हिन्दी पत्रकारिता और आज का समाज

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 16-09-2024
Special on Hindi Day: Hindi journalism and today's society
Special on Hindi Day: Hindi journalism and today's society

 

मो जबिहुल कमर जुगनू

हिन्दी दिवस हर वर्ष 14सितम्बर को मनाया जाता है. यह दिन हमें न केवल हमारी मातृभाषा की महत्ता का स्मरण कराता है, बल्कि हिन्दी भाषा की शुद्धता और उसके सही प्रयोग के प्रति भी जागरूक करता है. हिन्दी पत्रकारिता का हमारे समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम के समय हिन्दी पत्रकारिता ने जन-जागरण और राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभाई. आज के आधुनिक और डिजिटल युग में भी हिन्दी पत्रकारिता का अपना एक विशेष स्थान है.

लेकिन, समय के साथ भाषा में आई लापरवाही और गलत शब्दों के प्रयोग ने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है. इस लेख में हम हिन्दी पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति, भाषा की शुद्धता, और इसके प्रयोग में हो रही लापरवाही पर चर्चा करेंगे.

1. हिन्दी पत्रकारिता में भाषा की शुद्धता और सामान्य त्रुटियाँ

हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है. जब 1826में पंडित युगल किशोर शुक्ल ने 'उदन्त मार्तण्ड' नामक पहला हिन्दी अखबार प्रकाशित किया, तब से लेकर आज तक हिन्दी पत्रकारिता ने समाज को दिशा दी है.

परंतु वर्तमान समय में पत्रकारिता में भाषा की शुद्धता को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं. बड़े-बड़े अखबारों और समाचार चैनलों में छोटी-मोटी त्रुटियाँ आम हो गई हैं. यह त्रुटियाँ सिर्फ भाषा की सजावट तक सीमित नहीं हैं, बल्कि शुद्धता में भी कमी दिखाई देती है.

पत्रकारिता का उद्देश्य समाज को सही जानकारी देना और जनमानस की सोच को सही दिशा में मार्गदर्शन करना होता है. यदि भाषा ही त्रुटिपूर्ण होगी, तो समाज में गलत धारणाएँ और भ्रांतियाँ फैल सकती हैं.

सही भाषा और शुद्ध उच्चारण न केवल संवाद को स्पष्ट बनाते हैं, बल्कि इससे समाचार और विचारों की विश्वसनीयता भी बढ़ती है. कई बार ऐसी स्थितियाँ सामने आई हैं, जब किसी विशेष खबर को लेकर जनता भ्रमित हो जाती है, और इसका कारण सही शब्दों और व्याकरण का अभाव होता है.

1.1 ग़लत उच्चारण और शब्दों के प्रयोग की पहचान

हाल के वर्षों में, कई समाचार चैनलों और बड़े समाचार पत्रों में 'विशेष' शब्द को 'विशिष्ट' के रूप में इस्तेमाल करने की गलत प्रवृत्ति देखी गई है. 'विशेष' का अर्थ होता है कुछ खास या महत्वपूर्ण, जबकि 'विशिष्ट' का अर्थ होता है अलग या विशिष्ट प्रकार का. उदाहरण के तौर पर:

सही: "यह एक विशेष रिपोर्ट है."

ग़लत: "यह एक विशिष्ट रिपोर्ट है."

इस प्रकार की गलतियाँ पाठकों में भ्रम उत्पन्न कर सकती हैं और भाषा के मूल अर्थ में अंतर डाल देती हैं.

1.2. मौसम से जुड़ी गलतियाँ

समाचारों में 'मौसम' से संबंधित रिपोर्ट्स में भी कई बार त्रुटियाँ देखने को मिलती हैं. उदाहरण के लिए, 'मानसून' और 'मौसम' शब्दों के बीच का अंतर. 'मानसून' एक विशेष मौसम चक्र होता है, जबकि 'मौसम' एक सामान्य स्थिति होती है.

सही: "देश में मानसून की बारिश हो रही है."

ग़लत: "देश में मौसम की बारिश हो रही है."

इस तरह की गलतियाँ रिपोर्ट्स की सटीकता को कमजोर करती हैं और भाषा में शुद्धता बनाए रखने की आवश्यकता को दर्शाती हैं.

1.3. संविधान से जुड़े शब्दों का गलत प्रयोग

कई बार राजनीतिक और कानूनी मामलों में 'संविधान' और 'नियम' शब्दों का गलत प्रयोग होता है. संविधान एक देश के लिए एक मौलिक कानून होता है, जबकि नियम किसी विशेष संस्था या प्रक्रिया के लिए बनाए जाते हैं. उदाहरण के तौर पर:

सही: "इस मामले में संविधान का उल्लंघन हुआ है."

ग़लत: "इस मामले में नियम का उल्लंघन हुआ है."

पत्रकारों को इस प्रकार के संवेदनशील विषयों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि समाज को सही जानकारी मिल सके.

