दो सूफियों से टकराए सुल्तान और पीरों के शाप से उजड़ गए दो बसे-बसाए शहर

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 04-06-2023
 कच्छ का उजाड़ लखपत शहर, गुजरात
कच्छ का उजाड़ लखपत शहर, गुजरात

 

मंजीत ठाकुर

हिंदुस्तान में आकर इस्लाम ने यहां की स्थानीय परंपराओं को अपनाकर एक अलग रंग बिखेरना शुरू किया था और इसमें एक है सूफीवाद. दुनियाभर में विस्तारित सूफीवाद और भारत के सूफीवाद में एक महीन-सा अंतर है.

भारत भर में बहुत सारे सूफी, दरवेश, और फकीरों की दरगाहें और मजारें फैली हुई हैं और उनसे जुड़े उतने ही चमत्कारिक किस्से और जादू की कहानियां भी. सूफियों ने जनता के हक में कई दफा सुल्तानों और बादशाहों से भी टक्कर ली.

मिसाल के तौर पर, दिल्ली के तुगलकाबाद किले से जुड़ी कहानी हजरत निजामुद्दीन औलिया से जुड़ती है.

तुगलकाबाद का किला

उन दिनों दिल्ली में खिलजी वंश का राज था. सुल्तान का खासमखास कारिंदा था गाजी मलिक. एक शाम दोनों टहल रहे थे कि अचानक गाजी मलिक के मन में खयाल आया और उसने सुल्तान से कहा कि क्यों न दक्षिणी दिल्ली की पहाड़ी पर एक किला बनवा लिया जाए. सुल्तान ने हंसकर अपने कर्मचारी से कहा कि जब तुम सुल्तान बनोगे तो बनवा लेना.

भले ही सुल्तान ने अपने कारिंदे के साथ ठट्ठा किया था लेकिन ऐसा लग रहा है कि उसकी जबान पर सरस्वती बैठी थी.

बहरहाल, उसी गाजी मलिक ने 1321 में खिलजी वंश के सुल्तान को दिल्ली से खदेड़ दिया और तुगलक वंश की स्थापना की. यही गाजी मलिक, गयासुद्दीन तुगलक था.

अभिषेक श्रीवास्तव ने अपनी किताब में लिखा है, “वह सुल्तान बना तो अपना कहा भूला नहीं और उसने पहाड़ी पर किले बनाने का काम शुरू कर दिया. यह एक ऐसा किला होने वाला था जो मंगोलों को दूर रख सके. किला तो उसने बनवा लिया, लेकिन किस्मत उसके साथ नहीं थी.” 

Lakhpat fort

बेशक, गयासुद्दीन राजकाज के मामले में उदार सुल्तान था लेकिन किले बनाने की सनक में उसकी भिड़ंत सूफी हजरत निजामुद्दीन औलिया से हो गई. उन दिनों औलिया दिल्ली में एक बावली खुदवा रहे थे. लेकिन सुल्तान ने किले के काम को तेज करने के वास्ते हुक्म दिया कि दिल्ली के सभी मजदूरों को किले के काम में लगा दिया जाए. ऐसे में, बावली का काम रुक गया, और इससे औलिया खफा हो गए. उन्होंने किले को शाप दिया, ‘या रहे उज्जर, या रहे गुज्जर.’

श्रीवास्तव ने अपनी किताब कच्छ कथा में लिखा है, “यह शाप आठ सौ सालों से दिल्ली की छाती पर प्रेत की तरह चिपटा हुआ हुआ है. सल्तनत के पतन के बाद किले पर गुज्जरों ने कब्जा कर लिया.”

हालांकि, तुगलकाबाद किले के उजड़ने से जुड़ी एक और कहानी है. सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक बंगाल पर हमले के लिए गया हुआ था 1321 में उसने किले का काम शुरू करवाया था और जंग जीतकर 1324 में वह लौट रहा था. उसने आने की खबर सुनकर औलिया ने कहा, ‘हनजू दिल्ली दूर अस्त.’अभी दिल्ली दूर है.

