भारतीय सभ्यता सर्वश्रेष्ठ है, उसका मूल स्वभाव ज्ञान का प्रसार है: जामिया में बोले आरिफ मोहम्मद खान

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 28-11-2025
Indian civilization is the best, its basic nature is the spread of knowledge: Arif Mohammad Khan said in Jamia
Indian civilization is the best, its basic nature is the spread of knowledge: Arif Mohammad Khan said in Jamia

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली

बिहार के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) के डॉ. एम.ए. अंसारी ऑडिटोरियम में आयोजित पाँचवें खान अब्दुल गफ्फार खान वार्षिक स्मारक व्याख्यान में “रिफ्लेक्शन्स ऑन इंडियन कल्चर: मेकिंग सेन्स ऑफ इट्स यूनिवर्सल वॉयस” विषय पर व्यापक व प्रेरक उद्बोधन दिया। कार्यक्रम में कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ़, रजिस्ट्रार प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिज़वी, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल इन्क्लूजन (CSSI) की कार्यवाहक निदेशक एवं डीन अकादमिक प्रो. तनुजा तथा संयोजक डॉ. मुजीबुर रहमान सहित विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, अधिकारी और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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CSSI द्वारा आयोजित यह वार्षिक व्याख्यान भारतरत्न खान अब्दुल गफ्फार खान—भारत की स्वतंत्रता संग्राम के उस महान नायक—की स्मृति को समर्पित है, जिन्होंने अहिंसा, एकता और मानवता के संदेश को अपने जीवन का आधार बनाया। वर्ष 2017 में आरंभ हुआ यह व्याख्यान श्रृंखला जामिया मिल्लिया इस्लामिया को विशिष्ट बनाती है, क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता यात्रा में ‘फ्रंटियर गांधी’ कहलाए जाने वाले इस महान पश्तून नेता के योगदान को अकादमिक मंच पर संरक्षित और प्रसारित करने का अनूठा प्रयास है।

कार्यक्रम का शुभारंभ राज्यपाल के विश्वविद्यालय आगमन पर भव्य स्वागत और NCC कैडेटों के प्रभावशाली गार्ड ऑफ ऑनर के साथ हुआ। ऑडिटोरियम में पहुंचने पर कुरान की तिलावत और जामिया तराने के पश्चात् राज्यपाल ने गफ्फार खान की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलित कर अहिंसा, साहस और मानव कल्याण के मूल्यों को नमन किया। उन्होंने कहा कि गफ्फार खान ने “आदिवासी पश्तूनों को शांति के मार्ग पर चलने वाला बना दिया” और इसी असाधारण नैतिक शक्ति के कारण वे हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सितारों में गिने जाते हैं।

अपने विचारोत्तेजक व्याख्यान में आरिफ मोहम्मद खान ने भारतीय, फ़ारसी, ग्रीक और अरबी दार्शनिक परंपराओं का उल्लेख करते हुए भारतीय संस्कृति की विशिष्टता को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद तक, भारतीय मनीषाओं ने वेदांत और उपनिषदों की उस सार्वभौमिक दृष्टि को पूरे विश्व के समक्ष रखा, जिसमें मनुष्य न किसी जाति-धर्म के आधार पर बंटा है, न किसी बाहरी पहचान से परिभाषित; बल्कि हर व्यक्ति को “दिव्य तत्व का वाहक” माना गया है। यही दृष्टि भारतीय संस्कृति को “एकात्मता की भावना से बहने वाली मानवतावादी दिव्यता” प्रदान करती है।

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माननीय राज्यपाल ने कहा कि विश्व की पाँच प्रमुख सभ्यताओं में भारतीय सभ्यता इसलिए सर्वोच्च मानी जाती है क्योंकि इसकी मूल प्रेरणा ज्ञान, सह-अस्तित्व और बुद्धिमत्ता का प्रसार है। उन्होंने अल्लामा इक़बाल के मशहूर शेर—“मीर-ए-अरब को आई… ठंडी हवा जहाँ से”—का उल्लेख करते हुए कहा कि यह भारत को उस भूमि के रूप में चिन्हित करता है जहाँ से ज्ञान और विवेक की शीतल बयार पूरे विश्व में फैली।

विवेकानंद के सार्वभौमिक संदेश का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारत का यह आध्यात्मिक, मानवीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण आज भी वैश्विक संघर्षों और पीड़ा को कम करने की सबसे प्रभावी दिशा दिखाता है। “दुनिया ने मानव गरिमा को 1948 में पहचाना, पर भारत सदियों से मनुष्य की दिव्यता का संदेश देता आया है,” उन्होंने कहा।

रजिस्ट्रार प्रो. रिज़वी ने गफ्फार खान के समावेशी राष्ट्रवाद और ‘खुदाई खिदमतगार’ आंदोलन की चर्चा करते हुए कहा कि उनका जीवन इस बात की गवाही है कि सच्चा राष्ट्रवाद अहिंसा, करुणा, न्याय और मानव-गरिमा की रक्षा पर आधारित होता है। भारत के विभाजन पर उनका गहरा दुख इस तथ्य को रेखांकित करता है कि वे पूरे दक्षिण एशिया की साझा आज़ादी के पक्षधर थे।

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अपने प्रेरक अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ़ ने कहा कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया न केवल अकादमिक उत्कृष्टता का प्रतीक है बल्कि सहानुभूति, तहज़ीब, स्किल-बेस्ड शिक्षा और राष्ट्र-सेवा के आदर्शों को आत्मसात करने वाला संस्थान है। उन्होंने भारतीय सभ्यता की विविधता, बहुलवाद और संवाद की परंपरा को रेखांकित करते हुए कहा कि यही मूल्य गफ्फार खान के जीवन और विचारों में सर्वाधिक उजागर होते हैं।

पूर्व वर्षों में यह व्याख्यान श्री राजमोहन गांधी, श्री अमिताभ कांत, प्रो. ज़ोया हसन और प्रो. श्रुति कपिला जैसे प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा दिया जा चुका है।