मलिक असगर हाशमी/नई दिल्ली
इस्लाम की आध्यात्मिक दुनिया का केंद्र, वह पवित्र धरती जहाँ हर साल लाखों मुस्लिम हज और उमराह के लिए पहुँचते हैं। वही मक्का, जहाँ जबल अल-नूर की ऊँची चोटी पर स्थित गार-ए-हिरा की वह गुफा है, जिसने इस्लामी इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। यही वह स्थान है जहाँ 609 ईस्वी में पहली बार पैगंबर मुहम्मद ﷺपर कुरान की पहली आयतें नाज़िल हुई थीं,“इक़रा”, यानी पढ़ो। सदियों से यह गुफा मुसलमानों के लिए इबादत और तफ़क्कुर की पवित्र जगह बनी हुई है।
लेकिन हाल के दिनों में एक वीडियो ने पूरी मुस्लिम दुनिया को हिला कर रख दिया है। सोशल मीडिया पर “बाइक मेट PK” नाम से मशहूर एक व्लॉगर ने हिरा की गुफा के अंदर और आसपास फैले कचरे के ढेर को अपने कैमरे में कैद किया। करीब डेढ़ मिनट का यह वीडियो न केवल परेशान करने वाला है, बल्कि एक बड़े सवाल को हमारे सामने ला खड़ा करता है—क्या श्रद्धा केवल ज़ियारत तक सीमित हो गई है और सफ़ाई का पैग़म्बर ﷺका आदेश भूलते जा रहे हैं?
गुफा में बिखरा हुआ कचरा,दर्दनाक तस्वीरें
व्लॉगर द्वारा रिकॉर्ड किया गया वीडियो साफ़ दिखाता है कि गार-ए-हिरा के आसपास पानी की प्लास्टिक बोतलें, जूस के खाली टेट्रा पैक, खाने के रैपर और पॉलिथीन के बैग बेतरतीब बिखरे पड़े हैं। वह जगह, जहाँ पैगंबर ﷺइबादत के लिए एकांत में जाते थे, जहाँ से एक नई आस्था की रोशनी फैली, आज वहां इंसान की लापरवाही के अंधेरे निशान दिखाई दे रहे हैं।
व्लॉगर भावुक आवाज़ में कहते हैं,“यह सरकार की गलती नहीं है। यह तीर्थयात्रियों की अपनी लापरवाही का नतीजा है।” उनका गुस्सा जायज़ भी है, क्योंकि गुफा तक पहुँचने का रास्ता कठिन है, खड़ी चढ़ाई और पथरीले रास्तों से होकर जाता है। इसके बावजूद हज और उमराह के लिए आने वाले कई लोग अपने पीछे ढेरों कचरा छोड़ जाते हैं।
यह दृश्य दर्द इसलिए भी अधिक देता है क्योंकि इस्लाम में सफ़ाई को ईमान का हिस्सा बताया गया है। पैगंबर ﷺका स्पष्ट आदेश है,“अल्लाह पाक है और पवित्रता को पसंद करता है। इसलिए अपने आँगन साफ़ रखो।” लेकिन यही सफ़ाई का सन्देश गुफा के बाहर कचरे की शक्ल में दफन होता दिखाई देता है।
पवित्रता बनाम व्यवहार:एक बड़ा विरोधाभास
इस्लाम में सफ़ाई केवल शरीर और वस्त्र तक सीमित नहीं, बल्कि घर, वातावरण और समाज की सफ़ाई को भी उतना ही महत्व दिया गया है। यही कारण है कि गार-ए-हिरा का यह बदला हुआ दृश्य श्रद्धालुओं के आचरण पर गंभीर सवाल खड़े करता है। लोग घंटों की मेहनत के बाद गुफा तक पहुँचते हैं, वहां सेल्फ़ियाँ लेते हैं, दुआ करते हैं, रोते हैं, लेकिन जाते समय अपने कचरे को साथ ले जाने की ज़िम्मेदारी नहीं निभाते।
व्लॉगर की टिप्पणी,“लोग इतनी पवित्र जगह को क्यों गंदा करेंगे?”—एक साधारण सवाल नहीं है, बल्कि हर उस मुसलमान के लिए आईना है जो इस जगह को पवित्र मानता है मगर उसके सम्मान को व्यवहार में दिखाना भूल जाता है।
गुफा की ऐतिहासिक और धार्मिक अहमियत
जबल अल-नूर, यानी “रौशनी का पर्वत”, मक्का के उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसी पहाड़ पर वह छोटी-सी संकरी गुफा है जहाँ पैगंबर मुहम्मद ﷺरमज़ान के दिनों में ध्यान और तफ़क्कुर किया करते थे। इस गुफा में 609ईस्वी में फ़रिश्ता जिब्रईल आए और पहली वह़ी (प्रकाशना) लेकर उतरे। यही इस्लामी संदेश का पहला कदम था।
