आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
सांप्रदायिक सद्भाव और आपसी समझ को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने आज नई दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में 50 से अधिक मुस्लिम धर्मगुरुओं और विद्वानों के साथ संवाद किया. इस बैठक में आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी—महासचिव दत्तात्रेय होसबोले, संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल, वरिष्ठ नेता रामलाल और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) के प्रमुख इंद्रेश कुमार भी शामिल रहे.
सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डॉ. उमर अहमद इलियासी समेत कई प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु, बुद्धिजीवी और समाज के प्रतिष्ठित चेहरे उपस्थित थे. आरएसएस की यह पहल ऐसे समय में आई है जब संगठन पर अक्सर ध्रुवीकरण और सांस्कृतिक विभाजन के आरोप लगते रहे हैं.
पृष्ठभूमि और निरंतर संवाद
गौरतलब है कि आरएसएस मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद के लिए वर्षों से प्रयासरत रहा है. इसके तहत मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) के माध्यम से संगठन मुस्लिम नेताओं, धार्मिक विद्वानों और बुद्धिजीवियों के साथ निरंतर संवाद करता आया है. वर्ष 2023 में एमआरएम ने "एक राष्ट्र, एक ध्वज, एक राष्ट्रगान" के विचार को मजबूत करने के लिए देशव्यापी अभियान की घोषणा की थी.
पहले भी हो चुकी हैं मुलाकातें
सितंबर 2022 में भी डॉ. मोहन भागवत ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संवाद किया था, जहां ज्ञानवापी मस्जिद विवाद, हिजाब प्रकरण और जनसंख्या नियंत्रण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई थी. उस बैठक में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एसवाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, एएमयू के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और उद्योगपति सईद शेरवानी जैसे प्रतिष्ठित चेहरे शामिल थे.
मदरसे और मस्जिद का भी दौरा
उसी वर्ष मोहन भागवत ने दिल्ली की एक मस्जिद और मदरसे का भी दौरा किया था. उनके साथ इंद्रेश कुमार भी मौजूद थे. अक्टूबर 2022 में इंद्रेश कुमार ने हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह जाकर मिट्टी के दीये जलाए और शांति का संदेश दिया.
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था, “धर्म परिवर्तन और हिंसा के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. सभी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, साथ ही दूसरों के धर्मों का सम्मान भी ज़रूरी है.”
आपसी खाई को पाटने की दिशा में कदम
आज की बैठक को इस दिशा में एक ठोस प्रयास माना जा रहा है, जो हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच भरोसे की खाई को पाटने और आपसी संवाद को सशक्त करने की कोशिश है. आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “यह कोई नई पहल नहीं है. डॉ. भागवत पहले भी मुस्लिम बुद्धिजीवियों और धार्मिक नेताओं से मिलते रहे हैं। हमारा उद्देश्य केवल संवाद के ज़रिए आपसी दूरियों को खत्म करना है.”
राजनीतिक और सामाजिक संकेत
इस बैठक को राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. यह संवाद ऐसे समय में हुआ है जब देश में धार्मिक ध्रुवीकरण और सामाजिक विभाजन के आरोप आरएसएस पर अक्सर लगाए जाते हैं. भागवत की यह पहल दिखाती है कि संगठन धार्मिक विविधता और सामाजिक समरसता को लेकर गंभीर प्रयास कर रहा है.
डॉ. भागवत का यह कदम हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में विश्वास बहाली की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है. संवाद और सहअस्तित्व की भावना को बल देने के लिए इस प्रकार की पहलें न केवल ज़रूरी हैं, बल्कि आज के सामाजिक परिदृश्य में अत्यंत प्रासंगिक भी हैं. जब दोनों समुदायों के बीच संवाद बढ़ेगा, तो नफरत की दीवारें अपने आप गिरेंगी.