तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण: एक बड़ी कूटनीतिक जीत

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 14-04-2025
Tahawwur Rana's extradition to India: A major diplomatic victory
Tahawwur Rana's extradition to India: A major diplomatic victory

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

26/11 मुंबई आतंकी हमलों के आरोपी तहव्वुर राणा को भारत लाए जाने की तैयारी न सिर्फ न्याय की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि यह भारत की वैश्विक कूटनीतिक ताकत का एक प्रत्यक्ष प्रमाण भी है. बीते कुछ वर्षों में भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति जिस तरह से सुदृढ़ की है, वह तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण जैसे मामलों में स्पष्ट दिखाई देता है.

तहव्वुर राणा कौन है?

पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा एक पूर्व सैन्य डॉक्टर है, जो अमेरिका में बसने से पहले कनाडा में रहा. उसने शिकागो में आव्रजन सेवाओं और अन्य व्यापारों के जरिये नेटवर्क खड़ा किया. इसी दौरान वह अपने पुराने मित्र डेविड कोलमैन हेडली के संपर्क में आया, जो 26/11 के आतंकी हमले की योजना में मुख्य भूमिका निभा रहा था. हेडली ने भारत में हमलों के लक्ष्यों की रेकी करने के लिए राणा की फर्म का इस्तेमाल किया.

कैसे बनी कूटनीतिक जीत?

अमेरिका, जो हमेशा मानवाधिकार, विधिक प्रक्रिया और प्रत्यर्पण संधियों के तहत काम करता है, वहां से किसी आरोपी को भारत जैसे देश को सौंपना आसान नहीं होता. राणा ने अमेरिका की कानूनी प्रणाली में कई बार प्रत्यर्पण को रोकने की कोशिश की, यह दावा करते हुए कि भारत में उसे यातना दी जा सकती है. लेकिन अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल को उसकी याचिका खारिज कर दी और प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया.

यहां भारत की कूटनीतिक जीत इसलिए है, क्योंकि उसने एक ऐसे व्यक्ति को प्रत्यर्पण के लिए तैयार करवा लिया जिसे अमेरिका में पहले एक मुकदमे में आंशिक रूप से बरी किया जा चुका था. साथ ही यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और भारत के संबंध रणनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में लगातार मजबूत हो रहे हैं.

मोदी सरकार की सक्रिय विदेश नीति का नतीजा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की विदेश नीति ने पिछले वर्षों में भारत की छवि को मजबूत किया है. यूक्रेन-रूस युद्ध जैसे जटिल मुद्दों पर संतुलन साधना, मुस्लिम देशों से संबंध मजबूत करना और वैश्विक मंचों पर भारत की प्रभावी भागीदारी - ये सभी उदाहरण हैं कि भारत अब वैश्विक कूटनीति में ‘नियमों का अनुयायी’ नहीं बल्कि ‘निर्माता’ बन चुका है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अनुभवसंपन्न कूटनीति और एनएसए अजीत डोभाल की रणनीतिक सूझबूझ ने इसे संभव बनाया है.

पाकिस्तान पर दबाव और आतंकवाद के खिलाफ संदेश

राणा को भारत लाने से पाकिस्तान एक बार फिर वैश्विक मंच पर बेनकाब हो सकता है. वह लगातार यह कहता आया है कि 26/11 हमलों में उसका कोई हाथ नहीं था, लेकिन राणा और हेडली जैसे लोगों की गवाही से साबित होता है कि पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों की भूमिका इस हमले में स्पष्ट थी.

इससे भारत एक बार फिर दुनिया को यह दिखा सकता है कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर मोर्चे पर कार्रवाई करने में सक्षम है.

पीड़िता की प्रतिक्रिया: न्याय की आस

मुंबई हमले में घायल हुई देविका रोटावन ने राणा के प्रत्यर्पण पर कहा, "यह भारत के लिए आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ी जीत है. मैं चाहती हूं कि उसे यहां लाकर कड़ी से कड़ी सजा दी जाए और उससे पाकिस्तान में छिपे आतंकियों की जानकारी ली जाए.."

आगे की प्रक्रिया

राणा इस समय अमेरिकी जेल ब्यूरो की हिरासत में नहीं है, जिससे संकेत मिलता है कि प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. हालांकि आधिकारिक रूप से यह स्पष्ट नहीं है कि वह भारत के लिए रवाना हो चुका है या नहीं. भारत में राणा के खिलाफ एनआईए ने केस दर्ज किया है और उसके मुंबई आने के बाद स्थानीय पुलिस भी पूछताछ के लिए उसकी कस्टडी मांग सकती है'

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण न केवल भारत के न्यायिक सिस्टम की जीत है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीतिक शक्ति और रणनीतिक सोच का प्रमाण है. इससे दुनिया भर में यह संदेश गया है कि भारत अपने दुश्मनों को कानून के कटघरे में खड़ा करने में अब सक्षम है, चाहे वे कहीं भी छिपे हों.