विश्व गौरैया दिवस: मोहम्मद दिलावर ने शुरू की थी गौरेया संरक्षण की मुहिम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 13-03-2023
विश्व गौरैया दिवस: मोहम्मद दिलावर ने शुरू की थी गौरेया संरक्षण की मुहिम
विश्व गौरैया दिवस: मोहम्मद दिलावर ने शुरू की थी गौरेया संरक्षण की मुहिम

 

फ़िरदौस ख़ान

सुबह होते ही गौरैया घर आंगन में चहकती, फुदकती फिरती थीं. उनकी चहचहाहट सुबह को ख़ुशगवार बना दिया करती थी.

कुछ दहाई पहले तक घर के आंगन में गौरैया का बसेरा हुआ करता था, लेकिन फिर हालात ऐसे बदले कि गौरैया की चहचहाहट सुनने को कान तरस गए.

गौरैया बस्तियों के आसपास रहना पसंद करती है. उसे इंसानों से बेहद लगाव है, लेकिन इंसानों ने आधुनिकता की चकाचौंध के फेर में इस नन्हे परिन्दे के आशियाने को ही उजाड़ कर रख दिया.

महानगरों और शहरों को छोड़ दें, तो गांव-देहात में अब भी गौरैया नज़र आ ही जाती हैं. महाराष्ट्र के नासिक के मोहम्मद दिलावर ने गौरैया को बचाने की मुहिम शुरू की थी.

उन्होंने इंटरनेट के ज़रिये गौरैया संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम शुरू किया. इस मुहिम को कामयाबी मिली और यह 50 देशों तक पहुंच गई.

उन्होंने लकड़ी से गौरेया के लिए छोटे-छोटे घर बनाए हैं और एक फ़ीडर भी, जिससे गौरैया को सुरक्षित जगह और दाना-पानी मिल सके.

गौरैया घर की लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई इतनी रखी गई है कि वह इसमें आराम से रह सके.

इसके निचले हिस्से में छोटे-छोटे कई छेद हैं, ताकि हवा आ जा सके और पानी आसानी से बह जाए. 

मोहम्मद दिलावर जाने माने पर्यावरण विज्ञानी हैं. उन्होंने गौरैया के संरक्षण के लिए नेचर फ़ोरेवर सोसायटी की स्थापना की थी.

उनके इस नेक काम को देखते हुए टाइम ने साल 2008 में उन्हें हीरोज़ ऑफ़ दि एनवायरमेंट का ख़िताब दिया था और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणविदों की फ़ेहरिस्त में शामिल किया था.

लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स और गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी उनका नाम दर्ज है. उन्होंने साल 2010 में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से गौरेया संरक्षण के लिए गौरेया दिवस मनाने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया.

इस तरह 20 मार्च 2010 को पहली बार मुख्यमंत्री आवास पर गौरैया दिवस मनाया गया. साल 2010 में भारतीय डाक विभाग ने भी गौरेया को अपनी डाक टिकट पर ख़ास जगह दी.

ये सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद मुहम्मद दिलावर की कोशिशों का ही नतीजा है कि अब दुनियाभर में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाने लगा है.

उन्होंने साल 2012 में दिल्ली सरकार के साथ मिलकर राइज़ ऑफ़ स्पैरो अभियान चलाया. उसी साल दिल्ली सरकार ने इसे राजकीय पक्षी घोषित किया था. वे बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी से जुड़े हुए हैं. 

बिहार के गया जिले के गांव निस्खा के तंज़ील उर्रहमान भी गौरैया को बचाने की मुहिम में जुटे हैं. हालत ये है कि गौरैया के संरक्षण के काम के लिए उन्होंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी.

उन्होंने गौरैया के लिए सैकड़ों घोंसले बनाए हैं. उन्होंने अपने घर में तो घोंसले बनाए ही हैं. इसके अलावा उन्होंने गांवभर के पेड़ों पर भी गौरैया के लिए घोंसले बनाए हैं.

इन घोंसलों को बनाने के लिए उन्होंने मिट्टी के छोटे घड़ों का इस्तेमाल किया है. इनमें छोटे छेद करके घर की छतों और दीवारों पर लटकाया गया है.

