प्रमोद जोशी
हालांकि जी-20 का औपचारिक शिखर-सम्मेलन शनिवार से शुरू होगा, पर व्यावहारिक राजनीति के लिहाज से शुक्रवार की घटनाएं कम महत्वपूर्ण नहीं हैं. आज का दिन ज्यादातर विदेशी मेहमानों के स्वागत में बीता. विदेशी मेहमानों के साथ सम्मेलन के हाशिए पर द्विपक्षीय बैठकें भी हो रही हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण बैठक अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ है.
जो बाइडन शुक्रवार की शाम दिल्ली पहुँचे और रात में प्रधानमंत्री मोदी के निजी-डिनर में दोनों नेताओं की बातचीत हो रही है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने इस बारे में गुरुवार को कहा था कि यह मुलाक़ात प्रधानमंत्री मोदी के आवास पर होगी. जो बाइडन की यह सामान्य यात्रा नहीं है, जहाँ प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठक होती.
मोदी से मुलाक़ात के अलावा इस बात की संभावनाएं कम हैं कि बाइडन किसी अन्य राष्ट्रप्रमुख से मुलाकात करेंगे. किसी से मिले भी, तो वह अनौपचारिक और रस्मी मुलाकात होगी.
घोषणापत्र पर काम
इस डिनर की तस्वीरें तो जारी होंगी, पर बातचीत का कोई विवरण यदि मिला, तो देर रात तक ही मिलेगा. दोनों नेता किसी नतीजे पर पहुँचे भी, तो उसकी घोषणा भी शायद अभी नहीं होगी. इस भोज की प्रेस ब्रीफिंग की योजना भी नहीं है. फिर भी यह बैठक वैश्विक-राजनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है.
इस समय सबसे बड़ी चुनौती है वह घोषणापत्र जो सम्मेलन के आखिरी दिन जारी होना है. ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका की सहायता से भारत सर्वसम्मत घोषणापत्र तैयार करने का प्रयास कर रहा है. भारत के शेरपा अमिताभ कांत का कहना है कि घोषणापत्र करीब-करीब तैयार कर लिया गया है.
अभी तक सभी शिखर सम्मेलनों के बाद घोषणापत्र जारी हुए हैं. पहली बार पिछले साल के बाली सम्मेलन में बगैर घोषणापत्र के सम्मेलन समाप्त होने की नौबत आ गई थी. येन-केन प्रकारेण बाली घोषणा में यूक्रेन-युद्ध का जिक्र हो गया था, पर अब रूस और चीन दिल्ली घोषणा में यूक्रेन को लेकर अडिग बताए जाते हैं.
चीनी अड़ंगा
हाल में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने चीन पर आरोप लगाया है कि वह यूक्रेन सहित बहुत से मसलों पर समझौते में अड़ंगा लगा रहा है. इसपर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा है कि जी-20 शिखर सम्मेलन की सकारात्मक उपलब्धियों के लिए चीन सभी संबद्ध पक्षों के साथ काम करने को तैयार है.
यूरोपियन कौंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने कहा है कि नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में सर्वानुमति की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. उनका कहना है कि यूरोपियन कौंसिल चाहती है कि जी-20 खाद्य और ऊर्जा से जुड़ी सुरक्षाओं पर ध्यान दें. उधर रूस ने यूक्रेन से ब्लैक सी के रास्ते से आने वाले गेहूँ की सप्लाई की नाकेबंदी की घोषणा कर दी है. इससे दुनिया के सामने खाद्य संकट पैदा होने का डर है.
आम राय में अड़चनें
रूस और चीन चाहते हैं कि या तो यूक्रेन-युद्ध का ज़िक्र हो ही नहीं और यदि हो, तब हमारा-दृष्टिकोण भी उसमें शामिल हो. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन में वित्तीय सहायता और कर्ज़ भुगतान को लेकर साझा बयान के मसौदे को लेकर असहमतियाँ हैं. इन असहमतियों को दूर किया जा सकता है, पर यूक्रेन-युद्ध के प्रसंग पर आमराय बनाना बहुत मुश्किल समझा जा रहा है.
भारतीय डिप्लोमेसी को एक बड़ी सफलता अफ्रीकन यूनियन को लेकर मिली है, जिसे जी-20 में शामिल करने पर सहमति बन गई है. इसका संकेत इस बात से मिलता है कि इस विषय पर बात कर रहे शेरपाओं के बीच सहमति है. भारतीय शेरपा अमिताभ कांत ने कहा है कि इसबार का घोषणापत्र ‘ग्लोबल-साउथ’ की आवाज़ होगा.
