मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
देश में मस्जिदों की संख्या पहले से ही सीमित है.कई मौकों पर नमाज़ियों को मस्जिदों में जगह न मिलने की वजह से सड़कों पर नमाज़ पढ़नी पड़ती है.ऐसे में अगर कामकाजी महिलाओं को मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं मिलेगी, तो वे अपने पांच वक्त की नमाज़, जो इस्लाम का अनिवार्य आदेश है, कैसे अदा करेंगी?
यह सवाल आज के दौर में मुस्लिम महिलाओं, खासकर कामकाजी महिलाओं के लिए एक अहम मसला बन गया है.इस मुद्दे को लेकर पुणे की फराह शेख और उनके पति वारिस शेख पिछले कई वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं.उनके प्रयासों से यह मामला पिछले छह वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.फराह दुख भरे लहजे में कहती हैं कि उनके आंदोलन की वजह से कुछ लोग उन्हें काफ़िर तक कहने लगे हैं.
फराह शेख ने ‘आवाज़ द वॉयस उर्दू’ की संवाददाता आमना फारूक से बातचीत में देश की ज्यादातर मस्जिदों में महिलाओं के लिए नमाज़ पढ़ने, वुज़ूखाने और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव पर गहरी चिंता जताई.वह बताती हैं कि इन व्यवस्थाओं के न होने से सबसे ज्यादा परेशानी कामकाजी महिलाओं को होती है.
वह न तो दफ्तरों में नमाज़ पढ़ सकती हैं और न ही मर्दों की तरह खुले में.अगर मस्जिदों में महिलाओं के लिए नमाज़ की अलग व्यवस्था हो जाए तो उन्हें किसी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा.
पुणे के शनिवारवाड़ा इलाके में एक महिला द्वारा नमाज़ पढ़ने को लेकर विवाद इसलिए हुआ क्योंकि आसपास की किसी मस्जिद में महिलाओं के लिए नमाज़ की व्यवस्था नहीं थी.फराह कहती हैं कि नमाज़ इस्लाम में हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है.मर्दों को तो दफ्तर से वक्त निकालकर पास की मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की सुविधा मिल जाती है, लेकिन महिलाएं इससे वंचित रह जाती हैं क्योंकि अधिकांश मस्जिदों में उनके लिए व्यवस्था नहीं है.
आज देश के लगभग हर हिस्से में मुस्लिम महिलाओं ने शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है.वे बड़ी संख्या में कामकाज के लिए घरों से निकल रही हैं, लेकिन मस्जिदों में उनके लिए नमाज़ की सुविधा न होना उनके धार्मिक अधिकारों पर सवाल खड़ा करता है.
राह को संतोष है कि उनके प्रयासों से पुणे की कुछ मस्जिदों में अब महिलाओं के लिए नमाज़ की व्यवस्था शुरू हुई है.हालांकि, उन्हें अफसोस है कि मुंबई जैसे बड़े शहर में भी आज तक उन्हें एक भी ऐसी मस्जिद नहीं मिली जहां महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था हो.
फराह बताती हैं कि कुछ साल पहले बारिश के मौसम में जब वे अपनी बच्ची के साथ मस्जिद में नमाज़ पढ़ने गईं, तो उन्हें अंदर जाने से रोक दिया गया.इसी घटना ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया और उन्होंने महिलाओं के लिए मस्जिदों में नमाज़ की व्यवस्था कराने का आंदोलन शुरू कर दिया.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की और देश की बड़ी मस्जिदों व मुस्लिम संगठनों को पत्र लिखकर महिलाओं के लिए अलग नमाज़ व्यवस्था की मांग की.इस संघर्ष में उन्हें ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ का समर्थन भी मिला.
हालांकि, उन्हें समाज के एक वर्ग की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा.कई लोगों ने उन्हें काफ़िर कहा, उनके परिवार को बहिष्कार की धमकियां दीं, लेकिन फराह डटी रहीं.वह कहती हैं कि यह संघर्ष सिर्फ उनके लिए नहीं बल्कि उन तमाम मुस्लिम महिलाओं के लिए है जो अपने ईमान के साथ बराबरी का हक़ चाहती हैं.फराह ने अब एक एनजीओ भी स्थापित किया है ताकि मुस्लिम महिलाओं को धार्मिक और सामाजिक सहायता दी जा सके.
फराह शेख का यह आंदोलन मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और सम्मान की दिशा में एक मजबूत कदम है.वह चाहती हैं कि देश की हर मस्जिद में महिलाओं के लिए नमाज़ की व्यवस्था हो ताकि कोई भी मुस्लिम महिला अपने धार्मिक कर्तव्यों से वंचित न रह जाए.
फराह शेख की पूरी बातचीत सुनने के लिए रिपोर्ट के नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।