अनीता
भारत में महिलाएं ’’हरितालिका तीज’’ को बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं और करवा चौथ की भांति ही पार्वती मैया से अपने पति की दीर्घायु और परिवार में सुख-शांति की कामना करती हैं. यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन की स्मृति में मनाया जाता है और इसका महत्व सुहागिन एवं अविवाहित दोनों प्रकार की महिलाओं के लिए अत्यंत शुभ माना गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हरितालिका तीज ’’भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि’’ को मनाई जाती है. यह दिन विशेष रूप से उत्तर भारत, खासकर ’’उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र’’ सहित देशभर में बड़े उत्साह से मनाया जाता है.
शुभ मुहूर्त
सनातन वैदिक हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि सोमवार 25 अगस्त 2025 को अपराह्न 1.54 बजे से प्रारंभ होकर, मंगलवार 26 अगस्त 2025 को अपराह्न 1.54 बजे तक रहेगी. इसलिए, उदया तिथि विधान के अनुसार हरतालिका तीज 26 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत और पूजा होगी. महिलाएं इससे एक दिन पहले यानी 25 अगस्त की सायं से अपना निर्जला व्रत शुरू कर देंगी.
हरतालिका तीज व्रत की पूजा सूर्यास्त के बाद शुरू होने वाले समय प्रदोष काल में की जाती है. oni पूजा का समय सायं 06.49 बजे है. इसके बाद पूजा प्रारंभ होगी. इस बार हरतालिका तीज पर साध्य योग, शुभ योग औररवि योग बन रहे हैं. हरतालिका तीज व्रत का पारण समय 27 अगस्त को सूर्योदय के साथ किया जाएगा. हरतालिका तीज का पारण सुबह 05.57 बजे से होगा.
हरितालिका तीज की पूजा विधि
हरितालिका तीज व्रत विशेष रूप से महिलाएं करती हैं. इस दिन ’’निर्जला व्रत’’ रखा जाता है, यानी बिना जल और अन्न ग्रहण किए हुए पूरे दिन व्रत करना. सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. व्रत का संकल्प लें और भगवान शिव-पार्वती का ध्यान करें. घर के मंदिर या स्वच्छ स्थान पर मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा बनाएं.
कलश की स्थापना करें और उसके ऊपर नारियल रखें. माता पार्वती को सुहाग का सामान जैसे चूड़ी, सिंदूर, बिंदी, कंगन, लाल चुनरी, महावर आदि अर्पित करें. माता को 16 श्रृंगार अर्पित करना शुभ माना जाता है. सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें. उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त पूजा करें. बेलपत्र, धतूरा, फल-फूल और पंचामृत अर्पित करें. शिव-पार्वती की कथा सुनें और उनका ध्यान करें. दीप जलाकर आरती करें. रात्रि जागरण करें और भगवान शिव-पार्वती का स्मरण करते हुए पूरी रात भजन-कीर्तन करें. अगले दिन प्रातःकाल ब्राह्मण या किसी विवाहित महिला को दान-दक्षिणा देकर व्रत का समापन करें.
हरितालिका तीज की कथा
हरितालिका तीज की कथा ’’भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह’’ से जुड़ी है. एक बार हिमवान की पुत्री पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने का निश्चय किया. किंतु उनके पिता हिमवान उनका विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते थे. इस बात से व्यथित होकर माता पार्वती अपनी सहेलियों के साथ घने जंगल में चली गईं और वहां जाकर कठोर तपस्या करने लगीं. पार्वती जी ने कई वर्षों तक कठिन व्रत और तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करने का वचन दिया. कहा जाता है कि जिस दिन पार्वती जी ने यह कठोर व्रत आरंभ किया, वही दिन ’’भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि’’ था. इसी कारण इस दिन को ’’हरितालिका तीज’’ कहा जाता है.
धार्मिक महत्व
यह व्रत महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु प्रदान करता है. मान्यता है कि इस व्रत से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है. जो अविवाहित कन्याएं यह व्रत करती हैं, उन्हें योग्य वर की प्राप्ति होती है. माता पार्वती की तरह उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है. हरितालिका तीज आत्मसंयम, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है. यह पर्व स्त्रियों के धैर्य और तप की महत्ता को दर्शाता है.
इस दिन महिलाएं सुंदर परिधान और आभूषण पहनकर एकत्रित होती हैं. पारंपरिक गीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है. विशेषकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में यह पर्व सामूहिक रूप से बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. गांवों और कस्बों में तीज के मेले भी लगते हैं, जहां लोककला और हस्तशिल्प की झलक देखने को मिलती है. भारतीय संस्कृति के साथ-साथ प्रवासी भारतीय भी विदेशों में इस पर्व को मनाते हैं. अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में बसे भारतीय समुदाय इस दिन सामूहिक व्रत और पूजा का आयोजन करते हैं. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी महिलाएं जुड़कर इस व्रत की कथा और पूजा करती हैं.