Islamic Jurisprudence Academy of India: इज्तिहाद की राह पर लंबी यात्रा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-06-2023
इस्लामिक फिक़्ह अकादमी ऑफ इंडियाः इज्तिहाद की राह पर लंबी यात्रा
इस्लामिक फिक़्ह अकादमी ऑफ इंडियाः इज्तिहाद की राह पर लंबी यात्रा

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

रक्तदान करने की अनुमति है

मानव अंगों के दान की भी अनुमति है

डीएनए परीक्षण की अनुमति है

सरकारी योजनाओं का उपयोग की अनुमति है

किसी शारीरिक दोष को ठीक करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी की अनुमति है

महिलाओं के लिए नौकरी करना जायज है

बीमा की भी अनुमति है

इस्लामिक न्यायशास्त्र अकादमी भारत के ये कुछ फैसले हैं, जिन्हें देश के मुसलमानों के मार्गदर्शन में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है. अकादमी एक ऐसी संस्था है, जिसने तीन दशकों का सफर तय किया है, लेकिन उद्देश्यों की लंबी सूची के कारण यह आज भी कायम है. यह एक कभी न खत्म होने वाली यात्रा है. हम जानते हैं कि भारत मुसलमानों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, जबकि इस्लाम के कुछ मुद्दे आदेश, समय और युग के अनुसार बदलते रहते हैं. इतना ही नहीं, गैर-मुस्लिम देशों की समस्याएं मुस्लिम देशों से अलग हैं. इसके अलावा, उन्हें नई स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिसके आधार पर नई समस्याओं का शरीयत समाधान ढूंढना आवश्यक है.

यही कारण है कि भारत में न्यायशास्त्र अनुसंधान का बहुत महत्व है और इसी को देखते हुए इस्लामिक फिक्ह अकादमी के रूप में एक संस्था अस्तित्व में आई, जिसका उद्देश्य भारत सहित पूरे विश्व में आधुनिक समस्याओं का समाधान और न्यायशास्त्र अनुसंधान करना है.

आपको बता दें कि इस्लामिक न्यायशास्त्र अकादमी भारत की स्थापना 1989 में मौलाना काजी मुजाहिदुल इस्लाम कासमी ने की थी. यह मध्य एशिया में एक प्रमुख शोध संस्थान होने के दावे के साथ सामने आया था. संस्था 32वर्षों से देश-विदेश के विद्वान अरबाब आफता व क़ादा तथा ज्ञान व बुद्धि के लोगों की छत्रछाया में सक्रिय रूप से यात्रा कर रही है तथा नये सामाजिक परिवर्तनों तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास से उत्पन्न नयी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास कर रही है. संस्था सिद्धांत, इबादत, सामाजिक, आर्थिक, चिकित्सा और आधुनिक मीडिया जैसे विभिन्न विषयों से संबंधित समस्याओं को हल करके शरीयत और धर्म में उम्मत का मार्गदर्शन करने का दावा करती है. लगभग 5000 लेखों पर चर्चा के आलोक में 748 प्रस्ताव पारित किए गए हैं.

 


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फिक़्ह अकादमी ने अब तक जिन मुद्दों पर फैसले जारी किए हैं, उनमें रमजान के दौरान चिकित्सा उपचार, यौन शिक्षा, मिश्रित शिक्षा और अंग दान जैसे विषय शामिल हैं.

लेकिन सवाल यह है कि अकादमी के प्रयास क्या होने चाहिए और उनमें सफलता क्या मिलेगी?

इस्लामिक फिक़्ह अकादमी से जुड़े अहमद नादेर घासेमी का कहना है कि पिछले 32 वर्षों में इस्लामिक फिक़्ह अकादमी ने ज्ञान और अनुसंधान और इस्लामिक फिक़्ह के प्रचार और प्रसार में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. इसने मुस्लिम समाज के धार्मिक नेतृत्व का दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है. विदेशी न्यायालय ने अकादमी के निर्णय के आधार पर निर्णय दिए हैं. देश के बाहर, अरब अमीरात में, न्यायशास्त्र और इज्तिहाद सेवाओं एक श्रंखला है, जो अरबी में और उर्दू भाषा में उपलब्ध है. यह एक अद्वितीय और मूल्यवान कार्य है.