जी-20 की शब्दावली में शेरपा विभिन्न देशों के शासनाध्यक्षों और राष्ट्राध्यक्षों के प्रतिनिधि होते हैं. को कहते हैं, जो विभिन्न विषयों से जुड़ी बुनियादी बातों में शामिल होते हैं. अफ्रीकन यूनियन के बारे में औपचारिक निर्णय शिखर-सम्मेलन में ही घोषित होगा.
यदि उसे शामिल किया गया तो, अफ्रीका के 55 देशों का यह संगठन इस समूह में दूसरा क्षेत्रीय-संगठन होगा. इसके पहले यूरोपियन यूनियन इसका सदस्य है. इस समूह को अब जी-21 कहा जाएगा या कोई दूसरा नाम दिया जाएगा, यह भी अगले दो दिनों में स्पष्ट होगा.
‘ग्लोबल-साउथ’ की आवाज़
भारतीय राजनय की सफलता केवल अफ्रीकन यूनियन को शामिल कराने से साबित नहीं होगी. वस्तुतः सफलता तभी साबित होगी, जब भारत को ‘ग्लोबल-साउथ’ की आवाज़ मान लिया जाएगा. ‘ग्लोबल-साउथ’ का मतलब है अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील और अल्प-विकसित देश.
दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती इन देशों को आर्थिक-विकास की धारा से जोड़ने की है. इस मामले में भारत की चीन से स्पर्धा है. आर्थिक-विकास की ऊँची पायदान पर पहुँच चुके चीन को क्या ‘ग्लोबल-साउथ’ की आवाज़ माना जा सकता है? क्या उसके हित ‘ग्लोबल-साउथ’ के देशों के हितों से टकराते तो नहीं है?
चीनी दावा
अब चीन की दिलचस्पी ‘ग्लोबल-साउथ’ का राजनीतिक दोहन करने की है. अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल कराने के श्रेय से भारत को वंचित कर चीन उसका श्रेय खुद लेना चाहता है. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने पत्रकारों से कहा, चीन पहला देश है, जिसने अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल करने के लिए खुलकर समर्थन किया था.
इसके पहले जुलाई में ब्रिक्स के राष्ट्रीय-सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में चीनी विदेशमंत्री वांग यी ने कहा था कि चीन हमेशा ‘ग्लोबल-साउथ’ का अनौपचारिक सदस्य बना रहेगा. दूसरी तरफ अमेरिका और जापान जैसे देश चाहते हैं कि ‘ग्लोबल-साउथ’ को वैश्विक-राजनीति के केंद्र में लाने का श्रेय भारत को मिले. चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों को ‘ग्लोबल-साउथ’ में माना नहीं जाता है.
द्विपक्षीय-संवाद
सम्मेलन के हाशिए पर विभिन्न देशों का द्विपक्षीय-संवाद भी चल रहा है. प्रधानमंत्री अगले तीन दिन में 15 देशों के राष्ट्रीय-नेताओं के साथ बातचीत करने जा रहे हैं. आज शुक्रवार को उनकी सबसे महत्वपूर्ण मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से हो रही है.
इसके अलावा बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगनॉथ (या जगन्नाथ) से भी भेंट आज हो चुकी हैं. यूके, जापान, जर्मनी और इटली के राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठकें शनिवार को होंगी.
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ वर्किंग लंच मीटिंग रविवार क होगी. कनाडा के प्रधानमंत्री के अलावा कोमोरोस, तुर्की, यूएई, दक्षिण कोरिया, ईयू/ईसी, ब्राज़ील और नाइजीरिया के साथ भी बैठकें प्रस्तावित हैं.
अतिथियों का आगमन
जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए ज्यादातर अतिथियों का आगमन हो चुका है, या अगले कुछ घंटों में शेष का आगमन हो जाएगा. सम्मेलन में भाग लेने के लिए संरा महासचिव एंटोनियो गुटेरेश खासतौर से आए हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, चीन के प्रधानमंत्री ली खछ्यांग, इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी, यूएई के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्डिनेंड और कोमोरोस के राष्ट्रपति अज़ली असूमनी का आगमन हो गया है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का प्रतिनिधित्व करने के लिए विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव भी आ गए हैं. अंतिम क्षणों में पता लगा कि स्पेन के कार्यवाहक प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ कोविड-19 के संक्रमण के कारण नहीं आ पाएंगे.
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