नफरत के दौर में मोहब्बत का पैग़ाम: जमाअत की देशव्यापी पड़ोसी मुहिम

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 22-11-2025
A message of love in times of crisis: Jamaat's nationwide neighbourhood campaign
A message of love in times of crisis: Jamaat's nationwide neighbourhood campaign

 

आवाज़ द वॉयस/ नई दिल्ली

आज के दौर में, जहां सोशल मीडिया के आक्रामक नैरेटिव और आसपास की तनावपूर्ण घटनाओं ने सामुदायिक ताल्लुकात की जड़ों को हिला दिया है, वहीं पड़ोसियों के बीच की सदियों पुरानी गर्मजोशी और विश्वास कम होता जा रहा है। दूसरे समुदायों की तो बात ही छोड़िए, एक ही गली में रहने वाले लोग भी एक-दूसरे को संदेह की नजरों से देखने लगे हैं।

इस बिगड़ते सामाजिक ताने-बाने को दुरुस्त करने और आपसी भाईचारे की भावना को फिर से जगाने के लिए, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद (JAIH) ने एक दूरगामी पहल की घोषणा की है।

"आदर्श पड़ोसी, आदर्श समाज" के बुलंद नारे के साथ, जमाअत ने 21 से 30 नवंबर 2025 तक चलने वाली दस-दिवसीय राष्ट्रव्यापी मुहिम "पड़ोसियों के अधिकार" का आगाज़ किया है। इस अभियान का उद्देश्य पड़ोसियों के प्रति सद्भाव, सम्मान और ज़िम्मेदारी की भावना को पुनर्जीवित करना है, क्योंकि पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते ही एक मजबूत और स्वस्थ समाज की आधारशिला होते हैं।

धर्मों की साझी विरासत: पड़ोसी प्रेम

इस मुहिम की घोषणा करते हुए, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने पड़ोसी धर्म की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम पड़ोसियों के अधिकारों को अत्यंत ऊंचा स्थान देता है। उन्होंने कहा, "क़ुरआन में स्पष्ट रूप से आदेश दिया गया है कि केवल निकटतम पड़ोसियों के साथ ही नहीं, बल्कि ‘अस्थाई पड़ोसी’ (जैसे सहकर्मी, सहयात्री, या सड़क पर हमारे साथ चलने वाले) के साथ भी बेहतरीन व्यवहार किया जाए।"

यह नसीहत सिर्फ इस्लाम तक ही सीमित नहीं है। हिंदू धर्म में भी 'वसुधैव कुटुंबकम्' (दुनिया एक परिवार है) का सिद्धांत रहा है, और पड़ोसी को एक विस्तारित परिवार के सदस्य के रूप में देखा जाता है।

सिखों के गुरु ग्रंथ साहिब में भी सेवा और परोपकार पर जोर दिया गया है, जो हमें सभी के साथ, खासकर अपने आस-पास के लोगों के साथ करुणा और प्रेम से पेश आने को प्रेरित करता है। ईसाई धर्म की बाइबिल सिखाती है कि "अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करो जैसे तुम खुद से करते हो।" इस प्रकार, यह मुहिम वास्तव में भारत की साझा धार्मिक और नैतिक विरासत को आगे बढ़ाती है।

हुसैनी ने आगे कहा, "इस मुहिम के ज़रिए, हम मुसलमानों को इन अनिवार्य शिक्षाओं की याद दिलाना चाहते हैं, ताकि वे अच्छे पड़ोसी बनकर समाज के सामने इस्लाम का सच्चा, शांतिपूर्ण और करुणामयी चेहरा पेश कर सकें।"

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सामाजिक परिवर्तन का आधार: दया और इंसाफ़

सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने जोर देकर कहा कि अच्छे रिश्तों की नींव पर बना समाज अपने आप ही एक मिसाली समाज बन जाता है। "जब पड़ोसी एक-दूसरे के साथ दया, क्षमा और इंसाफ़ के साथ पेश आते हैं, तो यह सद्भावना की लहर पूरे समाज को सकारात्मक रूप से परिवर्तित कर देती है। हमें उम्मीद है कि यह मुहिम सिर्फ झगड़े नहीं सुलझाएगी, बल्कि इस्लामी मूल्यों जैसे दया और सामाजिक ज़िम्मेदारी का एक मज़बूत सबूत भी बनेगी।"

"पड़ोसियों के अधिकार मुहिम" के राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद अहमद ने बताया कि यह अभियान उन शहरी इलाकों में बढ़ते अकेलेपन और सामाजिक अलगाव की भावना को भी सम्बोधित करता है, जिसने पड़ोसियों के रिश्तों को कमजोर कर दिया है। मुहिम का लक्ष्य आपसी हमदर्दी, सहयोग, साफ़-सफ़ाई और ट्रैफिक डिसिप्लिन को बढ़ावा देना है, जिसे इस्लाम एक महत्वपूर्ण सामाजिक ज़िम्मेदारी मानता है।

मैत्रीपूर्ण कार्यक्रमों की श्रंखला

इस दस दिवसीय अभियान को ज़मीन पर उतारने के लिए विविध और मैत्रीपूर्ण कार्यक्रमों की एक व्यापक श्रंखला तैयार की गई है:

सर्व-धर्म मीटिंग और 'चाय सभाएं': विभिन्न धर्मों के पड़ोसियों के साथ अनौपचारिक बैठकें आयोजित की जाएंगी, ताकि सीधे संवाद के माध्यम से आपसी गलतफहमियों को दूर किया जा सके।

  मोहल्ला सफाई मुहिम और जागरूकता रैलियां: सामुदायिक स्वच्छता और 'रास्ते के अधिकारों' (ट्रैफिक अनुशासन) पर रैलियां निकाली जाएंगी, जिससे नागरिक ज़िम्मेदारी का भाव जागृत होगा।

 'अपने पड़ोसी को जानें' कार्यक्रम: इस पहल के तहत लोगों को सक्रिय रूप से अपने पड़ोसियों के जीवन और संस्कृति को समझने के लिए प्रेरित किया जाएगा।

 सांस्कृतिक सभाएं और प्रतियोगिताएं: महिलाओं और युवाओं के लिए विशेष कार्यक्रम और सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं होंगी, जो मेल-मिलाप को मज़बूत करेंगी।

इस मुहिम का एक मुख्य केंद्र-बिंदु गैर-मुस्लिम भाइयों और बहनों तक पहुंचना है, ताकि अंतर-धार्मिक तालमेल मज़बूत हो और इस्लाम के बारे में फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर किया जा सके। मुहिम के बाद भी सतत विचारविमर्श और फॉलो-अप को प्रोत्साहित करने के लिए स्थानीय समितियों की योजना भी शामिल है।

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का यह "आदर्श पड़ोसी, आदर्श समाज" अभियान एक ऐसे समय में आया है, जब देश को सबसे ज्यादा आपसी विश्वास और सामाजिक सद्भाव की आवश्यकता है। यह पहल केवल एक धार्मिक संगठन का कार्य नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक को एक बेहतर, अधिक करुणामयी और एकीकृत समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करने वाला एक राष्ट्रीय आह्वान है।