फ़िरदौस ख़ान I बिजनौर
उत्तर प्रदेश का बिजनौर ज़िला इन दिनों एक ऐसी मिसाल का गवाह बना है, जो न केवल इंसानियत की ऊँचाइयों को छूती है, बल्कि धर्म, जाति और संकीर्णता की सीमाओं को पार कर एक नए युग की ओर इशारा करती है. यहां किरतपुर कस्बे के मोहल्ला काजियान में एक मुस्लिम व्यापारी सफ़दर नवाज़ खां ने जो किया, वह केवल एक सामाजिक कार्य नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक क्रांति का प्रतीक बन गया है
सफदर नवाज़ खां पेशे से कबाड़ के बड़े व्यापारी हैं, लेकिन दिल से वह एक ऐसे इंसान हैं जिन्होंने मानवता को अपना मजहब बना रखा है. सफदर नवाज खां ने अपने कर्मचारी गौतम कुमार की बड़ी बेटी राखी की शादी न केवल करवाई, बल्कि उसका कन्यादान भी स्वयं किया.
यह केवल रस्म अदायगी नहीं थी, बल्कि वर्षों की दोस्ती, भाईचारे और आपसी विश्वास का एक ऐसा क्षण था, जिसने पूरे नगर को भावुक कर दिया.गौतम कुमार पिछले 24 वर्षों से सफदर नवाज खां के प्रतिष्ठान पर काम कर रहे हैं.
वह एक ईमानदार और मेहनती व्यक्ति हैं. सफदर नवाज ने हमेशा उन्हें अपने परिवार का हिस्सा माना, और यह रिश्ता समय के साथ इतना गहरा हुआ कि उनके बच्चे उन्हें 'बड़े पापा' कहकर पुकारने लगे.
शादी की हर जिम्मेदारी उठाई
जब राखी की शादी तय हुई, तो सफदर नवाज खां ने पिता जैसा कर्तव्य निभाते हुए पूरा खर्च स्वयं वहन किया. उन्होंने नगर के एक बैंक्वेट हॉल में शानदार आयोजन कराया, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग आमंत्रित थे.
बारात लखीमपुर खीरी से आई, और स्वागत ऐसा हुआ कि हर कोई भावुक हो गया। फूलों की वर्षा, मिठाइयों की मिठास, और सबसे ऊपर, दिलों का मिलन — यह विवाह एक सामाजिक समारोह से कहीं आगे था.
शादी की सभी रस्में पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों से संपन्न हुईं. पंडित सुभाष खन्ना ने हवन कराया, सात फेरे दिलवाए और कन्यादान की पावन परंपरा निभवाई. जब सफदर नवाज ने राखी के हाथ में वर का हाथ रखकर आशीर्वाद दिया, तो हर आंख नम हो गई.
दिलों का मिलन बना सुर्खियों की वजह
यह शादी केवल दो व्यक्तियों के मिलन की नहीं थी — यह दो मजहबों, दो संस्कृतियों और दो समुदायों के बीच की खाई को भरने की एक गूंजती हुई कोशिश थी. मुस्लिम व्यापारी ने हिंदू लड़की की शादी में न केवल आर्थिक सहयोग दिया, बल्कि पूरे आयोजन को दिल से अपनाया.
उन्होंने सिर्फ शादी का खर्च ही नहीं उठाया, बल्कि दान-दहेज के तौर पर आवश्यक सामान भी दिया.दुल्हन राखी ने नम आंखों से कहा, "बड़े पापा ने जो प्यार, सुरक्षा और सहयोग दिया, वह आज के समय में दुर्लभ है. आज उन्होंने साबित कर दिया कि रिश्ते खून से नहीं, भावनाओं से बनते हैं."
गौतम कुमार ने भावुक होते हुए कहा, "भाई सफदर ने मेरी बेटी की शादी कराकर यह साबित कर दिया कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं."शादी में नगर के तमाम लोग शामिल हुए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के गणमान्य लोग मौजूद थे. सबने इस विवाह को एकता, भाईचारे और प्रेम का प्रतीक बताया.
जब व्यवसायी बना समाज का मार्गदर्शक
सफदर नवाज खां ने कहा, "राखी मेरी बेटी जैसी है. मैंने सिर्फ उसका कन्यादान नहीं किया, बल्कि एक संदेश देने की कोशिश की है कि हम सब एक हैं. मजहब इंसान को अलग नहीं करता, हमारे कर्म करते हैं."
वाकई, इस शादी ने समाज को यह सिखाया कि भले ही धर्म अलग हों, लेकिन दिल एक हो सकते हैं. ऐसे समय में जब देश में कई जगहों पर सांप्रदायिक तनाव देखने को मिलता है, बिजनौर की इस घटना ने मानवीय संबंधों की ताकत का परिचय कराया है.
सोशल मीडिया पर तारीफों की बाढ़
जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया पर फैली, लोगों ने सफदर नवाज खां की दिल खोलकर प्रशंसा की. ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लोग इसे 'रियल इंडिया' बता रहे हैं, जहां लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में भागीदार बनते हैं, मजहब नहीं देखते.
बिजनौर की यह कहानी सिर्फ एक शादी की नहीं है — यह उस उम्मीद की लौ है जो बताती है कि आज भी समाज में ऐसे लोग हैं जो जाति-धर्म से ऊपर उठकर सिर्फ इंसानियत को मानते हैं. सफदर नवाज खां जैसे लोग समाज के लिए आदर्श हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाते हैं कि "पड़ोसी का दुख अपना होता है, और बेटी चाहे किसी मजहब की हो, होती तो बेटी ही है."