दिल्ली में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल: मुस्लिम पड़ोसियों की मदद से लक्ष्मी नारायण मंदिर का पुनर्निर्माण

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  [email protected] | Date 21-07-2025
An example of communal harmony in Delhi: Lakshmi Narayan temple rebuilt with the help of Muslim neighbours
An example of communal harmony in Delhi: Lakshmi Narayan temple rebuilt with the help of Muslim neighbours

 

ओनिका माहेश्वरी / नई दिल्ली

नई दिल्ली के जाफराबाद इलाके से एक ऐसी खबर आई है, जो आज के माहौल में गंगा-जमुनी तहज़ीब की सबसे खूबसूरत तस्वीर पेश करती है. यह कहानी है मुस्लिम बहुल आबादी वाले ‘अमन लेन’ में स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर की, जो वर्षों से जर्जर हालत में था. हाल ही में इसका पुनर्निर्माण हुआ और इस पुनर्निर्माण में स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने ऐसा योगदान दिया, जिसने हर किसी को प्रभावित किया.

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में कुछ साल पहले सांप्रदायिक तनाव के काले बादल छाए थे, लेकिन आज वही इलाका भाईचारे की मिसाल बन रहा है. जाफराबाद का यह मंदिर न सिर्फ पूजा का स्थान है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक बन गया है कि जब मोहब्बत दिल से निकले तो धर्म की दीवारें बेमानी हो जाती हैं.

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नए मंदिर में पूर्जा-अर्चना

75 साल पुरानी धरोहर का कायाकल्प

स्थानीय लोगों का कहना है कि लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण पहली बार 1957 में हुआ था. समय के साथ यह मंदिर इतना जर्जर हो गया कि उसकी छतें टूटने लगीं. पूजा-पाठ करना लगभग असंभव हो गया. तब मंदिर निर्माण समिति ने फैसला लिया कि इसका पुनर्निर्माण करना जरूरी है. समिति के सदस्यों ने आस-पड़ोस के निवासियों से सहयोग की अपील की. सबसे पहले मदद का हाथ मुस्लिम पड़ोसियों ने बढ़ाया.

पुजारी लालमणि शुक्ला बताते हैं, “अगर हमारे मुस्लिम भाइयों का साथ नहीं मिलता तो शायद यह काम इतनी जल्दी और आसानी से नहीं हो पाता. संकरी गली में निर्माण सामग्री रखी गई तो मुस्लिम परिवारों ने अपने घरों से रास्ता दिया. पानी की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपने समरसेबल पंप से पानी उपलब्ध कराया. यहां तक कि मूर्ति स्थापना के दिन प्रसाद भी हमारे मुस्लिम भाई बिट्टू के घर पर बना और सबने मिलकर भंडारा किया.”

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पुजारी की भावुकता और विधायक का योगदान

पुजारी लालमणि शुक्ला पिछले 23 साल से इस मंदिर की सेवा कर रहे हैं. मंदिर के पुनर्निर्माण पर वे भावुक होकर कहते हैं, “हमने जैसे-तैसे पैसे इकट्ठे किए, लेकिन असली मदद हमारे मुस्लिम भाइयों और स्थानीय विधायक चौधरी जुबैर अहमद ने की। विधायक जी ने साफ कहा – ‘पंडित जी, आप बनवाइए, कोई दिक्कत आए तो मुझे बताइए। मैं आपके साथ खड़ा हूं.’”

सीलमपुर से विधायक चौधरी जुबैर अहमद ने न सिर्फ आर्थिक सहयोग दिया बल्कि यह सुनिश्चित किया कि काम में कोई रुकावट न आए. उन्होंने कहा, “मेरे पिता मतीन अहमद ने हमेशा हमें सिखाया कि इंसानियत सबसे ऊपर है. यह मंदिर हमारे इलाके की सांस्कृतिक धरोहर है और इसका निर्माण भाईचारे का संदेश है.”

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जाफराबाद का भाई चारा

हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

इस मंदिर का पुनर्निर्माण एक ऐसी मिसाल है, जो यह साबित करता है कि दिल्ली की आत्मा उसकी विविधता और साझी संस्कृति में बसती है. स्थानीय निवासी अकरम खान ने बताया, “हमारे मोहल्ले में कभी भी किसी धर्म को लेकर मतभेद नहीं हुआ. मंदिर हो या मस्जिद, ये सब हमारी साझा पहचान का हिस्सा हैं. जब हमें पता चला कि मंदिर की हालत खराब है, तो हमने तुरंत मदद करने का फैसला किया.”

पुनर्निर्माण के बाद मूर्ति स्थापना और हवन-पूजन का भव्य आयोजन किया गया. इस दिन हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एक साथ बैठे, प्रसाद ग्रहण किया और भाईचारे का संदेश दिया. मंदिर समिति के अध्यक्ष रामकुमार पांडे ने कहा, “यह सिर्फ मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं, बल्कि समाज में प्यार और सहयोग की जीत है.”

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सद्भावना कांवड़ शिविर – भाईचारे का प्रतीक

मंदिर निर्माण के कुछ ही दिनों बाद विधायक चौधरी जुबैर अहमद ने 16 जुलाई को ‘सद्भावना कांवड़ सेवा शिविर’ की शुरुआत की. दिल्ली की नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने इसका उद्घाटन किया. आतिशी ने कहा, “यह शिविर और मंदिर का पुनर्निर्माण उन लोगों को करारा जवाब है, जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाते हैं। असली भारत वही है, जहां मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे साथ-साथ खड़े होते हैं.”

चौधरी जुबैर ने बताया कि यह शिविर उनके पिता मतीन अहमद ने 1994 में शुरू किया था. हर साल मुस्लिम समुदाय शिव भक्तों को भोजन, पानी और आश्रय उपलब्ध कराता है. जुबैर कहते हैं, “धर्म के नाम पर नफरत फैलाना आसान है, लेकिन मोहब्बत का पैगाम देना ही असली सेवा है.”

सांस्कृतिक महत्व और सामाजिक संदेश

मंदिर के पुनर्निर्माण को स्थानीय लोग सिर्फ धार्मिक घटना नहीं मानते. यह एक सांस्कृतिक संदेश है कि विविधता ही दिल्ली की असली ताकत है. जब जाफराबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाके में हिंदू-मुस्लिम मिलकर मंदिर बनाते हैं, तो यह देशभर के लिए प्रेरणादायक उदाहरण बनता है.

एक बुजुर्ग स्थानीय निवासी ने कहा, “हमने अपनी आंखों से देखा कि कैसे हिंदू और मुस्लिम भाई एक साथ ईंटें उठाकर, पानी भरकर और प्रसाद बनाकर मंदिर खड़ा कर रहे थे। यह नजारा किसी त्यौहार से कम नहीं था.”

गंगा-जमुनी तहज़ीब का संदेश

दिल्ली का इतिहास हमेशा से साझी संस्कृति और भाईचारे का रहा है. चाहे पुरानी दिल्ली की गलियां हों या सीलमपुर-जाफराबाद का इलाका, यहां मंदिर और मस्जिद दोनों ही बराबर की अहमियत रखते हैं. लक्ष्मी नारायण मंदिर का यह पुनर्निर्माण उसी तहज़ीब का हिस्सा है.

यह घटना न केवल धार्मिक श्रद्धा की मिसाल है, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि जब लोग एकजुट होते हैं, तो हर मुश्किल काम आसान हो जाता है। यह संदेश सिर्फ दिल्ली के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है.