कुरान की आरंभिक आयतें मानव को उसकी जिम्मेदारियों, ईश्वर के न्याय, पुनरुत्थान, नेक कर्मों, और पवित्रता की शिक्षा देती हैं। ऐसे स्थान पर कचरा मिलना न केवल पर्यावरणीय समस्या है, बल्कि धार्मिक और नैतिक संवेदनशीलता को ठेस पहुँचाने वाला दृश्य है।
हर साल हजारों मुसाफ़िर, लेकिन सफ़ाई की हालत चिंताजनक
हर साल लाखों हाजियों और उमराह करने वालों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है। लोग पैगंबर ﷺके जीवन से जुड़ी इस ऐतिहासिक जगह को देखने की चाहत रखते हैं और गुफा के अंदर जाकर कुछ पल बिताते हैं। लेकिन भीड़ जितनी बढ़ रही है, जगह की पवित्रता और सफ़ाई उतनी ही खतरे में पड़ती जा रही है।
सऊदी सरकार हज और उमराह के दौरान सफ़ाई व्यवस्था पर अरबों रियाल खर्च करती है। लेकिन यह सच भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि गार-ए-हिरा जैसे कठिन इलाक़ों में सफ़ाई का बड़ा हिस्सा स्वयं विज़िटर्स की जागरूकता पर निर्भर करता है। व्लॉगर ने भी अपने वीडियो में स्पष्ट कहा,“सरकार की सफाई टीमें पहाड़ों पर नहीं चढ़ सकतीं। यह हमारी जिम्मेदारी है।”
सोशल मीडिया पर बहस,क्या समाधान है?
इस वीडियो के सामने आने के बाद सोशल मीडिया में बहस तेज़ हो गई है। कई लोग मानते हैं कि ऐसे पवित्र स्थानों पर विज़िटर्स को सख्त निर्देश देने चाहिए। कुछ सुझाव दे रहे हैं कि चढ़ाई से पहले हर व्यक्ति को अपना कचरा बैग दिया जाए और वापसी पर उसे लेकर आना अनिवार्य किया जाए।
कई लोगों ने यह भी कहा कि इस्लामी देशों में इस्लाम के सफ़ाई से जुड़े अहकाम पर पहले शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, क्योंकि मज़हब की शिक्षा और व्यवहार के बीच का यह विरोधाभास बढ़ता जा रहा है।
पैगंबर की शिक्षा और हमारी जिम्मेदारी
पैगंबर ﷺने जीवन भर सफ़ाई, पवित्रता, ज़िम्मेदारी और सम्मान की शिक्षा दी। कुरान की आयतों में भी बार-बार पवित्रता और नैतिक स्वच्छता पर ज़ोर दिया गया है। फिर सवाल उठता है—क्या एक मुसलमान की जिम्मेदारी केवल दुआ करना है, या वह पवित्र स्थानों की रक्षा भी उसकी इबादत का हिस्सा है?
वास्तविक इबादत वही है जहाँ इंसान अपनी आस्था को अपने व्यवहार में उतारे। गार-ए-हिरा की यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अगर पवित्र स्थान भी हमारी लापरवाही से सुरक्षित नहीं, तो हम अपनी आध्यात्मिक जिम्मेदारियों को कितना निभा पा रहे हैं?
पवित्रता की रक्षा हम सबका फ़र्ज़
हीरा की गुफा केवल एक ऐतिहासिक स्थान नहीं, बल्कि इस्लामी इतिहास का पहला अध्याय है। यह गुफा उसी पवित्रता की प्रतीक है जहाँ से कुरान का नूर फैला। यदि आज उसी जगह पर कचरा जमा हो रहा है, तो यह केवल प्रशासन की विफलता नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक लापरवाही है।
ऐसे स्थानों को साफ़ रखना किसी एक देश, संस्था या सरकार की जिम्मेदारी नहीं,बल्कि हर मुसलमान की ईमानदार ज़िम्मेदारी है। क्योंकि सफ़ाई केवल ज़ाहिरी अमल नहीं, बल्कि इबादत का हिस्सा है।गार-ए-हिरा की गुफा हमें फिर याद दिला रही है—पवित्रता केवल आस्था में नहीं, आचरण में भी होनी चाहिए।