आरएसएस किसी धर्म के खिलाफ नहीं है: मुस्लिम बुद्धिजीवियों से बोले मोहन भागवत

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 25-07-2025
RSS is not against any religion: Mohan Bhagwat spoke to Muslim intellectuals
RSS is not against any religion: Mohan Bhagwat spoke to Muslim intellectuals

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में देश के प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवियों और सामाजिक प्रतिनिधियों के साथ एक महत्वपूर्ण संवाद में यह स्पष्ट किया कि संघ का किसी भी धर्म से कोई विरोध नहीं है. उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि आरएसएस का उद्देश्य भारत को एक समावेशी, आत्मनिर्भर और सशक्त राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ाना है, जिसमें हर धर्म, जाति और समुदाय को बराबरी का स्थान और सम्मान मिले.
 
इस संवाद का आयोजन दिल्ली में एक निजी स्थान पर किया गया था, जिसमें कई मुस्लिम शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और धर्मगुरु शामिल हुए. इस चर्चा का उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच व्याप्त भ्रांतियों को दूर करना और आपसी विश्वास तथा संवाद को बढ़ावा देना था। मोहन भागवत ने इस अवसर पर कहा कि भारत की संस्कृति मूलतः समावेशी है और यहां पर विविधताओं में एकता की परंपरा रही है. संघ भी इसी सोच के साथ कार्य करता है.
 
भागवत ने कहा, "हमारे लिए हर भारतीय एक समान है, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो। हम इस बात में विश्वास रखते हैं कि देश को आगे ले जाने के लिए सभी समुदायों को मिलकर काम करना होगा। हम न किसी के खिलाफ हैं और न किसी को हटाने की बात करते हैं। हम जोड़ने का काम करते हैं, तोड़ने का नहीं."
 
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ के बारे में जो नकारात्मक धारणाएं समाज में प्रचलित हैं, वे प्रायः गलतफहमियों पर आधारित हैं। "हमारे दरवाजे हमेशा खुले हैं। अगर कोई हमें समझना चाहता है, तो वह हमारे कार्यक्रमों में आकर खुद देख सकता है कि हम क्या करते हैं, क्या सोचते हैं। हम किसी धर्म के विरोधी नहीं हैं, बल्कि सभी धर्मों के मूल्यों का सम्मान करते हैं."
 
इस दौरान मुस्लिम प्रतिनिधियों ने भी समाज में व्याप्त असुरक्षा की भावना, सांप्रदायिक तनाव और कुछ नेताओं द्वारा दिए जाने वाले विभाजनकारी बयानों पर चिंता व्यक्त की। मोहन भागवत ने उनके सवालों का धैर्यपूर्वक जवाब दिया और आश्वासन दिया कि संघ कभी किसी प्रकार के धार्मिक उन्माद या घृणा का समर्थन नहीं करता।
 
उन्होंने कहा, "हिंदू और मुसलमान दोनों इसी देश की संतान हैं. हमारे पूर्वज एक हैं. भले ही पूजा पद्धतियां अलग हों, लेकिन मूल भावना एक है – मानवता की सेवा और राष्ट्र के प्रति समर्पण. यदि हम इस एकता को पहचानें और उसे आधार बनाकर आगे बढ़ें, तो कोई भी ताकत हमें विभाजित नहीं कर सकती."
 
भागवत ने यह भी कहा कि समाज में नफरत फैलाने वाले तत्व हर समुदाय में होते हैं, और इनसे सावधान रहना सभी की जिम्मेदारी है. उन्होंने मुस्लिम समुदाय से अपील की कि वे अपने युवाओं को शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक सेवा की दिशा में प्रेरित करें, ताकि वे मुख्यधारा में सक्रिय भूमिका निभा सकें.
 
इस मुलाकात के दौरान यह भी निर्णय लिया गया कि हिंदू-मुस्लिम संवाद को और व्यापक बनाने के लिए देशभर में इसी तरह के संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. यह पहल सामाजिक सौहार्द को मज़बूत करने और सांप्रदायिक तनावों को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखी जा रही है.
 
आरएसएस प्रमुख की इस पहल को राजनीतिक विश्लेषकों ने भी सराहा है. उनका मानना है कि जब देश में धार्मिक ध्रुवीकरण की बातें चल रही हैं, तब मोहन भागवत द्वारा खुले संवाद और समावेशी सोच को बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण संदेश है। इससे यह संकेत मिलता है कि संघ अब सामाजिक समरसता की दिशा में अधिक सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है.
 
इस बातचीत के अंत में सभी प्रतिभागियों ने इस प्रयास की सराहना की और भविष्य में भी आपसी सहयोग व संवाद बनाए रखने की इच्छा जताई.
 
भारत जैसे विविधताओं वाले देश में ऐसे संवादों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है, जहां धर्म, भाषा, जाति और संस्कृति की भिन्नता के बावजूद एकता को कायम रखना ही राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति है। मोहन भागवत की यह पहल उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है.