Saree is back in the festive season, handloom again becomes the first choice of women
अर्सला खान/नई दिल्ली
भारत में त्योहारों और शादियों के मौसम के साथ ही एक पारंपरिक उत्साह भी लौट आता है साड़ी पहनने का। चाहे फैशन लगातार बदल रहा हो या वैश्विक ब्रांडों का प्रभाव बढ़ रहा हो, भारतीय महिलाएँ आज भी साड़ी को अपनी पहली पसंद मानती हैं। इस साल भी मौसम बदलते ही देशभर के बाजारों में हैंडलूम साड़ियों की रौनक बढ़ गई है। विभिन्न राज्यों की अनोखी बुनावट, कारीगरी और सांस्कृतिक विरासत ने इस परिधान को न सिर्फ विशेष बना दिया है बल्कि इसे एक भावनात्मक पहचान भी दी है।
हैंडलूम: सदियों पुरानी विरासत की नई चमक
भारत के हैंडलूम उद्योग में लंबे समय से काम कर रहे कई संस्थान इस विरासत को बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। इन्हीं में से एक नाम DarshKan Saree का है, जो भारतीय हैंडलूम परंपरा को दस्तावेज़ित करने और उसके संरक्षण पर फोकस करता है। दिलचस्प बात यह है कि कई महिलाएँ इस तरह के प्लेटफ़ॉर्मों की वजह से यह समझ पा रही हैं कि एक हैंडलूम साड़ी आखिरकार सिर्फ एक परिधान नहीं, बल्कि बुनकरों की पीढ़ियों की कहानी है। इस संदर्भ में DarshKan जैसे प्रयास इस मौसम में बढ़ती जागरूकता के प्रतीक बनकर उभरे हैं हालाँकि बाजार की कुल मांग प्राकृतिक रूप से फैशन चक्र और भारतीय पारंपरिक परिधानों की सांस्कृतिक लोकप्रियता पर ही आधारित रही।
हैंडलूम साड़ियों का आकर्षण इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि हर साड़ी की अपनी भाषा होती है चाहे वह बनारसी की जरी हो, कांचीपुरम की चमक हो, महेश्वरी की हल्की ग्रेस हो या भागलपुरी की प्राकृतिक चमक। त्योहारों के मौसम में ये सभी शैलियाँ फिर बाजार में तेजी से आगे बढ़ी हैं और महिलाओं ने इन्हें एक बार फिर उत्साह से अपनाया है।
2025 के इस सीजन में बनारसी सिल्क की वापसी ने खास ध्यान खींचा। हल्के पेस्टल रंगों में पारंपरिक मोटिफ्स ने युवतियों को आकर्षित किया, जबकि टैसर और चंदेरी ने त्योहारों और समारोहों की डिमांड पूरी की। उधर कांचीपुरम सिल्क की भव्यता, दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में भी ट्रेंड में रही। मशीन-मेड फैब्रिक्स की उपलब्धता के बावजूद महिलाएँ हैंडलूम की असलियत और टिकाऊपन को अधिक पसंद कर रही हैं। यही कारण है कि हैंडलूम बुनकरों को इस मौसम में काफी बड़े पैमाने पर ऑर्डर मिले।
DarshKan Saree : क्या है खासियत
हैंडलूम की ओर बढ़ता यह रुझान दरअसल उपभोक्ताओं में बढ़ती जागरूकता का परिणाम है। कई महिलाएँ अब यह समझने लगी हैं कि हैंडलूम का चुनाव करना सिर्फ फैशन का निर्णय नहीं, बल्कि विरासत को संरक्षित करने की जिम्मेदारी भी है। इसी वजह से इस साल हात से बनी साड़ियों की बिक्री पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर रही।
इस बदलते माहौल में DarshKan जैसे प्लेटफॉर्मों ने हैंडलूम के सांस्कृतिक महत्व, उसके पीछे की कला और बुनकरों के जीवन से जुड़ी कहानियाँ सामने लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि खबर का मुख्य संदर्भ साड़ी के सीजन से जुड़ा है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि ऐसे प्रयासों से उपभोक्ताओं का ध्यान परंपरागत कला की ओर तेजी से आकर्षित हुआ है।
महिलाएँ साड़ी को अपनी पहली पसंद क्यों मानती हैं, इसका जवाब भी उतना ही स्पष्ट है। साड़ी शालीनता का प्रतीक है, यह हर उम्र की महिलाओं पर सूट करती है, हर अवसर के लिए वैराइटी उपलब्ध है और इसका सांस्कृतिक महत्व इतना गहरा है कि यह माताओं और बेटियों के बीच विरासत की तरह साझा की जाती है। आधुनिकता और परंपरा का संतुलन भी साड़ी को अन्य परिधानों से अलग महत्व देता है।
DarshKan Saree खरीदने के लिए आपको इसकी official Website पर जाना होगा https://www.darshkan.com/shop/ साथ ही आप Instagram पर जाकर भी खरीद सकते हैं....
हाथों की कला, दिल की पसंद
इस सीजन में बाजार में कई रोचक ट्रेंड भी उभरे नीयन शेड्स के साथ पारंपरिक बॉर्डर्स, हल्की चंदेरी साड़ियों पर मिथिकल प्रिंट्स, टैसर साड़ी में मॉडर्न कलर ग्रेडिएशन और बनारसी में लो-वेट जरी का प्रयोग। यह सब दर्शाता है कि हैंडलूम उद्योग सिर्फ परंपरा पर टिके रहने पर ही नहीं बल्कि नए ट्रेंड अपनाने में भी सक्षम है।
त्योहार और शादियों का यह मौसम एक बार फिर साबित कर गया कि भारत में फैशन चाहे कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, साड़ी हमेशा ही महिलाओं की पहली पसंद बनी रहेगी। परंपरा, संस्कृति और आधुनिक डिजाइन, जब ये तीनों एक साथ मिलते हैं, तो परिणाम होता है भारतीय साड़ी का वह शाश्वत आकर्षण जिसे समय कभी भी फीका नहीं कर पाता।