डॉ. शुजात अली क़ादरी
पाकिस्तानी शासक इन दिनों तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन की दोहरी रणनीति की नकल कर रहे हैं. वे एक ओर देश के भीतर इस्लामी एकजुटता का नारा लगाकर जनता को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर उन्हीं वैश्विक शक्तियों से गुपचुप सौदेबाज़ी कर रहे हैं जो उनके देश को अपने रणनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं.
दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, विदेश मंत्री इसहाक डार और पीपीपी नेता बिलावल भुट्टो ज़रदारी जैसे नागरिक नेता दरअसल पाकिस्तानी सेना के ही प्रवक्ता बन गए हैं, जो असल में देश को चला रही है.
ये नेता मुस्लिम एकता का दिखावा कर रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे एर्दोआन वर्षों से करते आए हैं. लेकिन हक़ीक़त में, एर्दोआन की तरह ही पाकिस्तान के असली शासक – यानी सेना के जनरल – अपने हितों के लिए सौदे कर रहे हैं, जिससे राजनेताओं और वर्दीधारियों दोनों की तिजोरियां भर सकें.
पाक सेना के जनरल और अब खुद को "फील्ड मार्शल" घोषित कर चुके सैयद असीम मुनीर इस वक्त अमेरिका के दौरे पर हैं. ईरान-इज़रायल टकराव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने G7 सम्मेलन बीच में छोड़ते हुए मुनीर को वाइट हाउस में गुप्त बैठक के लिए बुलाया. इस बैठक में अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTCOM) के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे..
जब यह लेख लिखा जा रहा था, तब अमेरिका ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर शासन परिवर्तन के उद्देश्य से युद्ध में कूदने ही वाला था. ऐसे में असीम मुनीर की ट्रंप से मुलाक़ात वैसी ही मानी जा रही है जैसी 1980 के दशक में अफ़ग़ान मुजाहिदीन नेताओं की राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से होती थी.
पहले अमेरिका ने मुजाहिदीन को सोवियत संघ के खिलाफ इस्तेमाल किया. अब पाकिस्तान के जनरलों को ईरान की मौजूदा हुकूमत गिराने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
व्हाइट हाउस पहुंचने से पहले असीम मुनीर ने वाशिंगटन के जॉर्जटाउन स्थित फोर सीज़न होटल में प्रवासी पाकिस्तानियों को संबोधित किया. यह एक औपचारिक कार्यक्रम था.
मुनीर ने इसका इस्तेमाल भारत और ईरान के खिलाफ ज़हर उगलने के लिए किया. आश्चर्यजनक रूप से, होटल से बाहर निकलते वक्त उन्हें बुलेटप्रूफ जैकेट पहने हुए प्रवासी पाकिस्तानी जनता ने हूटिंग कर शर्मिंदा कर दिया.
इसके अगले दिन वे व्हाइट हाउस में थे. सेंटकॉम प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने पाकिस्तान को अफ़ग़ान सीमा पर "शानदार साझेदार" बताया.. खुलासा किया कि अमेरिका और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां गुपचुप सहयोग कर रही हैं. यह दर्शाता है कि वॉशिंगटन में पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत को फिर से माना जा रहा है.
दरअसल पाकिस्तानी जनरलों ने अमेरिका के इशारों पर चलने की एक कुशल रणनीति विकसित कर ली है. जब इज़रायल ने ईरान पर हमला शुरू किया, तो पाकिस्तान की सियासी जमातें ईरान के पक्ष में बयान देने लगीं.
इससे भ्रमित होकर ईरानी अधिकारियों ने तक कह दिया कि अगर इज़रायल ने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया तो पाकिस्तान उसे परमाणु जवाब देगा. लेकिन अमेरिकी नाराज़गी के डर से पाकिस्तान को तुरंत इससे पल्ला झाड़ना पड़ा.
जैसे-जैसे युद्ध बढ़ा और ईरान को पड़ोसी मदद की ज़रूरत महसूस हुई, पाकिस्तान की ओर से सिर्फ बयानों की बौछार हुई. न कोई मदद, न कोई समर्थन। यहां तक कि रूस और चीन से ज़मीनी सहायता लाने का प्रयास तक नहीं किया गया. इसके उलट, पाकिस्तानी आर्मी से जुड़े पॉडकास्टर्स और पत्रकार खुलेआम ईरान की आलोचना करते दिखे.
