बिहार की बेटी तैयबा अफरोज़ की कहानी महज़ एक पायलट बनने की यात्रा नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, समर्पण और सपनों की ऊंची उड़ान का जीवंत दस्तावेज़ है. 'पायलट ऑन मोड', 'बॉर्न टू फ्लाई' और 'ड्रीम, अचीव, फ्लाई' जैसे टैगलाइन उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल पर भले ही आकर्षक नज़र आएं, लेकिन इन पंक्तियों के पीछे एक ऐसी सच्चाई छुपी है, जिसमें एक आम गांव की लड़की ने अपने परिवार की आखिरी पूंजी — पुश्तैनी ज़मीन — को बेचकर वो कर दिखाया जो समाज ने कभी सोचा भी नहीं था.यहां प्रस्तुत है पटना से नौशाद अख्तर की विस्तृत रिपोर्ट
तैय्यबा बिहार के जलालपुर गांव से ताल्लुक रखती हैं. उनके पिता मतिउल हक़ एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे, जबकि मां समसुन निशा गृहिणी हैं. आर्थिक रूप से सीमित संसाधनों में भी उनके घर में बड़े सपने पनपते थे. बचपन से ही तैय्यबा की ख्वाहिश थी — "मैं हवाई जहाज़ उड़ाना चाहती हूं." गांव की लड़कियों के लिए ऐसा सपना देखना भी असामान्य माना जाता है, मगर तैय्यबा की आंखों में ये सपना बसा था.

जब उन्होंने 12वीं की पढ़ाई पूरी की और अपने परिवार से पायलट बनने की बात कही, तो सभी हैरान रह गए। मगर उनके पिता ने उनका साथ दिया.उनकी मेधा, मेहनत और लगन को देखकर पिता ने एक कठिन लेकिन निर्णायक कदम उठाया — उन्होंने अपनी पुश्तैनी ज़मीन बेच दी ताकि बेटी को उड़ान भरने का मौका मिल सके. यह रकम तैय्यबा को ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित सरकारी एविएशन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में दाखिला दिलाने के लिए काफी थी. मगर ये सिर्फ शुरुआत थी.
कुछ समय बाद ही तैय्यबा को गॉल ब्लैडर में पथरी की बीमारी हो गई और मेडिकल जांच में उन्हें "फ्लाइंग के लिए अनफिट" घोषित कर दिया गया। परिवार पर जैसे वज्र गिर पड़ा. ज़मीन जा चुकी थी, और अब सपनों की उड़ान पर भी ब्रेक लग चुका था, लेकिन तैय्यबा ने हार नहीं मानी. उन्होंने सर्जरी करवाई, स्वास्थ्य लाभ किया और दोबारा ट्रेनिंग में शामिल हो गईं. इस बीच उन्होंने लगभग 80 घंटे की फ्लाइंग पूरी कर ली थी कि एक और हादसा सामने आया — एक साथी ट्रेनी पायलट की दुर्घटना में मृत्यु हो गई. मानसिक रूप से वह बुरी तरह प्रभावित हुईं और प्रशिक्षण से कुछ समय के लिए दूर हो गईं.
परिवार ने फिर से उन्हें संबल दिया. बैंक ऑफ इंडिया से लोन लिया गया और साथ ही रिटायर्ड डीजीपी की मदद से तैय्यबा को मध्य प्रदेश के इंदौर फ्लाइंग क्लब में दोबारा प्रशिक्षण का अवसर मिला. वहां उन्होंने बाक़ी 120 घंटे की फ्लाइंग पूरी की और DGCA से कमर्शियल पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया. यह सफर आसान नहीं था. यह तीन साल की कठिन ट्रेनिंग थी जिसमें ना केवल टेक्निकल ज्ञान, सिम्युलेटर पर अभ्यास, बल्कि खराब मौसम, मानसिक तनाव और लंबी उड़ानों जैसी परिस्थितियों से जूझना शामिल था. तैय्यबा कहती हैं, “100 घंटे की सोलो फ्लाइट सबसे चुनौतीपूर्ण थी, पर डर को कभी सिर पर चढ़ने नहीं दिया.
लाइसेंस मिलने के बाद उनकी कहानी देशभर में चर्चा का विषय बन गई. उन्होंने मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हर मंच पर तारीफ़ें बटोरीं. मगर जैसा अक्सर होता है, आलोचनाएं भी सामने आईं.
कुछ कट्टर धार्मिक विचारधाराओं ने उनके बुर्का न पहनने और यूनिफॉर्म में आने पर आपत्ति जताई. तैय्यबा ने शांतिपूर्वक और बेबाकी से जवाब दिया — “कॉकपिट में कोई ड्रेस कोड नहीं होता. जहाज़ को फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या पहनते हैं या कहां से आते हैं.” यह जवाब एक सोच बदल देने वाला था.
उनकी पहली तनख्वाह ₹1.5 लाख प्रति माह है, लेकिन तैय्यबा के लिए ये मात्र एक आंकड़ा है. असली जीत उस पहचान की है जिसे उन्होंने खुद अपने संघर्ष से गढ़ा है — एक ऐसी पहचान जो समाज की रुढ़ियों को तोड़ती है, बेटियों को प्रेरणा देती है और हर माता-पिता को यह विश्वास दिलाती है कि बेटी का सपना किसी बेटे से कम नहीं होता.
तैयबा अफरोज के पिता मतिउल हक और मां समसुन निशा सारण जिले के छोटे से गांव जलालपुर के अपने घर पर
तैय्यबा की कहानी जितनी प्रेरक है, उतनी ही उनके पिता की भी है. वह कहते हैं, “अगर मैंने ज़मीन बेची, तो मेरी बेटी ने आसमान ख़रीदा.” यही वाक्य उनके पूरे संघर्ष को बयां कर देता है.
वह हर उस पिता के लिए आदर्श हैं जो अपनी बेटी के सपनों के रास्ते में समाज के डर से रुक जाते हैं. तैय्यबा अफ़रोज़ आज सिर्फ एक पायलट नहीं हैं — वह उम्मीद की नई उड़ान हैं. उन्होंने साबित कर दिया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर सपनों में उड़ान हो और परिवार का साथ हो, तो कोई भी लड़की आसमान की ऊंचाइयों को छू सकती है.
उनकी कहानी सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है — एक संदेश कि बेटियां सिर्फ बोझ नहीं, बल्कि वो ताकत हैं जो दुनिया को नई दिशा दे सकती हैं.
जहां एक तरफ़ समाज ने उन्हें रोका, वहीं तैय्यबा ने अपनी मेहनत से सबका मुंह बंद कर दिया. अब जब कोई कहे, “लड़कियां क्या कर सकती हैं?”, तो जवाब में केवल एक नाम काफी है — "तैय्यबा अफ़रोज़" — जो अब आसमान की सरहदें तय कर रही हैं.