1.4. राजनीतिक नामों की त्रुटियाँ

कई बार नेताओं या राजनीतिक दलों के नामों का गलत उच्चारण या गलत वर्तनी अखबारों और टीवी चैनलों में देखी जाती है. उदाहरण के लिए, 'राहुल गांधी' को 'राहूल गांधी' लिखा गया, जो पूरी तरह से गलत है. यह त्रुटियाँ एक व्यक्ति की पहचान को भी प्रभावित करती हैं और पत्रकारिता में जिम्मेदारी की कमी को उजागर करती हैं.

1.5. 'चरणबद्ध' और 'चरम' शब्दों में भ्रम

हिन्दी पत्रकारिता में अक्सर 'चरणबद्ध' (step-wise) और 'चरम' (extreme) शब्दों के बीच भी भ्रम देखा जाता है.

सही: "योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा."

ग़लत: "योजना को चरम तरीके से लागू किया जाएगा."

यह शब्दों के सही अर्थ की समझ और उनकी स्थिति के अनुसार सही प्रयोग की जरूरत को दर्शाता है.

1.6. विज्ञापन की भाषा में गलतियाँ

विज्ञापन जगत में भी हिन्दी भाषा के गलत प्रयोग आम हो गए हैं. उदाहरण के लिए, 'ताज़ा' शब्द का सही प्रयोग होता है जो ताजगी को दर्शाता है, जबकि कई बार इसे 'ताजा' लिखा जाता है, जो पूरी तरह गलत है.

सही: "इस ब्रांड का दूध ताज़ा है."

ग़लत: "इस ब्रांड का दूध ताजा है."

विज्ञापनों की भाषा लोगों के मन में छाप छोड़ती है, इसलिए इसका सही होना आवश्यक है.

1.7. कर्मवाच्य और कर्तृवाच्य में भ्रम

अक्सर समाचार पत्रों में 'कर्मवाच्य' और 'कर्तृवाच्य' वाक्यों में भी गलतियाँ देखी जाती हैं. उदाहरण के लिए:

सही: "प्रधानमंत्री ने योजना की शुरुआत की."

ग़लत: "योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री द्वारा की गई."

यह वाक्य रचना की गलतियाँ अखबारों और मीडिया में स्पष्टता की कमी को दर्शाती हैं.

1.8. सांस्कृतिक नामों में गलतियाँ

कई बार हिन्दी अखबारों में सांस्कृतिक और धार्मिक नामों को भी गलत ढंग से लिखा जाता है. उदाहरण के लिए 'रामायण' को 'रामायन' और 'महाभारत' को 'महाभरत' लिखा जाता है.

सही: "रामायण और महाभारत भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं."

ग़लत: "रामायन और महाभरत भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं."

धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों के नामों में लापरवाही समाज में गलत संदेश भेज सकती है.

2. अनुस्वार और शब्दों के गलत प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति

आजकल पत्रकारिता में अनुस्वार और शब्दों के गलत प्रयोग की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. वरिष्ठ लेखक और पत्रकार ओम थानवी ने भी इस प्रवृत्ति पर चिंता जताई थी. उन्होंने सोशल मीडिया facebook पर एक पोस्ट डालते हुए कहा था कि "बेवजह दुनिया को 'दुनियां', झूठ को 'झूँठ', साझा को 'साँझा', हाथ को 'हांथ', पूछना को 'पूंछना', मानो को 'मानों' लिखने वालों की कमी नहीं है." यह प्रवृत्ति भाषा की शुद्धता पर गहरा प्रभाव डालती है.

हिन्दी भाषा में अनुस्वार का अपना एक विशिष्ट स्थान है. इसका सही प्रयोग भाषा को सरल और समझने योग्य बनाता है. परंतु जब इसका गलत तरीके से प्रयोग होता है, तो भाषा का स्वरूप बिगड़ जाता है. 'दुनिया' को 'दुनियां' या 'हाथ' को 'हांथ' लिखने से न केवल भाषा की मौलिकता प्रभावित होती है, बल्कि इसका प्रभाव उन पाठकों पर भी पड़ता है जो इन गलतियों से सीख रहे होते हैं.

बड़े-बड़े अखबारों में अक्सर ऐसी त्रुटियाँ देखने को मिलती हैं, जो धीरे-धीरे समाज में भी अपनी जगह बना लेती हैं. सही शब्दों और सही उच्चारण का प्रयोग समाज को एक सटीक दिशा में मार्गदर्शन करता है. जब पत्रकार और लेखक इस प्रकार की गलतियाँ करते हैं, तो इसका असर आम जनता पर भी पड़ता है, और वे भी वही गलतियाँ दोहराते हैं जो वे पढ़ते या सुनते हैं.

