श्रीनगर में सालों बाद पारंपरिक मार्ग पर निकली मुहर्रम की जुलूस, शांति और श्रद्धा के साथ हुआ आयोजन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-07-2025
After many years, Muharram procession was taken out on the traditional route in Srinagar, it was organised with peace and devotion
After many years, Muharram procession was taken out on the traditional route in Srinagar, it was organised with peace and devotion

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

कश्मीर घाटी में शुक्रवार को एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला जब शिया समुदाय ने मुहर्रम के आठवें दिन की याद में पारंपरिक मार्ग पर जुलूस निकाला. यह लगातार तीसरा वर्ष है जब प्रशासन ने इस धार्मिक जुलूस को श्रीनगर के पारंपरिक और ऐतिहासिक मार्ग से गुजरने की अनुमति दी। जुलूस पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा और इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए.

यह जुलूस शुक्रवार तड़के श्रीनगर के गुरु बाजार इलाके से शुरू हुआ और जहांगीर चौक तथा मौलाना आज़ाद रोड होते हुए डलगेट तक पहुंचा. यह मार्ग कश्मीर में वर्षों से मुहर्रम की परंपरा का हिस्सा रहा है, लेकिन 1990 के दशक में आतंकवाद की शुरुआत के बाद इस पर रोक लगा दी गई थी.
 
 
प्रशासन ने इस बार भी जुलूस को अनुमति देने के साथ-साथ कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की थी। सुरक्षा बलों की तैनाती के अलावा, यातायात विभाग ने पहले से एक एडवाइजरी जारी कर दी थी, जिससे शहर के आम नागरिकों को जुलूस के मार्ग और समय की जानकारी मिल सके और आम जनजीवन पर इसका असर न पड़े.
 
प्रशासन ने श्रद्धालुओं को एक निर्धारित समयावधि में जुलूस निकालने की इजाजत दी थी, ताकि वह शांतिपूर्वक और अनुशासित रूप से संपन्न हो सके. सुबह-सुबह हजारों लोग गुरु बाजार में इकट्ठा हुए, और जैसे ही जुलूस शुरू हुआ, वातावरण पूरी तरह धार्मिक भावनाओं से भर गया. श्रद्धालु काले कपड़े पहने हुए थे, हाथों में अलम लिए और मातम करते हुए चल रहे थे. कुछ लोग “या हुसैन” के नारे लगाते हुए, छाती पीटते हुए शोक व्यक्त कर रहे थे.
 
 
कई जगहों पर स्थानीय स्वयंसेवक श्रद्धालुओं को पानी पिलाते नजर आए. साथ ही, हीट वेव को देखते हुए प्रशासन द्वारा जगह-जगह वॉटर स्प्रिंकलर्स भी लगाए गए थे, जिससे श्रद्धालुओं को गर्मी से राहत मिल सके.
 
मुहर्रम का आठवां दिन शिया मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यह दिन करबला में हुए ऐतिहासिक संघर्ष और इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है. इमाम हुसैन, जो पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे थे, उन्हें 680 ईस्वी में करबला के मैदान में अन्याय और सत्ता के खिलाफ लड़ते हुए अपने परिजनों और साथियों सहित शहीद कर दिया गया था. यह घटना इस्लामी इतिहास में बलिदान, न्याय और सत्य के प्रतीक के रूप में जानी जाती है.
 
1990 के बाद, जब कश्मीर में आतंकवाद ने पैर पसारे, तब प्रशासन को इस बात की आशंका थी कि इस तरह के बड़े धार्मिक आयोजनों का सेपराटिस्ट (अलगाववादी) तत्व दुरुपयोग कर सकते हैं. इसी कारण मुहर्रम की बड़ी जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और केवल कुछ छोटे स्तर के स्थानीय आयोजन ही सीमित दायरे में हो सकते थे.
 
 
हालांकि, वर्ष 2023 से एक नई शुरुआत देखने को मिली जब प्रशासन ने प्रतिबंध हटाते हुए पारंपरिक मार्ग पर जुलूस की अनुमति दी. यह न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, बल्कि घाटी में सांस्कृतिक पुनरुत्थान और सामाजिक सामंजस्य की भावना का प्रतीक भी बना.
 
इस बार भी जुलूस को अनुमति मिलने से शिया समुदाय में हर्ष था. सामाजिक कार्यकर्ता और धार्मिक नेताओं ने प्रशासन के इस कदम की सराहना की और इसे धार्मिक समावेशिता और लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत बताया.
 
 
जुलूस में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं और बच्चों की भी भागीदारी देखने को मिली। महिलाएं अलग कतारों में चलते हुए मातम में शामिल हुईं। कुछ ने हाथों में इमाम हुसैन की याद में बने बैनर उठाए हुए थे, जिन पर संदेश लिखे थे – "हुसैन की कुर्बानी इंसानियत की जीत है", "यज़ीदियत के खिलाफ सच्चाई का प्रतीक: करबला".
 
समाज के कई वर्गों ने इस आयोजन को धार्मिक सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक बताया। एक स्थानीय नागरिक ने कहा, "मुहर्रम सिर्फ शोक नहीं, यह उस सिद्धांत की याद है जिसमें अन्याय के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत दिखाई गई।" एक अन्य महिला श्रद्धालु ने कहा, "हम प्रशासन का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्होंने हमारी धार्मिक भावनाओं को समझा और हमें हमारी परंपरा को पुनर्जीवित करने का अवसर दिया."
 
 
इस आयोजन से यह भी साफ हुआ कि कश्मीर की जनता, चाहे वह किसी भी मज़हब या समुदाय से हो, शांति और परंपरा की राह पर आगे बढ़ना चाहती है. मुहर्रम का यह जुलूस न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रदर्शन था, बल्कि यह इस बात का भी संकेत था कि घाटी अब सांस्कृतिक और सामाजिक पुनर्निर्माण के नए दौर में प्रवेश कर रही है.
 
जैसे-जैसे घाटी में सामान्य स्थिति लौट रही है, वैसे-वैसे लोग अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को फिर से जीवंत कर रहे हैं. श्रीनगर की सड़कों पर निकला यह शांतिपूर्ण और अनुशासित जुलूस यही संदेश दे रहा था — कश्मीर फिर से अपनी विरासत और अध्यात्म की राह पर लौट रहा है.