Growing acceptance of yoga in Islamic countries: A new balance is being created between health and faith
अर्सला खान/नई दिल्ली
भारत की प्राचीन योग परंपरा अब विश्व की सीमाएं पार कर इस्लामिक देशों में भी गहराई से अपनी जड़ें जमा रही है. जहां एक समय योगा को कुछ इस्लामिक देशों में धार्मिक संकोचों के चलते स्वीकार नहीं किया गया था, वहीं अब यह धर्म से ऊपर उठकर स्वास्थ्य और आत्मिक संतुलन के लिए वहां लोकप्रिय होता जा रहा है. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, ओमान, मिस्र, पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों में अब योगा को खेल, फिटनेस और मानसिक स्वास्थ्य के रूप में अपनाया जा रहा है.
योग के प्रति इस्लामी देशों का नजरिया
विशेष रूप से सऊदी अरब में योगा को एक वैध खेल के रूप में मान्यता दी जा चुकी है. वहां की योग प्रशिक्षक नौफ मरवाई ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी और उन्हें भारत सरकार द्वारा 2018 में पद्मश्री से भी नवाजा गया. अब देश में योग प्रतियोगिताएं, स्टूडियो और स्कूली स्तर पर योग अभ्यास आम बात हो गई है.
संयुक्त अरब अमीरात, कतर और ओमान में भी योग दिवस के अवसर पर बड़े आयोजन किए जाते हैं. महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग सत्रों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर योगा का प्रशिक्षण दिया जाता है. कई मुस्लिम योग शिक्षकों का मानना है कि योग धर्म नहीं, बल्कि एक अनुशासन है, जो आत्मिक शांति और बेहतर स्वास्थ्य की ओर ले जाता है.
हालांकि, कुछ देशों में योग को लेकर धार्मिक असहमति भी देखने को मिलती रही है. मलेशिया में 2008 में फतवा जारी कर योग को इस्लामी सिद्धांतों के विपरीत बताया गया था, क्योंकि इसमें मंत्रों और ध्यान का प्रयोग होता है, जिसे कुछ इस्लामी विचारक गैर-इस्लामी मानते हैं. लेकिन समय के साथ अब वहां भी बिना धार्मिक संदर्भ वाले "फिटनेस योग" को बढ़ावा दिया जा रहा है.
कितना हुआ बदलाव : भारत की भूमिका
इस्लामिक देशों में योगा के प्रचार में भारत की भूमिका भी उल्लेखनीय रही है. भारतीय दूतावासों और सांस्कृतिक केंद्रों ने वहां नियमित रूप से योग शिविर, प्रशिक्षण कार्यक्रम और योग दिवस आयोजनों के माध्यम से जनजागरूकता बढ़ाई है.
विशेषज्ञों का मानना है कि योगा ने अब "हिंदू धर्म की पहचान" से आगे बढ़कर वैश्विक स्वास्थ्य और आत्मिक विकास का साधन बनना शुरू कर दिया है. मुस्लिम देशों में जहां धार्मिक भावनाएं अत्यंत संवेदनशील होती हैं, वहां योगा का बढ़ता प्रभाव यह संकेत देता है कि स्वास्थ्य और आत्मिक शांति की चाह धर्म से परे एक सार्वभौमिक आवश्यकता बन चुकी है.
योगा इस्लामिक देशों में अब न सिर्फ एक स्वास्थ्य अभ्यास बन चुका है, बल्कि यह धर्म और संस्कृति के बीच एक नई समझ और स्वीकार्यता की राह भी खोल रहा है. मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति और आत्म-नियंत्रण की चाहत ने योग को एक वैश्विक आंदोलन बना दिया है – और यह भारत की ओर से दुनिया को मिला एक अनमोल तोहफा साबित हो रहा है.
इस्लामिक समाजों में योग को लेकर जो बहस चल रही है, वह केवल धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य, संस्कृति और वैश्वीकरण का भी हिस्सा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग, ध्यान और श्वसन तकनीकों को कारगर उपाय मानता है. इससे इन देशों में स्वास्थ्य नीति-निर्माताओं को योग के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाने का आधार मिलता है.
मुस्लिम महिलाओं में योग की लोकप्रियता
हालांकि इन आपत्तियों के बीच एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो योग को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के अभ्यास के रूप में देखता है – बिना किसी धार्मिक जुड़ाव के. कई इस्लामी विद्वानों और चिकित्सकों का मानना है कि योग के अभ्यास जैसे ध्यान, प्राणायाम और ध्यानात्मक स्थिति इस्लाम में मौजूद 'सूकून' और 'तफक्कुर' (चिंतन) जैसी प्रथाओं से मिलती-जुलती हैं.
सऊदी अरब जैसे रूढ़िवादी देश में भी अब योग को एक खेल और स्वास्थ्य कार्यक्रम के रूप में मान्यता मिल चुकी है। वहां विश्वविद्यालयों में योग के कोर्स पेश किए जा रहे हैं और योग प्रशिक्षकों को लाइसेंस दिया जा रहा है. संयुक्त अरब अमीरात, कतर और तुर्की जैसे देशों में भी योगा स्टूडियोज़ खुल रहे हैं, जहां महिलाएं और युवा इसे तनाव कम करने और सेहत सुधारने का तरीका मानते हैं.
एक बड़ा परिवर्तन मुस्लिम महिलाओं के बीच देखने को मिला है, जिन्होंने योग को स्वस्थ जीवनशैली और मानसिक स्थिरता का साधन मानते हुए इसे अपनाया है. महिलाएं बताती हैं कि योग उन्हें आत्म-नियंत्रण, एकाग्रता और आत्मबल देता है, जो उनके दैनिक जीवन और धार्मिक आस्था दोनों के लिए उपयोगी है. वे यह भी मानती हैं कि योग उनकी प्रार्थना और ध्यान की प्रक्रिया को बेहतर बनाता है, जिससे वे ईश्वर से जुड़ाव को और गहरा महसूस करती हैं.
क्या कहता है WHO
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, योगा का मानसिक तनाव, अनिद्रा, पीठ दर्द और हृदय रोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. यह एक वैकल्पिक और सस्ती स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में उभर रहा है, जिसे किसी भी धर्म या संस्कृति में अपनाया जा सकता है, बशर्ते उसका अभ्यास गैर-सांप्रदायिक तरीके से हो.
इस्लामिक समाजों में योग को लेकर जो बहस चल रही है, वह केवल धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य, संस्कृति और वैश्वीकरण का भी हिस्सा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग, ध्यान और श्वसन तकनीकों को कारगर उपाय मानता है. इससे इन देशों में स्वास्थ्य नीति-निर्माताओं को योग के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाने का आधार मिलता है.