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वर्तमान स्थिति यह है कि समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन आये हैं, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास ने नये क्षितिज बनाये हैं और विश्व एक छोटा सा गाँव बन गया है. निस्संदेह, इस माहौल में आर्थिक और आर्थिक मामलों में नई-नई समस्याएँ पैदा हो गई हैं, सैकड़ों सवाल उठ रहे हैं, जिनके बारे में वे आफता के विद्वानों और साथियों की ओर रुख करते हैं और मार्गदर्शन चाहते हैं.

 


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दूसरी ओर, ऐसे व्यापक व्यक्तित्वों की कमी थी, जो ज्ञान और शोध के आधार पर इन समस्याओं का समाधान कर सकें और जिनका एक फतवा भी मुस्लिम समाज में स्वीकार्य हो. मुसलमानों की कई समस्याएं हैं जिन पर सामूहिक निर्णयों का ही प्रभाव पड़ता है. फिक़्ह अकादमी बनाने का उद्देश्य यह था कि कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जिन्हें अकेले एक विद्वान या व्यक्ति द्वारा हल नहीं किया जा सकता है, इसलिए इसके लिए विद्वानों का एक नेटवर्क तैयार किया जाना चाहिए. इन सभी विद्वानों से इन जटिल समस्याओं के बारे में पूछा जाना चाहिए और फिक़्ह अकादमी भारत को संचालन करना चाहिए. उनके लिए न्यायशास्त्र सेमिनार और उसमें कठिन समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करें.

अकादमी से जुड़े नाम और चेहरे

निःसंदेह यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसके दूरगामी प्रभाव एवं परिणाम सामने आए. इसके सदस्यों का चयन प्रख्यात वरिष्ठ विद्वानों एवं न्यायविदों में से किया जाता था. इसी प्रकार आधुनिक चिकित्सा, सामाजिक विज्ञान, कानून, मनोविज्ञान तथा अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ भी इससे जुड़े हुए हैं, ताकि वांछित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके. और घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों, विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं का व्यावहारिक समाधान इस्लामी कानून के आलोक में प्रस्तुत किया जा सकता है.

संस्था के संरक्षकों की एक लंबी सूची है. मौलाना सैयद मुन्तुल्लाह रहमानी, मौलाना अबुल हसन अली होस्नी नदवी, मुफ्ती मुहम्मद अब्दुल रहीम लाजपुरी, मुफ्ती निजामुद्दीन आजमी, मौलाना सैयद निजामुद्दीन, मौलाना अबू अल सऊद बकवी, मौलाना मुहम्मद सलेम कासमी और दिवंगत मौलाना सैयद मुहम्मद रबी होस्नी नदवी भी मौजूद थे. मौलाना निमातुल्लाह आजमी (मुहद्दिस दार उलूम देवबंद) और महासचिव, प्रसिद्ध न्यायविद् मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी जैसे नाम और चेहरे अभी भी इससे जुड़े हुए हैं.

लक्ष्यों के बारे में

नादिर अहमद कासमी ने कहा कि फिक़्ह अकादमी ने महिलाओं के अधिकार, देश की अखंडता, शांति और सद्भाव, सह-अस्तित्व, पर्यावरण की शिक्षा दी है. पर्यावरण और जल संरक्षण, चिकित्सा मुद्दे और आर्थिक मुद्दों की एक लंबी सूची है. अकादमी का यह कार्य कानून सुधार, समाज निर्माण और देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण है.

फिक़्ह अकादमी का उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और औद्योगिक परिवर्तनों और हाल के विकासों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान तक पहुँचना है. कुरान और सुन्नत, साथियों और अन्य लोगों की राय करना ही है. आधुनिक विकास का समाधान ढूंढने पर जोर दिया जाना चाहिए और जब स्थितियां बदलें, तो पुरानी समस्याओं पर फिर से शोध और अध्ययन शुरू कर सामाजिक जांच के माध्यम से इस्लामी न्यायशास्त्र की रोशनी में समाधान पर पहुंचना चाहिए.

