सार्वजनिक उर्दू पुस्तकालय रांची: किताबें सचमुच सड़ रही हैं और कोई भी विरासत को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा
ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
किताबों का एक और कब्रिस्तान रांची में है. यह तस्वीरें झारखंड में सार्वजनिक उर्दू पुस्तकालय रांची की हैं. यह झारखंड की राजधानी के केंद्र में एक ऐतिहासिक पुस्तकालय है. किताबें सचमुच सड़ रही हैं और कोई भी विरासत को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा है. सार्वजनिक उर्दू पुस्तकालय रांची हालत खस्ता है.
ऐसे बनी पब्लिक उर्दू लाइब्रेरी
जब देश में अंग्रेजी राज अपनी अंतिम सांसें ले रहा था, उस समय उर्दू की बेहतरी चाहनेवाले रांची के मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने उर्दू लाइब्रेरी की स्थापना की थी. तब लाइब्रेरी चर्च रोड में चलती थी. खान बहादुर हबीबुर्ररहमान इस मुस्लिम उर्दू लाइब्रेरी ट्रस्ट के चेयरमैन थे और अब्बास हसन गजवी सचिव. बाद में इस लाइब्रेरी के लिए दस कट्ठा जमीन मल्लाहटोली में खरीदी गई, पर जब वहां भी मुस्लिम उर्दू लाइब्रेरी के संचालन में दिक्कत आई तो रांची नगरपालिका(अब रांची नगर निगम) से जमीन लेकर उसपर लाइब्रेरी का भवन फल विक्रेता वली मोहम्मद ने बनवाया.
इसमें उस समय पांच हजार रुपए खर्च आए और उसे लाइब्रेरी को वक्फ कर दिया गया. उनकी इस दयालुता को याद करते हुए लाइब्रेरी के हॉल का नाम वली मोहम्मद हॉल कर दिया गया. इसके बाद लाइब्रेरी पब्लिक उर्दू लाइब्रेरी हो गई.
दुकान के किराये से चल रही लाइब्रेरी, अखबर पढ़ने आ रहे लोग
छप्परबंदी की जमीन पर बनी इस लाइब्रेरी में उर्दू की किताबें उपलब्ध थीं. यहां उर्दू साहित्य की अधिकतर किताबें उपलब्ध हैं जिनकी हालत खराब है. अब देखरेख के अभाव में लाइब्रेरी से किताबें गायब हो रहीं हैं. सुबह में यह लाइब्रेरी आठ से ग्यारह बजे तक खुलती है और शाम में छह से नौ बजे रात तक खुली रहती है. वर्तमान में यह लाइब्रेरी इसपर लगे होर्डिग और दुकान से आ रहे किराये से चल रही है.
इस लाइब्रेरी में जो किताबें बची हुई हैं, उन्हें लाइब्रेरी में रखी अलमारी में रख दिया गया है. उन्हें किसी को इश्यू नहीं किया जाता. वर्तमान में इस लाइब्रेरी ट्रस्ट के अध्यक्ष मोहम्मद आबिद हैं. इस लाइब्रेरी के सदस्यों से कोई फीस नहीं ली जाती है. कोई भी यहां आकर निर्धारित समय में अखबार पढ़ सकता है.
नामचीन शायरों की किताबें थीं
उर्दू लाइब्रेरी के फाउंडर सेक्रेटरी अब्बास हसन गजवी के पोते एडवोकेट तनवीर अब्बास ने बताया कि इस लाइब्रेरी के संचालन का मकसद उर्दू जबान की तरक्की था. इसके चेयरमैन खान बहादुर हबीबुर्ररहमान और सचिव अब्बास हसन गजवी थे. इसके तीन सदस्य सैयद अनवर हुसैन, मौलवी सैयद राशिद अहमद और मोहम्मद हाशिम थे. उस समय यहां उर्दू के नामचीन शायरों मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब और अल्लामा इकबाल की किताबों का संग्रह था.
यहां उर्दू लिटरेचर की भी किताबें थीं और इतिहास से संबंधित किताबें भी थीं. अब इसमें सिर्फ अखबार पढ़ने लोग आते हैं. पहले यहां समय-समय पर मुशायरा हुआ करता था.