जनरल मुनीर का यह अमेरिका दौरा और ट्रंप से मुलाक़ात शायद इसी रणनीति का हिस्सा है जिसमें यह तय किया जा रहा है कि ईरान के बाद की स्थिति में पाकिस्तान क्या भूमिका निभाएगा. पाकिस्तान इसकी पूरी कीमत वसूलने की कोशिश करेगा.
पाकिस्तान चीन और IMF से भारी कर्ज़ में डूबा हुआ है. उसकी अर्थव्यवस्था लंबे समय से चरमराई हुई है. इसलिए उसे अपने आर्थिक नीतियों को कर्ज़दाताओं के अनुसार ढालना पड़ रहा है. अब पाकिस्तान डिजिटल टूल्स जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्रिप्टो करेंसी और नेशनल बिटकॉइन वॉलेट को अपनाने की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है.
पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल नामक संस्था की अगुवाई बिलाल बिन साकिब कर रहे हैं, जो प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार हैं . "क्रिप्टो ज़ार" के रूप में जाने जाते हैं. वे जनरल मुनीर के बेहद क़रीबी माने जाते हैं . लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई के बाद तुरंत ही इस पद पर नियुक्त कर दिए गए थे..
उन्होंने पाकिस्तान में बिजली के अधिशेष उपयोग को क्रिप्टो माइनिंग, ब्लॉकचेन कंपनियों और AI स्टार्टअप्स को आकर्षित करने में लगाने की योजना बनाई है. मई में उन्होंने लॉस वेगास में ट्रंप के बेटे एरिक ट्रंप और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस की मौजूदगी में इन योजनाओं की घोषणा की..
इन योजनाओं में पाकिस्तान के तीन कोयला आधारित बिजली संयंत्रों (जो सिर्फ 15% क्षमता पर चल रहे थे) को क्रिप्टो माइनिंग और AI संचालन के लिए इस्तेमाल करने की बात शामिल है.. साकिब ने इसे पाकिस्तान की अतिरिक्त बिजली का रणनीतिक उपयोग बताया, जो अधूरी औद्योगिक गतिविधियों और भारी आधारभूत संरचनाओं के चलते बच रही थी.
इस योजना के तहत पाकिस्तान बिना करदाताओं के पैसे खर्च किए, एक "राष्ट्रीय बिटकॉइन वॉलेट" बनाकर जब्त की गई डिजिटल संपत्तियों को “राष्ट्रीय भंडार” के रूप में जमा करेगा. इसका मक़सद क्रिप्टो माइनर्स से शुल्क और वैश्विक दान के ज़रिए एक डिजिटल रिजर्व खड़ा करना है, ठीक वैसा ही जैसा अमेरिका के टेक्सास राज्य में किया जा रहा है.
इस मॉडल में, पाकिस्तान अपनी बेकार पड़ी बिजली को डिजिटल संपत्ति में बदलकर विदेशी मुद्रा कमाने की उम्मीद कर रहा है. लेकिन यह मॉडल पाकिस्तान की अस्थिर राजनीतिक स्थिति में टिक पाएगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है.
2021 में जब पाकिस्तान में बिजली की दरें बढ़ाईं गईं थीं तो कराची और लाहौर समेत देशभर में प्रदर्शन हुए थे. उसी दौरान जनता का ध्यान भटकाने के लिए फर्जी आतंकी घटनाएं रचने का आरोप भी सेना पर लगा था. जैसा कि पहलगाम हमले के समय हुआ.
इसके अलावा, क्रिप्टो करेंसी पाकिस्तान में लोकप्रिय नहीं है. कई मौलवियों ने इसके खिलाफ फतवे जारी किए हैं. कहा गया है कि यह जुए और शेयर बाजार की तरह हराम है.. युवाओं को बर्बाद कर रही है. एक फतवे में तो इसे "यहूदी साजिश" तक बताया गया है, जो मुस्लिम युवाओं को आसान पैसे की लत लगाने की साज़िश है..
फिर भी, अमेरिकी दबाव में पाकिस्तान की सरकार और फील्ड मार्शल मुनीर जैसे नेता इन फतवों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं. आज पाकिस्तान में 4 करोड़ से ज्यादा क्रिप्टो यूज़र्स हैं.
डिजिटल साक्षरता बढ़ रही है. ऐसे में पाकिस्तान न सिर्फ़ डिजिटल बुनियादी ढांचे का केंद्र बनने का सपना देख रहा है. खुद को ब्लॉकचेन और डिजिटल मुद्राओं में एक "इस्लामी गणराज्य की अगुवाई वाली ताकत" के रूप में स्थापित करना चाहता है.
(लेखक एमएसओ इंडिया के अध्यक्ष हैं)