पेड़ों की शाख़ों पर भी इन घड़ों को लटकाया गया है. इनमें गौरैया ने अपने घर बना लिए हैं. इनकी हिफ़ाज़त के लिए उन्होंने सीसीटीवी कैमरे भी लगाए हुए हैं, क्योंकि गांव के बहुत से लोग इनका शिकार किया करते थे.

उन्होंने इन शिकारियों के ख़िलाफ़ पुलिस में मामले दर्ज करवाए और इनके शिकार पर पूरी तरह से पाबंदी लगवाई. इस काम में उन्हें गांववालों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है. 

गौरेया बिहार का राज्य पक्षी है. साल 2013 में गौरैया को यह दर्जा मिला. कुछ अरसा पहले बिहार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने गौरैया के संरक्षण के लिए सभी सरकारी दफ़्तरों, आवासों, विद्यालयों, सामुदायिक भवनों और अन्य सभी सरकारी इमारतों में लकड़ी के 'गौरैया घर' रखने की मुहिम शुरू की थी.

 

इसके तहत राज्यभर में गौरैया संरक्षण के लिए जन जागृति अभियान चलाया जा रहा है. जगह-जगह नुक्कड़ नाटकों और और सेमिनारों के ज़रिये लोगों को गौरैया संरक्षण के लिए प्रेरित करना है.

सरकारी विद्यालयों में बच्चों को गौरैया घर वितरित किए जा रहे हैं. सरकार का मानना है कि अब घरों में आंगन ख़त्म होते जा रहे हैं. ऐसे में गौरैया को घोंसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल पा रही है. 

उत्तर प्रदेश में लड़की के छोटे-छोटे घर बनाकर लोगों से उन्हें अपने घर में रखने की अपील की गई, ताकि गौरैया को आबादी में रहने के लिए जगह मिल सके.

अधिकारियों का कहना है कि गौरैया को बचाने के लिए लोगों को कोशिश करनी चाहिए. घोंसले बनाकर उनके लिए दाना-पानी का इंतज़ाम करके उन्हें बचाया जा सकता है.

ग़ैर सरकारी संस्थाएं भी गौरैया बचाओ मुहिम में शामिल हो रही हैं. गांव-देहात के लोग भी इस नन्हे परिन्दे को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं. 

गौरैया के संरक्षण के प्रति सरकार भी गंभीर नज़र आ रही है. देशभर में सरकारी स्तर पर गौरैया के संरक्षण के लिए मुहिम चलाई जा रही है.

इसके तहत लोगों को गौरैया के अस्तित्व पर आए संकट के बारे में बताया जा रहा है. विद्यालयों में जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन कर बच्चों को गौरैया संरक्षण के बारे में बताया जा रहा है. बच्चों को गौरैया घर बांटे जा रहे हैं, ताकि वे उन्हें अपने घर में लगाएं.

गौरैया एक छोटी चिड़िया है. मादा गौरैया को चिड़ी या चिड़िया और नर गौरैया को चिड़ा भी कहते हैं. यह हल्के भूरे रंग की होती है. इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच और पैरों का रंग पीला होता है.

नर गौरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होती है. यह पासेराडेई परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे 'वीवर फ़िंच' परिवार की सदस्य मानते हैं.

एक वक़्त में इसके कम से कम तीन अंडे होते हैं. गौरेया ज़्यादातर झुंड में ही रहती है. भोजन की तलाश में गौरेया के झुंड दो मील तक की दूरी तय कर लेते हैं.

शहरी इलाक़ों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो शामिल हैं. इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है. 

गौरैया शहरों में ज़्यादा पाई जाती है. अमूमन यह हर तरह की जलवायु में रहती है, लेकिन पहाड़ी इलाक़ों में यह कम दिखाई देती है.

गांव-देहात, क़स्बों और छोटे शहरों में इसे ख़ूब देखा जा सकता है. मगर अब गौरैया लुप्त होने की क़गार पर है.

भारत सहित दुनिया के कई देशों ब्रिटेन, इटली, फ़्रांस, जर्मनी और चेक गणराज्य आदि में इसकी तादाद बहुत तेज़ी से कम हो रही है. पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के मुताबिक़ गौरैया की आबादी घटकर ख़तरनाक स्तर तक पहुंच गई है.

