सऊदी अरब और यूएई कैसे धार्मिक कट्टरता कर रहे हैं कम

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 26-02-2023
यूएई में बन रहा पहला मंदिर (फोटोः अरब न्यूज)
यूएई में बन रहा पहला मंदिर (फोटोः अरब न्यूज)

 

मंजीत ठाकुर

आपने सुना होगा कि अबू धाबी में सबसे बड़े हिंदू मंदिर पर काम चल रहा है, और दूसरे मंदिर का पिछले साल दुबई में उद्घाटन किया गया था.

 

संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले प्रवासी भारतीयों के मुताबिक यह ‘सहिष्णुता का एक चमकदार उदाहरण’है और अब उन्हें नहीं लगता है कि वे लोग घर से बाहर कहीं विदेश में रह रहे हों.

 

अगर कुछ महीने पहले एकाध अप्रिय घटनाओं की वजह से पैदा हुई खटास को छोड़ दें तो पिछले साल मई में व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर के साथ भारत-यूएई संबंध नई ऊंचाई पर पहुंच गए.

 

करीब 35 लाख भारतीय यूएई में रह रहे हैं और काम कर रहे हैं. इस समुदाय के लिए बनाया गया पहला हिंदू मंदिर 1950 के दशक में दुबई में खोला गया था. पिछले ही साल भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के सम्मिश्रण में स्थानीय अधिकारियों द्वारा दान की गई 15 एकड़ भूमि का विस्तार किया गया.

 

अक्टूबर 2022 में संयुक्त अरब अमीरात के सहिष्णुता मंत्री शेख नहयान बिन मुबारक ने इसका पुन: उद्घाटन किया था.

 

अरब न्यूज में छपी एक रिपोर्ट में तब संयुक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत ने कहा था, "मुख्य अतिथि के रूप में शेख नहयान की उपस्थिति और हिंदू मंदिर के लिए दुबई सरकार द्वारा भूमि प्रदान करने से पता चलता है कि संयुक्त अरब अमीरात की सरकार यह सुनिश्चित करने में कितनी सक्रिय है कि यहां भारतीय समुदाय सहज है."

 

असल में, ऐसी कई मिसालें आ रही हैं जिससे ऐसे संकेत मिलते हैं कि यूएई और सऊदी अरब के साथ खाड़ी देश अपनी कट्टरता के खोल से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. यूएई ने तो 2019 को सहिष्णुता वर्ष भी घोषित किया था.

 

लेकिन, इन देशों में कट्टरता के खिलाफ कोशिशें कोई नई नहीं हैं. 2000के दशक की शुरुआत से ही सऊदी अरब जैसे स्थानों में चरमपंथ विरोधी प्रतिक्रिया तंत्र का हिस्सा रहे हैं. तत्कालीन उप आंतरिक मंत्री, प्रिंस मोहम्मद बिन नायेफ पर एक चरमपंथी द्वारा 2009के प्रयास के बाद सऊदी अरब में उन्हें गति मिली.

 

कट्टरवाद और चरमपंथ से मुक्ति के उद्देश्य से इसी तरह के कार्यक्रम पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात (2012में हेदाया), सिंगापुर, बेल्जियम, यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी में चलाए गए थे.

 

असल में, दुनिया भर में आतंकवाद के रूप परिवर्तन के कारण ऐसे कदम आवश्यक हो गए हैं. अब आतंकवादी समूहों ने व्यक्तियों को भर्ती करने और कट्टरपंथी बनाने के लिए ऑनलाइन तरीके चुनने शुरू कर दिए हैं. यहां तक कि लोगों को आतंकी बनाकर अकेले ही आतंकी गतिविधियों को संचालित करने को प्रोत्साहित किया है.

 

इस्लामिक स्टेट के चरम शासन के दौरान कई देशों में  ऑनलाइन तरीके से, खासकर सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए आतंकी भर्तियों का जोर रहा था. 2016 में बांग्लादेश में आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों के शिक्षित युवाओं द्वारा होली आर्टिसन बेकरी हमले से लेकर 2014 के बाद से पूरे यूरोप में लोन वुल्फ हमले के मामलों तक, आतंकी हमलों ने आतंकवाद और कट्टरता का मुकाबला करने के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता जान पड़ी.

 

यूएई ऐंड सऊदी अरेबिया रेस्पेक्टिंग हिंदू हेरिटेज विषय पर एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए डॉ. अंकित शाह कहते हैं, “मोहम्मद बिन सलमान अर्थव्यवस्था को गति देना चाहते हैं और इस दिशा में वह भारत के साथ रिश्ते प्रगाढ़ कर रहे हैं.”वह आगे कहते हैं, “खाड़ी देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को वैविध्यपूर्ण बनाने का एक रास्ता भारत के साथ अच्छे रिश्तों में देखा है. इससे उनके समाज में कट्टरता भी कम होगी.”

 

डॉ. शाह कहते हैं, “सऊदी अरब और यूएई भारतीय विरासत का सम्मान करते हैं और वहा अब योग और आयुर्वेद को प्रोत्साहित किया जा रहा है और मंदिरों का निर्माण किया जा  रहा है.”