ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
21जून को मनाया जाने वाला विश्व संगीत दिवस संगीत की सार्वभौमिकता और उसकी शक्ति का प्रतीक है. भारतीय सिनेमा में संगीत की धारा को आकार देने में कई मुस्लिम संगीतकारों का अहम योगदान रहा है. आइए जानते हैं कुछ ऐसे दिग्गज संगीतकारों के बारे में, जिनकी रचनाएँ आज भी हमारे दिलों में बसी हुई हैं.
ए. आर. रहमान – "मद्रास के मोजार्ट"
ए. आर. रहमान को "मद्रास के मोजार्ट" के नाम से जाना जाता है. उनकी रचनाएँ भारतीय फिल्म संगीत में एक नई धारा लेकर आईं. फिल्म "बॉम्बे" (1995) का संगीत, जिसमें "बॉम्बे थीम" जैसी रचनाएँ शामिल हैं, ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. "कुं फया कुं" और "ख्वाजा मेरे ख्वाजा" जैसी काव्वाली आधारित रचनाएँ उनकी विविधता को दर्शाती हैं.
इस्माइल दरबार – 'हम दिल दे चुके सनम' के संगीतकार
गुजरात के सूरत शहर से ताल्लुक रखने वाले इस्माइल दरबार ने बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई. फिल्म 'हम दिल दे चुके सनम' (1999) के संगीत के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ. उनकी रचनाएँ भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहराई और समकालीन धुनों का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करती हैं.
फीरोज़ निज़ामी – "जुगनू" के संगीतकार
फीरोज़ निज़ामी भारतीय सिनेमा के पहले संगीतकार थे जिन्होंने लता मंगेशकर को अपनी आवाज़ दी. फिल्म "मजबूर" (1948) में लता जी की पहली गायन प्रस्तुति को गुलाम हैदर ने मंच प्रदान किया. उनकी रचनाएँ पंजाबी संगीत और भारतीय रागों का सुंदर मिश्रण थीं.
मोहम्मद ज़ाहुर ख़ैयाम – "उमराव जान" और "कभी कभी"
मोहम्मद ज़ाहुर ख़ैयाम का संगीत भारतीय सिनेमा में क्लासिकल और सूफी संगीत का संगम था. फिल्म "उमराव जान" (1981) और "कभी कभी" (1976) की रचनाएँ आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में बसी हुई हैं. उन्हें पद्मभूषण जैसे सम्मान प्राप्त हुए.
गुलाम हैदर – लता मंगेशकर की पहली आवाज़
गुलाम हैदर भारतीय सिनेमा के पहले संगीतकार थे जिन्होंने लता मंगेशकर को अपनी आवाज़ दी. फिल्म "मजबूर" (1948) में लता जी की पहली गायन प्रस्तुति को गुलाम हैदर ने मंच प्रदान किया. उनकी रचनाएँ पंजाबी संगीत और भारतीय रागों का सुंदर मिश्रण थीं.
समीर कुप्पीकर – समकालीन संगीत की नई आवाज़
समीर कुप्पीकर एक उभरती हुई संगीतकार हैं, जिन्होंने 2015में फिल्म 'NH10' के गीत 'माटी का पलंग' से बॉलीवुड में कदम रखा. उनकी संगीत शैली में लोक, जैज़, और इंडी पॉप का संगम देखने को मिलता है. उन्होंने 'Bareilly Ki Barfi' जैसी फिल्मों में भी संगीत दिया है.
ज़िला ख़ान – सूफी संगीत की धरोहर
ज़िला ख़ान, उस्ताद विलायत ख़ान की पुत्री, भारतीय सूफी संगीत की प्रमुख हस्ती हैं. उन्होंने 'बाजीराव मस्तानी' जैसी फिल्मों में अभिनय किया है और सूफी संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनकी गायकी में ग़ालिब, बुल्ले शाह, और कबीर जैसे कवियों की रचनाओं का समावेश है.