पक्षी विज्ञानी मानते हैं कि गौरैया की आबादी में 60 से 80 फ़ीसद कमी आई है. आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन की मानें, तो गौरैया की आबादी में तक़रीबन 60 फ़ीसद की गिरावट दर्ज की गई है.

ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्डस’ ने भारत से लेकर दुनिया के कई हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में शामिल कर लिया है. नीदरलैंड में इसे 'दुर्लभ प्रजाति' के वर्ग में रखा गया है. 

गौरैया की घटती तादाद के लिए बदलता माहौल काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है. पहले घर के आंगन बड़े हुआ करते थे.

परिन्दों को दाना डाला जाता था. उनके लिए पानी से भरे कूंडे रखे जाते थे. भोजन और पानी की तलाश में उन्हें भटकना नहीं पड़ता था. आबादी से पेड़ कटने लगे हैं.

बाग़-बग़ीचों, खेत-खलिहानों की जगह कंकरीट के जंगल बस गए हैं. पहले घरों में पेड़ होते थे, रौशनदान वग़ैरह होते थे, जहां गौरैया अपना बसेरा बना लिया करती थी.

मगर अब घर की जगह फ़्लैट्स बनने लगे हैं, जिनमें आंगन के लिए कोई जगह नहीं होती. पक्षी विज्ञानी और वन्यप्राणी विशेषज्ञों का मानना है कि खेतों में कीटनाशकों के ज़्यादा इस्तेमाल से गौरैया पर बुरा असर पड़ा है.

गौरैया के बच्चों का शुरुआती भोजन सिर्फ़ कीड़े-मकौड़े ही होते हैं, लेकिन अब लोग खेतों से लेकर अपने घर की क्यारियों तक में रसायनिक पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पौधों को कीड़े नहीं लगते.

ऐसे में गौरैया जैसे परिन्दों को भोजन नहीं मिल पाता. जो कीड़े होते भी हैं, तो वे कीटनाशकों की वजह से मर जाते हैं.

फिर इन्हीं ज़हरीले कीटों को खाने से गौरैया मर जाती हैं. सीसा रहित पेट्रोल के जलने पर मिथाइल नाइट्रेट नामक यौगिक तैयार होता है, जो छोटे जीव-जंतुओं के लिए नुक़सानदेह है.

कारख़ानों से निकलने वाले ज़हरीले धुएं ने भी गौरैया को नुक़सान पहुंचाया है. अब घरों में गौरैया के लिए दाना-पानी रखने का चलन भी बंद हो गया है. इसलिए गौरैया के लिए भोजन का संकट भी पैदा हो गया है.  

गौरैया को अपने घोंसलों के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल पाती, ऐसे में उसके अंडे और नन्हे बच्चे दूसरे जीव खा जाते हैं.

वह ख़ुद भी चील, बाज़ और बिल्लियों का भोजन बन जाती है. अगर किसी घर में गौरैया ने अपना घोंसला बना भी लिया, तो लोग नज़र पड़ते ही उसे उजाड़ देते हैं.

इसके अलावा मोबाइल टावरों से निकले वाली तरंगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है.

ये तरंगे उनकी दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही हैं और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है. पक्षी विज्ञानियों का कहना है कि गौरैया के घोंसलों के लिए ऐसी जगह मुहैया करानी होगी, जहां उसके अंडे और बच्चे सुरक्षित रहें. 

गौरैया का अस्तित्व ख़तरे में है. अगर जल्द ही इसके संरक्षण के लिए कारगर क़दम नहीं उठाए गए, आने वाली पीढ़ियां इसे देखने को तरस जाएंगी.

गौरैया के संरक्षण के लिए जनमानस में जागरुकता पैदा करनी होगी. विश्व गौरैया दिवस बीत जाने के बाद भी गौरैया बचाओ मुहिम धीमी नहीं पड़नी चाहिए. इस मुहिम को जनमानस तक पहुंचाना होगा, तभी इसके बेहतर नतीजे सामने आएंगे.

गौरैया संरक्षण की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ सरकार की ही नहीं है, बल्कि यह हम सबकी सांझी ज़िम्मेदारी है. इसलिए गौरैया संरक्षण के लिए सबको साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि हमारे घरों के आंगन में फिर से गौरैया चहकने लगें.

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)