 


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महत्वपूर्ण बात यह है कि संस्थान ने खुद को देश तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि भारत के भीतर और बाहर अन्य सभी न्यायशास्त्रीय और अनुसंधान संस्थानों के साथ जुड़ाव की मांग की. साथ ही यह सम्मान की बात है कि भारत और विदेशों में अर्थव्यवस्था, समाजशास्त्र, चिकित्सा, विभिन्न देशों के रीति-रिवाज, पर्यावरण और जनसांख्यिकीय प्रकृति के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्याओं से लोगों को अवगत कराया जाएगा.

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यह भी कहा गया है कि इस्लाम के सामने आने वाले नए सवालों और चुनौतियों पर मलिक और वेबरुन के विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर शोध पुस्तकें संकलित की गई हैं. साथ ही उर्दू में कुछ महत्वपूर्ण अरबी-वांगारी पुस्तकों और उर्दू, अरबी में और व्यापक रूप से प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तकों का अनुवाद किया गया है.

इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, 130 से अधिक न्यायशास्त्रीय पत्रिकाओं का आयोजन किया गया है, जबकि मुसुआ फिक्ह के 45 संस्करणों का उर्दू में अनुवाद किया गया है. विभिन्न मुद्दों पर 28 अंतर्राष्ट्रीय न्यायशास्त्रीय सेमिनार आयोजित किए गए हैं. 31 न्यायशास्त्रीय और प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं. कुल मिलाकर, 350 प्रकाशन प्रकाशित हो चुके हैं. अकादमी के अब तक 30 सेमिनार आयोजित किए जा चुके हैं, जिसमें कई सौ मुद्दों पर सामूहिक निर्णय के माध्यम से उम्माह को मार्गदर्शन देने का कार्य किया गया है.

अकादमी के महत्वपूर्ण निर्णय

कोर्ट ने विदेशी न्यायशास्त्र अकादमी के फैसले को मान्यता दे दी है और न्यायशास्त्र अकादमी को मान्यता देते हुए अपना फैसला सुनाया है. अकादमी देश-विदेश के विशेषज्ञों एवं विद्वानों को एकत्रित कर गहन विचार-विमर्श कर समाधान ढूंढती है. इतना ही नहीं अकादमी ने महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए उनके विभिन्न मुद्दों को चर्चा का विषय बनाया, ताकि महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों का समाधान किया जा सके. उदाहरण के लिए, इशरत-पर-निकाह, जिसमें महिलाओं को कई विकल्प दिए जाते हैं. सामान्यतः महिला रोजगार को प्राथमिकता नहीं दी जाती है. कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां होती हैं, जहां महिलाओं को रोजगार देना आवश्यक हो जाता है.

मानव अंगों का दान

इस संबंध में फिक़्ह अकादमी ने कहा कि वर्तमान चिकित्सा अनुसंधान के अनुसार, किसी जीवित व्यक्ति के लीवर के एक हिस्से को किसी अन्य जरूरतमंद व्यक्ति को स्थानांतरित करना संभव हो गया है, और दाता के लीवर के शेष हिस्से को कुछ महीनों के भीतर पूरा किया जा सकता है. यह साबित हो चुका है कि स्वैच्छिक लीवर प्रत्यारोपण और किसी प्रियजन या मित्र के लिए प्रत्यारोपण की अनुमति चाहिए. हालाँकि, खरीदना और बेचना निश्चित रूप से स्वीकार्य नहीं है. मानव दूध का बैंक स्थापित करना जायज नहीं है, यदि बैंक स्थापित किया गया है, तो उसमें दूध इकट्ठा करना और उसमें किसी भी तरह का योगदान करना भी जायज नहीं है. किसी पुरुष या महिला प्रजनन बैंक की स्थापना करना या किसी बैंक या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को मुफ्त प्रजनन योग्य पुरुष या महिला प्रजनन सामग्री बेचना या प्रदान करना या लेना निषिद्ध है. किसी जीवित व्यक्ति के कॉर्निया को किसी अन्य जरूरतमंद व्यक्ति को स्थानांतरित करना जायज नहीं है.

