डोभाल: मास्टर जासूस, संस्था निर्माता और सच्चे देशभक्त

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-05-2025
Doval: Master spy, institution builder and true patriot
Doval: Master spy, institution builder and true patriot

 

bhakarभास्कर ज्योति महंता

भारत के रणनीतिक मामलों के क्षेत्र में बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जिन्होंने अजित डोभाल, केसी जैसा अलग मुकाम हासिल किया हो.वे देश के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) हैं और कैबिनेट मंत्री के पद तक उनका पहुँचना इस बात का प्रमाण है कि सरकार को उनके रणनीतिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेश नीति के जटिल क्षेत्रों में उनकी नेतृत्व क्षमता पर कितना गहरा भरोसा है.इस लेख के माध्यम से, भारतीय रणनीतिक समुदाय में प्रचलित “डोभाल डॉक्ट्रिन” की उत्पत्ति, विकास और प्रभाव का विश्लेषण किया गया है.

इस सिद्धांत की शुरुआत को समझने के लिए, उस घटना का उल्लेख करना आवश्यक है जब डोभाल ने पहली बार दक्षिण ब्लॉक और पीएमओ का ध्यान खींचा.एक युवा भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी के रूप में, जब वे केरल में कार्यरत थे, उन्हें थालास्सेरी में भड़की एक सांप्रदायिक हिंसा को शांत करने की चुनौती मिली.स्थिति इतनी गंभीर थी कि कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.

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डोभाल ने इस चुनौती को पूरे आत्मविश्वास के साथ स्वीकार किया.लेकिन उनका तरीका पारंपरिक नहीं था.उन्होंने पहले कुछ दिन केवल खुफिया जानकारी जुटाने में लगाए — यह जानने के लिए कि हिंसा की असली वजह क्या है और समाधान का रास्ता कहाँ से निकलेगा.

जब वे दोनों समुदायों की ‘नब्ज़’ पकड़ चुके थे, तो उन्होंने लाठी और बंदूक की बजाय बातचीत और रणनीति के जरिए एक हफ्ते के भीतर शांति बहाल कर दी.यह उपलब्धि उनके प्रशासनिक और राजनीतिक वरिष्ठों दोनों के लिए अप्रत्याशित थी.यही कूटनीतिक कौशल आगे चलकर कंधार विमान अपहरण के दौरान भी काम आया, जब डोभाल ने असंभव दिखने वाली स्थिति को सरकार के लिए सम्मानजनक समाधान में बदल दिया.

जब उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो में अपनी सेवा शुरू की, तो मिज़ोरम और सिक्किम में उन्होंने खुद को साबित किया.मिज़ोरम में उन्होंने चीन समर्थित अलगाववादी संगठन मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई.उन्होंने MNF के सात प्रमुख कमांडरों में से छह को मुख्यधारा में शामिल कर लिया, जिससे संगठन की रीढ़ टूट गई.

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अंततः उसे लोकतंत्र में भागीदारी करनी पड़ी.यहां तक कि उनके आलोचक भी इस मिशन की सफलता का पूरा श्रेय डोभाल को देते हैं.सिक्किम में भी उन्होंने भारत की खुफिया एजेंसी के जनक आर. एन. काओ के साथ मिलकर राष्ट्रीय हित में कई अप्रत्याशित रणनीतियाँ अपनाईं और दुश्मन को निर्णायक चोट दी.

पंजाब में उग्रवाद को काबू करने और ऑपरेशन ब्लैक थंडर में उनके योगदान को भारत के राष्ट्रपति द्वारा “कीर्ति चक्र” से सम्मानित किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका संघर्ष केवल खुफिया स्तर पर नहीं बल्कि राष्ट्रीय बलिदान की भावना में भी था.

डोभाल की रणनीति को यदि क्रिकेट की भाषा में समझें तो वह है: “इंटेलिजेंस ने बॉल डाली, लॉ एनफोर्समेंट या सेना ने कैच पकड़ा.” यही रणनीति बाद में “डिफेंसिव आॅफेंस” के रूप में विकसित हुई, जो आज भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की रीढ़ बन चुकी है.

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इसका मूल सिद्धांत है — भारत अब सहिष्णुता या मौन की नीति नहीं अपनाएगा, बल्कि खतरे के स्रोत को ही खत्म करने के लिए कार्य करेगा. चाहे वह सीमा के भीतर हो या बाहर.इसका उदाहरण पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान के प्रति भारत के बदलते रुख में स्पष्ट देखा जा सकता है.

डोभाल केवल बल प्रयोग तक सीमित नहीं रहे.एक जासूस की तरह उन्होंने परिस्थिति अनुसार हथियार चुनने और उसका सही समय पर प्रयोग करने की रणनीति अपनाई.डोकलाम (2017) और गलवान (2020) में चीन से तनाव के दौरान उनकी कूटनीतिक समझ और संयमित दृष्टिकोण ने भारत को बिना युद्ध के संतुलन कायम रखने में मदद की.

इसी प्रकार, NSCN-IM जैसे संगठनों के मामले में भी उन्होंने संगठन को कमजोर करने के लिए धीरे-धीरे मनोबल गिराने की नीति अपनाई.डोभाल की एक विशेष पहचान जो अक्सर छूट जाती है, वह है उनका “संस्था निर्माण” की दिशा में योगदान.

उन्होंने जिस मेहनत और धैर्य से राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) को मजबूत किया और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड को पुनर्जीवित किया, वह किसी मैनेजमेंट स्कूल केस स्टडी से कम नहीं.

आज भारत की सुरक्षा नीति का केंद्र साउथ ब्लॉक से हटकर सरदार पटेल भवन में आ चुका है, जहां NSCS स्थित है.इसी के समानांतर उन्होंने भारत-अमेरिका संबंधों को नया आयाम दिया, खासकर क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (iCET) जैसी पहल के जरिए.

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लेखक जब असम पुलिस का नेतृत्व कर रहे थे, तब उन्हें डोभाल के साथ काम करने का अवसर मिला.लेखक ने देखा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में डोभाल राजनीति से ऊपर उठकर केवल राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते हैं.उन्होंने हमेशा “IPS” के “I” का मतलब ‘इंडियन’ बताया और अपने मूल आदर्शों को बनाए रखा.

एक कट्टरपंथी संगठन को प्रतिबंधित करने की योजना पर काम करते समय, लेखक और NIA सबूत इकट्ठा कर रहे थे, जबकि डोभाल पहले से ही प्रतिबंध के बाद की प्रतिक्रिया को कैसे नियंत्रित किया जाए, उस पर काम कर रहे थे.उन्होंने ऐसा जाल बुना जिससे संगठन के नेता अपनी ही समर्थक जनता में अविश्वास और उपहास का पात्र बन गए.

इस रणनीति का परिणाम यह हुआ कि आज तक इस कानूनी कार्रवाई के विरुद्ध एक भी प्रदर्शन नहीं हुआ.यही डोभाल की रणनीतिक दूरदृष्टि और अद्वितीय क्षमता को दर्शाता है.अंततः, डोभाल की सबसे बड़ी विरासत “डोभाल डॉक्ट्रिन” जरूर रहेगी, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने भारत को एक मजबूत सुरक्षा संस्थान देने में भी अहम भूमिका निभाई है.

(लेखक असम के पूर्व पुलिस महानिदेशक और वर्तमान में राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त हैं.)