... इन वजहों से बीवियों को पीटने की इजाजत हैः तालिबान मौलवी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 1 Years ago
घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा

 

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

 

अफगानिस्तान में तालिबान के एक मौलवी का वीडियो वायरल हो रहा है, उसमें वे कह रहे हैं कि पुरुषों को अपनी पत्नियों को पिटाई करने का हक है, यदि उनकी बीवियां उनकी मर्जी के बिना घर से बाहर जाएं या उनके लिए सजें-संवरें नहीं या फिर इबादत नहीं करें. इस बात के लिए सोशल मीडिया पर लोग मौलवी की निंदा कर रहे हैं.

 

अफगानिस्तान में तालिबानी राज के दौरान महिलाओं की जिंदगी नर्क बन गई है. महिलाओं पर जुल्म का मुद्दा इतना अहम बन गया है कि इसी कारण किसी भी मुल्क ने तालिबान राज को अभी तक मान्यता नहीं दी है. वहां महिलाओं के स्कूल और कालेज में दाखिलों पर रोक लगा दी गई है. वे न तो सरकारी या निजी दफ्तरों में काम कर सकती हैं और न ही वे कोई उद्योग या व्यवसाय खोल सकती हैं. चादरी बुका पहनना जरूरी है. बिना महरम के घर से बाहर नहीं निकल सकतीं. महिला रोगियों का इलाज का केवल महिला डॉक्टर करेंगी. स्टेडियम में छोटी-छोटी बात पर महिलाओं को कोड़ों से पीटा जा रहा है. अब यह मौलवी कह बीवियों को पीटने की वकालत कर रहे हैं.

 

अफगान पुनर्वास मंत्री और शरणार्थियों के मंत्री की पूर्व सलाहकार शबनम नसीमी ने एक ट्वीट में इस मौलवी का वीडियो ट्वीट करते हुए कहा, ‘‘तालिबान के एक मौलवी ने कहा है कि पुरुषों को एक महिला को पीटने की अनुमति है, अगर वे अपने पति की अनुमति के बिना घर छोड़ती हैं, अगर वह अपने पति के लिए तैयार नहीं होती हैं और अगर वह प्रार्थना नहीं करती हैं. अफगानिस्तान में महिलाओं का जीवन गंभीर खतरे में है.’’

 

शबनम नसीमी के इस ट्वीट पर लंबी बहस छिड़ गई है. लोग बड़ी संख्या में निंदा करते हुए कमेंट कर रहे हैं और अब इस पोस्ट को 6 लाख 29 हजार व्यूज मिल चुके हैं.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

घरेलू हिंसा से महिलाएं सुरक्षित नहीं

 

अफगानिस्तान में घरेलू हिंसा विशेष रूप से प्रचलित है, लेकिन वित्तीय निर्भरता की कमी अफगान महिलाओं को मदद मांगने से रोकने वाली प्रमुख बाधाओं में से एक है. अफगानिस्तान एक रूढ़िवादी समाज हैए जहां महिलाओं को अक्सर पुरानी पितृसत्तात्मक परंपराओं का सामना करना पड़ता है. पुरुषों को परिवार के लिए मुख्य आय अर्जक के रूप में देखा जाता है और महिलाओं को आम तौर पर गृहिणी के रूप में देखा जाता है. इसलिए, यह माना जाता है कि महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके पति या पिता उनका समर्थन करेंगे. अधिकांश महिलाओं को जीवित रहने के लिए पुरुषों से वित्तीय सहायता पर निर्भर रहने के लिए मजबूर किया जाता है.

 

अफगानिस्तान में घरेलू हिंसा की दर भी बहुत अधिक है, जहाँ अक्सर महिलाओं का उनके परिवार के सदस्यों द्वारा शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण किया जाता है. महिला मामलों के अफगान मंत्रालय के एक मूल्यांकन के अनुसार, सभी अफगान महिलाओं में से आधे से अधिक ने 2016-2020 के बीच कम से कम एक प्रकार की शारीरिक, यौन या मनोवैज्ञानिक हिंसा का अनुभव करने की सूचना दी और 60 प्रतिशत से अधिक की शादी उनकी सहमति के बिना की गई.

