World Music Day 2025: The first musical instrument that connects the hearts of Hindus and Muslims
अर्सला खान/नई दिल्ली
हर साल 21 जून को मनाया जाने वाला विश्व संगीत दिवस (World Music Day 2025) सिर्फ धुनों का उत्सव नहीं है, यह वह विरासत है जो इंसान को इंसान से जोड़ती है – धर्म, जाति, भाषा और सीमाओं से परे. इस मौके पर जब हम संगीत के इतिहास की बात करते हैं, तो एक और महत्वपूर्ण पहलू सामने आता है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता में संगीत की भूमिका है.
कब बना पहला वाद्य यंत्र?
मानव सभ्यता के शुरुआती दौर में प्रकृति की ध्वनियों से प्रेरणा लेकर आदिम मानव ने वाद्य यंत्र बनाए. अब तक की सबसे पुरानी खोज जर्मनी की एक गुफा में मिली हड्डी की बांसुरी है, जो लगभग 43,000 साल पुरानी मानी जाती है. यह साबित करता है कि संगीत की यात्रा मानवता की शुरुआत से ही चली आ रही है.
भारत में संगीत: विविधता में एकता
भारत की ध्वनियों की भूमि में, संगीत वह पुल रहा है, जिसने धर्मों को जोड़ा है, नहीं तोड़ा. हिंदू और मुस्लिम परंपराएं भले ही धार्मिक रूप से भिन्न हों, लेकिन जब बात संगीत की आती है, तो तानपूरा, तबला, सितार और सरोद की सुर लहरियों ने हमेशा साथ मिलकर तान छेड़ा है.
भारत के संगीत इतिहास में हिंदू राजा हरिदास और मुस्लिम संगीतज्ञ तानसेन की जुगलबंदी इसका जीवंत प्रमाण है. मुगल बादशाह अकबर के दरबार में तानसेन के जरिए गाए गए राग, मंदिरों में गूंजे, और वहीं अमीर खुसरो की कव्वालियां, जो आज भी सूफी दरगाहों से लेकर भजन मंडलियों तक में गाई जाती हैं.
जहां एक ओर हिंदू परंपरा में संगीत को ‘नाद ब्रह्म’ माना गया, वहीं इस्लाम में कव्वाली, हम्द और नात के माध्यम से संगीत ने आध्यात्मिक इबादत का रूप लिया. अजमेर शरीफ, निज़ामुद्दीन औलिया और बाराबंकी की दरगाहों में आज भी संगीत धर्म और भक्ति का जरिया बनता है.
अमीर खुसरो, जो एक मुस्लिम सूफी संत थे, उन्होंने भारतीय संगीत को फारसी और तुर्की रंगों से मिलाकर ऐसी शैली दी जो हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बन गई. इसलिए संगीत सिर्फ गाने बजाने के लिए नहीं दिलों में एकता का भाव रखने के लिए भी हाेता है.
संगीत: एकता का उत्सव
विश्व संगीत दिवस पर देश के अलग-अलग हिस्सों में संगीत कार्यक्रमों में हिंदू और मुस्लिम कलाकार एक मंच पर आते हैं. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में मुस्लिम उस्तादों की भूमिका उतनी ही अहम है जितनी हिंदू पंडितों की.
उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान, जो बनारस के विश्वनाथ मंदिर परिसर में रोज़ रियाज़ करते थे, हिंदू श्रद्धालुओं के बीच उतने ही सम्मानित थे जितने मुसलमानों के बीच. उनके लिए संगीत इबादत था, जो मस्जिद और मंदिर दोनों में गूंजता था.
सुरों में सुकून है, सांप्रदायिकता नहीं
आज जब हम विश्व संगीत दिवस मना रहे हैं, तो यह दिन हमें याद दिलाता है कि संगीत धर्मों के बीच पुल बनाता है, दीवार नहीं. यह वह शक्ति है जो दिलों को जोड़ती है, इबादत बनकर मंदिरों और मस्जिदों दोनों में गूंजती है.
संगीत को धर्म से नहीं, इंसानियत से जोड़िए. तब ही यह दिवस सिर्फ सुरों का नहीं, सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता का उत्सव बन पाएगा. किसी ने क्या खूब कहा है कि सुर वही हैं, बस सुनने वाले दिल में अगर मोहब्बत हो – तो हर राग अल्लाह और भगवान दोनों को पास ले आता है.
विश्व संगीत दिवस केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि यह उस विरासत का उत्सव है जो इंसान ने हजारों वर्षों में सुरों के माध्यम से विकसित की है. पहले वाद्य यंत्र से लेकर आज की डिजिटल म्यूजिक तकनीक तक, संगीत ने न केवल भावनाओं को अभिव्यक्त किया है बल्कि समाजों, संस्कृतियों और देशों को भी एक साथ जोड़ा है.