए उनके साथ किसी तरह का धोखा नहीं होना चाहिए.
सवालः वर्तमान जगत में काफी खुलापन है. आपके समय कैसा माहौल था?
डॉ. अचला नागरः आजकल लड़कियां खुद एक वस्तु बन गई हैं. मुझसे मुंबई के प्रोड्यूसर कहते थे, अचला 9 बजे आओ. जो लिखा हो, वो सुनाओ, तो मैं सीधे मना नहीं करती थी, बल्कि कहती थी कि दिनभर शूटिंग के थके-हारे सुनेंगे मजा नहीं आएगा. इसलिए किसी छुट्टी का रखिए, आराम दोपहर में आती हूं और बात टल जाती थी.
इंडस्ट्री कभी जबरदस्ती नहीं होती है, बल्कि आजकल लड़कियां खुलकर कम्प्रोमाइज कर रही हैं. जिसको कास्टिंग काउच में जाना है तो जाएगा, लेकिन इस तरह कोई तरक्की नहीं कर सकता. मुझे आज भी जब इस तरह कार्यक्रमों में बुलाया जाता है तो मैं नहीं जाती. फिल्मों में डबल मीनिंग और अश्लीलता का प्रचलन आम है. मैं बोल्ड लिख सकती हूं लेकिन अश्लील नहीं लिखूंगी. पुरुष की संवेदना पर लिखूंगी, लेकिन गालियां नहीं लिखूंगी.
सवालः आज नारी अपने अस्तित्व को मनवाने में सफल है?
डॉ. अचला नागरः नारी कल नारी थी, आज नारी है. निकाह फिल्म शुरुआत में मैंने कहा था, मैं औरत हूं, हव्वा आसमान से भेजी गई नूर की मुकद्दस बूंद, जो सदियों से इस सरजमीन को सींचती आई है. मैंने प्यार के रंग-बिरंगे खिलाकर इस दुनिया जन्नत बनाया, मैंने अपनी कोख से मर्द को जन्म दिया, मां बनकर उसे पांव चलना सिखाया और बहन बनकर उसके बालकपन को चुलबुली कहानियां दीं.
महबूबा बनकर उसकी जिंदगी को रेशमी नगमों में ढाला तो शरीक-ए-हयात बनकर अपनी जवानी के अनमोल मोती लुटाकर उसके रात और दिन सजाए. यह करते हुए अपना वजूद खोकर मैं औरत नूर की वह बूंद मर्द में पूरी की पूरी तरह समा गई.
सवालः आपके लेखन को विराम कब तक है?
डॉ. अचला नागरः कह नहीं सकती,पर एक काम अधूरा है. पर मन नहीं होता अब लिखने का. मेरे बड़े संदीपन ने अपनी मौत से तीन-चार घंटे पहले ही मुझसे फोन पर कहा था "अम्मा अब अपने रचनात्मक सफर पर संस्मरण लिखिए.” रेडियो, रंगमंच, सिनेमा, कथा, मेरी अभिव्यक्ति के विभिन्न रूप हैं. मैं इन रूपों को अवश्य संस्मरण का आकार दूंगी.
रचनाएं व सम्मान :
साहित्यः 'निहारिका', 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान', 'धर्मयुग', 'सारिका', 'कादम्बिनी' आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित.
प्रकाशित प्रमुख कृतियां: कहानी-संग्रह 'नायक-खलनायक', 'बोल मेरी मछली', 'कथा-सागर की मछलियाँ'
संस्मरणात्मक पुस्तकः अमृतलाल नागर की बाबूजी बेटाजी एंड कम्पनी'
उपन्यासः 'छल', 'मंगला से शयन तक' 'देह'
रंगमंच नाटक: बाइस्कोप वाला चितचोर
फिल्मः निकाह, आखिर क्यों, ईश्वर, नगीना, बागबान, बाबुल,निगाहें,अमीरी-गरीबी,सैलाब, मेरा पति सिर्फ मेरा है, सदा सुहागन और बागवान आदि 32फिल्में
टीवीः विभिन्न धारावाहिकों के लगभग चार हजार एपिसोड
साहित्य सम्मानः हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा 'यशपाल अनुशंसा पुरस्कार (1987). हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा "साहित्य भूषण पुरस्कार (2003). ब्रज कला केन्द्र द्वारा ब्रज विभूति सम्मान (2000). 'उत्तराधिकार अमृतलाल नागर, दुष्यन्त कुमार पांडुलिपि संग्रहालय, भोपाल (2007) 'सारस्वत सम्मान आशीर्वाद (2009) हिन्दी-उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी, उत्तर प्रदेश द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान' (2009) पं. अमृतलाल नागर एवं रमई काका स्मृति अवध सम्मान (2009) "मालवा भारत हिन्दी साहित्य सम्मान (2010) महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी द्वारा सुब्रमण्यम भारती हिन्दी सेतु विशिष्ट सेवा पुरस्कार (2010-2011) परिवार पुरस्कार (2010)
फिल्म-सम्मानः फिल्म निकाह' के लिए 1983में सर्वश्रेष्ठ संवाद का फिल्मफेयर अवार्ड
अन्यः उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट अवार्ड', 'सलाम बाम्बे अवार्ड' गीत', 'आशीर्वाद सम्मान' आखिर क्यों', 'बलराज साहनी सम्मान हिमाचल प्रदेश', 'नामी रिपोर्टर अवार्ड' 'बाबुल', 'दादासाहेब फाल्के अकादमी सम्मान आदि .
टेलीविजन सम्मानः अष्टान पुरस्कार धारावाहिक सम्बन्ध के लिए और 'मदर्स अचीवर्स अवार्ड' (ईटीवी चैनल).