3. नेताओं और मीडिया द्वारा भाषा में हो रही गलतियाँ और उनका समाज पर प्रभाव

नेताओं, मीडिया और प्रमुख सार्वजनिक व्यक्तियों का भाषण समाज पर गहरा प्रभाव डालता है. जो शब्द और वाक्य वे उपयोग करते हैं, वह समाज के लिए मानक बन जाते हैं. आजकल यह देखा जा रहा है कि कई नेता अपने भाषणों में गलत शब्दों और व्याकरण का प्रयोग कर रहे हैं.

डॉ. सुरेश पंत ने अपनी पुस्तक 'भाषा के बहाने' में इसका उल्लेख किया है. उन्होंने कहा कि तमाम नेता — प्रधानमंत्री सहित — अपने संबोधनों में "देशवासियो" कहने की जगह "देशवासियों", "मित्रो" को "मित्रों", "भाइयो-बहनो" को "भाईयों-बहनों" या "बच्चो" को "बच्चों" कहने लगे हैं. यह गलतियाँ समाज पर एक नकारात्मक प्रभाव डालती हैं.

जब प्रमुख लोग गलत भाषा का प्रयोग करते हैं, तो आम जनता भी इसे सही मानने लगती है. इससे भाषा का शुद्ध रूप धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है और गलत प्रयोग सामान्य हो जाता है. मीडिया, जो समाज का दर्पण माना जाता है,

उसमें भी ऐसी गलतियाँ तेजी से बढ़ रही हैं. समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर रिपोर्टर्स द्वारा गलत शब्दों का प्रयोग कई बार देखा गया है. यह प्रवृत्ति भाषा की शुद्धता और समाज की सोच को प्रभावित करती है.

4. नामों के सही और गलत प्रयोग का विश्लेषण

नामों का सही प्रयोग एक महत्वपूर्ण विषय है, विशेष रूप से पत्रकारिता में. कई बार अखबारों और समाचार चैनलों में नामों का गलत उच्चारण या गलत वर्तनी देखने को मिलती है. यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि नाम किसी व्यक्ति की पहचान होती है और इसका सही उच्चारण और प्रयोग अत्यंत आवश्यक है. उदाहरण के लिए, 'अवनि' को 'अवनी' लिखना एक आम गलती है, लेकिन इसका अर्थ और स्वरूप बदल जाता है.

नामों के गलत प्रयोग से न केवल उस व्यक्ति की पहचान पर असर पड़ता है, बल्कि समाज में भी इसे लेकर भ्रम उत्पन्न हो सकता है. सही जानकारी और नामों का सही प्रयोग पत्रकारिता की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है. पत्रकार और रिपोर्टर्स कई स्रोतों से सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद गलतियाँ होती हैं. इसका मुख्य कारण लापरवाही या सही जानकारी का अभाव हो सकता है.

 

 

5. भाषा की शुद्धता बनाए रखने के लिए आवश्यक सुधारात्मक कदम और समाधान

भाषा की शुद्धता बनाए रखने के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है. सबसे पहले, पत्रकारों, लेखकों, और शिक्षकों को भाषा की शुद्धता पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे जो लिख रहे हैं या बोल रहे हैं, वह व्याकरण और शब्दावली की दृष्टि से सही हो. इसके लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता हो सकती है, जहाँ उन्हें सही शब्दों और व्याकरण का प्रयोग सिखाया जा सके.

दूसरा महत्वपूर्ण कदम यह है कि स्कूलों और कॉलेजों में हिन्दी भाषा की शिक्षा को और मजबूत किया जाए. विद्यार्थियों को भाषा की शुद्धता और सही शब्द प्रयोग की जानकारी दी जानी चाहिए. इसके साथ ही, पाठ्यक्रमों में भाषा की त्रुटियों पर विशेष ध्यान दिया जाए, ताकि भविष्य में समाज को एक सही दिशा मिल सके.

तीसरा, मीडिया और नेताओं को अपनी भाषा की त्रुटियों को सुधारने के लिए सतर्क होना चाहिए. उनके भाषण और लेखन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए उन्हें सही शब्दों और व्याकरण का प्रयोग करना चाहिए.

निष्कर्ष

हिन्दी दिवस का महत्व केवल हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें भाषा की शुद्धता और उसके सही प्रयोग के प्रति जागरूक भी करता है. हिन्दी पत्रकारिता, जो समाज को दिशा देने का एक महत्वपूर्ण साधन है, उसमें भाषा की शुद्धता अत्यंत आवश्यक है. गलत शब्दों का प्रयोग, अनुस्वार की त्रुटियाँ, और नामों का गलत उच्चारण भाषा की शुद्धता पर गंभीर असर डालता है.

हमें अपने समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक शुद्ध और सशक्त भाषा की नींव रखनी होगी. इसके लिए जरूरी है कि हम भाषा के सही प्रयोग पर ध्यान दें और उन त्रुटियों को सुधारें, जो पत्रकारिता और समाज में अपनी जगह बना चुकी हैं. हिन्दी दिवस हमें यह संकल्प दिलाता है कि हम अपनी भाषा की शुद्धता बनाए रखें और समाज को एक सटीक और शुद्ध भाषा का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें.