ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
बिहार के बक्सर ज़िले के चौसा प्रखंड स्थित देबे देहरा गांव से इंसानियत और सामाजिक सौहार्द की एक ऐसी मिसाल सामने आई है, जिसने पूरे इलाके का दिल जीत लिया है। यहां एक हिंदू परिवार ने अपने दिवंगत बेटे की स्मृति में मुस्लिम समाज को कब्रिस्तान के लिए एक बीघा (27,220 वर्ग फीट) ज़मीन दान कर गंगा-जमुनी तहज़ीब को नई मजबूती दी है।
देहरादून हादसे में छिन गया घर का उजाला
देबे देहरा गांव निवासी जनार्दन सिंह के 25 वर्षीय बड़े बेटे शिवम कुमार की 18 नवंबर को देहरादून में एक दर्दनाक सड़क हादसे में मौत हो गई। तेज़ रफ्तार कार की टक्कर से यह हादसा हुआ, जिसने पूरे परिवार को गहरे शोक में डुबो दिया। शिवम परिवार की आर्थिक रीढ़ थे और अपने दम पर तीन फैक्ट्रियां चला रहे थे। इसी वर्ष उनकी शादी की तैयारियां चल रही थीं, लेकिन एक पल में सब कुछ उजड़ गया।
गांव का हर दिल शिवम के साथ धड़कता था
शिवम के चाचा बिरज राज सिंह ने बताया कि शिवम केवल अपने परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे गांव के लिए सहारा थे। जरूरतमंदों की मदद करना और समाज के लिए कुछ करना उनकी आदत में शामिल था। उनकी असमय मृत्यु से गांव का हर व्यक्ति शोक में डूब गया।
श्राद्ध में लिया गया ऐतिहासिक फैसला
सोमवार को आयोजित श्राद्ध कर्म के दौरान, शोक के बीच परिवार ने एक ऐसा निर्णय लिया, जो मानवता की मिसाल बन गया। शिवम की याद में जनार्दन सिंह परिवार ने पंचायत के मुस्लिम समाज को कब्रिस्तान के उपयोग के लिए एक बीघा ज़मीन दान करने का ऐलान किया। यह ज़मीन पूरी तरह मुस्लिम समुदाय को सौंप दी जाएगी।
शिवम उर्फ अहिर धाम कब्रिस्तान
दान की गई भूमि का नाम “शिवम उर्फ अहिर धाम कब्रिस्तान” रखा गया है। बिरज राज सिंह ने कहा, 'शिवम हमेशा भाईचारे और आपसी सौहार्द में विश्वास करता था। हम चाहते हैं कि उसका संदेश आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे।'
अस्पताल समय पर मिलता तो बेटा बच जाता
दुख से भरे पिता जनार्दन सिंह ने कहा, मुझ पर क्या बीत रही है, शब्दों में नहीं बता सकता। भगवान ऐसा दुख किसी को न दे।” उनका कहना है, सड़क जितनी जरूरी है, उतनी ही जरूरी हर 20KM पर एम्बुलेंस की व्यवस्था भी है।
शिवम की याद, मानवता की छाया
यह कहानी एक ऐसे परिवार की है जिसने अपने भीतर के दुख को किसी दूसरे की राहत में बदल दिया। यही है असली इंसानियत, यही है असली धर्म।
जिले में मिसाल बना परिवार का फैसला
डेवी डीहरा गांव का यह कदम जिले भर में चर्चा का विषय बन गया है। लोग जनार्दन सिंह और उनके परिवार को सलाम कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह फैसला आने वाली पीढ़ियों के लिए संदेश है कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
यादों में लगाए गए पौधे, इंसानियत की जड़ें
इसी दिन परिवार ने शिवम की स्मृति में पौधारोपण भी किया। परिजनों का कहना है कि ये पौधे शिवम की तरह ही आगे बढ़ेंगे और उसकी सरलता, दयालुता और इंसानियत की पहचान बनेंगे।
50 मुस्लिम परिवारों की पुरानी समस्या का समाधान
डेवी डीहरा गांव में वर्षों पहले कब्रिस्तान था। लेकिन उस जगह पर स्कूल बन गया। इससे दो समस्याएं खड़ी हो गई। पहली- गांव के मुसलमानों की कब्रों का कोई नामोनिशान नहीं रहा। दूसरी- मृत्यु के बाद शव को कहां दफनाया जाए?
डेवी डीहरा गांव में करीब 50 मुस्लिम परिवार रहते हैं, लेकिन अब तक उनके पास दफनाने के लिए कोई तय जमीन नहीं थी। किसी की मौत होने पर शव को पांच किमी दूर दूसरे गांव ले जाना पड़ता था, जिससे कई बार विवाद भी होते थे। मजबूरी में कुछ लोगों को नदी-नाले के किनारे दफनाना पड़ता था। अब जमीन मिलने पर गांव के मुसलमानों की बड़ी समस्या दूर हो गई।
गांव के ईंट-भट्टा मजदूर अलाउद्दीन बताते हैं- 'पहले गांव में कब्रिस्तान था। हमारे पूर्वजों के शव वहीं दफन हैं। लेकिन हम लोग अनपढ़ थे, किसी ने कब्रिस्तान के कागजात नहीं बनवाए।
बाद में उसी जगह पर स्कूल बन गया तो हम पर यह दबाव आने लगा कि स्कूल की जमीन पर किसी को दफन नहीं किया जा सकता है। बाद में उसी जगह पर स्कूल बन गया तो हम लोगों के लिए बड़ी समस्या हो गई।'
स्थानीय अलाउद्दीन ने कहा कि इसी दौरान एक मसीहा जैसे इंसान आए और हम लोगों को कब्रिस्तान के लिए अपनी जमीन समाधान
पूरे ज़िले में चर्चा, समाज ने किया सलाम
हिंदू परिवार द्वारा मुस्लिम समाज के लिए उठाया गया यह कदम पूरे बक्सर ज़िले में चर्चा का विषय बन गया है। लोग इसे आज के दौर में एक दुर्लभ लेकिन बेहद प्रेरणादायक उदाहरण बता रहे हैं, जो बताता है कि दुख की घड़ी में भी इंसानियत, प्रेम और भाईचारा ज़िंदा रह सकता है।
देबे देहरा गांव की यह कहानी सिर्फ एक दान की नहीं, बल्कि उस गंगा-जमुनी तहज़ीब की है, जहां धर्म से ऊपर इंसानियत है और जहां एक बेटे की याद ने दो समुदायों के दिलों को और करीब ला दिया।