रक्तदान

रक्त मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण और मूलभूत अंग है, जिसके साथ मानव जीवन का अस्तित्व जुड़ा हुआ है. इसी तरह, एक मुसलमान के लिए उससे लेना जायज है.

 


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मानवीय आवश्यकता की दृष्टि से स्वैच्छिक रक्त शिविर लगाना एवं ब्लड बैंक स्थापित करना भी अनुमन्य है तथा मानवीय सेवा में सम्मिलित है. रक्तदान करना एक महत्वपूर्ण मानवीय कर्तव्य है और आवश्यक रक्त समूह वाले व्यक्ति के लिए ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर रक्तदान करना शरीयत-पसंदीदा कार्य है, जहां रक्तदान न करने पर मृत्यु का खतरा होता है.

महिलाओं को रोजगार

एक बड़ा फैसला था, महिलाओं को रोजगार. विद्वानों के सामने सवाल यह था कि इस्लामी शरीयत महिलाओं की आजीविका को किस नजरिये से देखती है? क्या शरीयत ने भरण-पोषण न करने की जिम्मेदारी भी महिलाओं पर डाल दी है? (चाहे वह स्वयं का भरण-पोषण हो या बच्चों का आदि)

उनका उत्तर था कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि शरीयत के दायरे में रहते हुए शादी से पहले अभिभावक की अनुमति और शादी के बाद पति की अनुमति से महिलाओं के लिए जीविकोपार्जन की गुंजाइश है और इसके लिए एक मिसाल भी है. अल्लाह के दूत का युग, भगवान उन्हें आशीर्वाद दे और उन्हें और साथियों को शांति प्रदान करे. हालाँकि, इसमें कुछ शर्तें जुड़ी थीं, लेकिन रोजगार का रास्ता खुल गया. इस बात पर भी जोर दिया गया कि महिलाओं के लिए रात की ड्यूटी पर रोक लगाई जानी चाहिए .

डीएनए की बात

डीएनए के मामले पर इस्लामिक न्यायशास्त्र अकादमी ने भी एक स्टैंड लिया है, जिसमें कहा गया है कि जिस बच्चे का माता-पिता डीएनए परीक्षण के माध्यम से शरिया सिद्धांतों के अनुसार साबित हो गया है, उसके बारे में संदेह उठाना कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है. लेकिन अगर किसी बच्चे के लिए कुछ दावेदार हैं और किसी के पास स्पष्ट शरीयत सबूत नहीं है, तो ऐसे बच्चे के माता-पिता का निर्धारण डीएनए परीक्षण द्वारा किया जा सकता है.

डीएनए परीक्षण उन अपराधों के सबूत के लिए विश्वसनीय नहीं होगा, जो निर्धारित तरीकों के बजाय सीमा तक दंडनीय हैं. सीमाओं और प्रतिशोध के अलावा अन्य अपराधों की जांच में डीएनए टेस्ट का इस्तेमाल मदद के लिए किया जा सकता है और अगर जज को जरूरत महसूस हो, तो वह इसके लिए बाध्य भी कर सकता है.

प्लास्टिक सर्जरी समस्या और समाधान

फिक़्ह अकादमी का एक प्रमुख फैसला प्लास्टिक सर्जरी के बारे में है, जिसमें कहा गया है कि शारीरिक दोष को दूर करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी की अनुमति है और दोष शरीर में पाई जाने वाली ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है. जो सुप्रसिद्ध एवं अभ्यस्त एवं सामान्य रचनात्मक अवस्था से भिन्न है, चाहे वह जन्मजात हो या बाद में प्राप्त हुई हो. यदि शारीरिक असुविधा को ठीक करने के लिए डॉक्टर द्वारा सलाह दी जाए, तो प्लास्टिक सर्जरी की अनुमति है.