लखपत का उजाड़ किला

बहरहाल, गयासुद्दीन दिल्ली लौट रहा था तो प्रयागराज के पास कारा में उसका बेटा मुहम्मद बिन तुगलक मिला. कई इतिहासकारों ने लिखा है कि बेटे के आदेश पर सुल्तान के ऊपर एक शामियाना गिरा दिया गया और उसकी वहीं मौत हो गई.

बहरहाल, तुगलक जब तुगलकाबाद किले में पहुंचा तो उसे पता चला कि वहां पानी नहीं है और दो-तीन साल के अंदर वह किला उजाड़ हो गया.

कमाल यह है कि ऐसा ही एक वाकया गुजरात में भी है. वहां भी राजा महाराव रायधन थे और उनका खामखास कारिंदा था फतेह मोहम्मद. ठीक वैसे ही, जैसे गाजी मलिक खिलजी सुल्तानों का कारिंदा था.

फतेह मोहम्मद ने कुछ अन्य दरबारियों के साथ मिलकर रायधन का तख्तापलट कर दिया और वहां का शासक बन बैठा. शासक बनने के बाद उसने एक शहर बसाया जिसका नाम लखपत रखा गया. लखपत शहर के नामकरण के पीछे कई कहानियां हैं. पर कच्छ कथा में दो किस्सों का उल्लेख है.

जिसमें पहला किस्सा है लखपत का नाम कच्छ के पहले राजा लाखा के नाम पर रखा गया. श्रीवास्तव अपनी किताब में इतिहासकार एल.वी. वोरा को उद्धृत करते हुए कहते हैं, कि लखपत में एक दिन में लाख कोरियों का कारोबार होता था इसी से इस शहर का नाम लखपत पड़ा.

मूसा पीर की दरगाह लखपत

बहरहाल, लखपत से थोड़ी ही दूर पर एक गांव था मोटी बेर. मोटी का अर्थ गुजरात बड़ी होता है. समुद्री व्यापार से इस समृद्ध इस गांव की दौलत पर फतेह मोहम्मद की नजर बहुत समय से थी. पर, मोटी बेर में एक सूफी मूसा पीर की खानकाह थी.

किस्से हैं कि जब भी फतेह मोहम्मद फौज-फाटा लेकर मोटी बेर के पास आते, अंधेरा छा जाता. अपनी समस्या लेकर फतेह मोहम्मद दूसरे सूफी सांवला डांडा के पास गया. सांवला डांडा ने उसको बताया कि मूसा पीर के होते हुए तुम मोटी बेर का बाल तक बांका नहीं कर सकते. और गांव को जीतने के लिए उसको मूसा पीर के मदीने जाने का इंतजार करना होगा.

मूसा पीर जब उमरा के लिए निकले तो फतेह मोहम्मद ने गांव पर हमला कर दिया और खूब लूट-खसोट की. मूसा पीर को इबादत के बीच में ही यह बात पता चल गई लेकिन उन्होंने पहले गांव लौटना मुनासिब समझा और जब वह लौटे तो गांव की हालत देखकर फतेह मोहम्मद को शाप दे दिया.

श्रीवास्तव लिखते हैं, “उनके शाप की वजह से लखपत में महामारी फैल गईऔर फतेह मोहम्मद चल बसा. कुछ साल बाद 1819 में जोरदार भूकंप आया और लखपत से होकर गुजरने वाली नदी कोरी (सिंधु की शाखा) ने रास्ता बदल दिया.”

कहते हैं कि उस भूकंप में नदी के रास्ते में जमीन ऊपर को उठ गई और उसको आज भी अल्लाबंद यानी अल्लाह का बनाया बांध कहते हैं.

लखपत का पानी खत्म हो गया और वह पूरा शहर उजाड़ हो गया.

दो सूफियों से दो सुल्तानों के टकराव ने दो शहरों को उजाड़ कर दिया और कमाल की बात यही है कि दोनों शहरों के उजड़ने की दास्तान भी एक जैसी है.