 

अधिकांश अफगान लड़कियों को अपना भावी पति खुद चुनने का अधिकार नहीं होता है और इसके बजाय उन्हें अपने परिवार द्वारा चुने गए व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है. आधिकारिक तौर पर पारिवारिक हिंसा के बारे में शिकायत करना या परिवार के सदस्यों या परिचितों से बिल्कुल भी बात करना अफगान महिलाओं के लिए हमेशा जटिल रहा है. जिन लोगों ने अपने परिवार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई या जो घर में सुरक्षित महसूस नहीं करती थीं, वे अक्सर देश भर में महिला सुरक्षा केंद्रों और आश्रयों में शरण लेती थीं. लेकिन जब से अगस्त के मध्य में तालिबान ने सत्ता संभाली, काबुल और प्रांतों दोनों में महिलाओं के लिए ये सुरक्षित घर बंद कर दिए गए हैं. तालिबान ने सुरक्षित घरों में अकेले या अपने बच्चों के साथ रहने वाली महिलाओं से या तो घर लौटने या जेल जाने के लिए कहा.

 

सुरक्षा चिंताओं के कारण नाम न बताने वाले एक वकील ने तालिबान के फैसले को अवैध और अमानवीय बताया, “जो महिलाएं सुरक्षित घरों में रह रही थीं, वे सभी उत्पीड़ित और पीड़ित थीं, जबकि जेल अपराधियों और उत्पीड़कों के लिए एक जगह है. फिर यह कैसे संभव है कि जिन्हें न्याय चाहिए उन्हें अपराधियों की तरह जेल भेजा जाए? उन्हें घर वापस भेजना भी जोखिम भरा हो सकता है. अगर उनका घर इन महिलाओं के लिए सुरक्षित जगह होता तो वे सुरक्षा केंद्रों की शरण क्यों लेतीं?”

 

अगस्त के मध्य में जब तालिबान ने सत्ता संभाली, तो उन्होंने कई जेलों के दरवाजे खोल दिए और हजारों कैदियों को रिहा कर दिया, जिनमें से कई को यौन हिंसा या घरेलू शोषण का दोषी ठहराया गया था. इसने हजारों पीड़ितों को पहले से कहीं अधिक असुरक्षित बना दिया, उनके पूर्व हमलावर ढीले पड़ गए. रिहा किए गए कैदियों में करीब 800 महिलाएं अपने बच्चों के साथ थीं.

 

महिला मामलों के मंत्रालय की एक रिपोर्ट के आधार पर, अफगानिस्तान के 22 प्रांतों में 25 आश्रय थे. अमेरिकी विदेश विभाग का अनुमान है कि हर साल लगभग 2,000 महिलाओं और लड़कियों ने आश्रयों का उपयोग किया. सुरक्षा केंद्रों में रहने वाली महिलाओं के विचार को अफगानिस्तान में व्यापक रूप से कभी स्वीकार नहीं किया गया है. लेकिन आश्रयों में रहकर कुछ महिलाएं एक नया जीवन शुरू करने में सक्षम हुईं. उन्हें नए कौशल सीखने और चिकित्सा, कानूनी और सामाजिक सेवाओं तक पहुंचने का मौका मिला. अफगानिस्तान के आश्रय गृहों में रहने वाली महिलाओं के सामने अब जो स्थिति है वह बेहद चिंताजनक है. अतीत में उनके साथ दुर्व्यवहार करने वाले परिवार के सदस्यों से न केवल उन्हें अपनी सुरक्षा का डर है, बल्कि उन्हें न्याय दिलाने की कोशिश करने वाली महिला अभियोजक, न्यायाधीश और वकील अब गुप्त स्थानों पर छिपे हुए हैं, उन्हें भी बदला लेने का डर है. इन महिलाओं के लिए कौन न्याय मांगेगा?