बिहार के मुहर्रम में गंगा जमुनी तहजीब की झलक

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 27-07-2023
बिहार के मुहर्रम में गंगा जमुनी तहजीब की झलक
बिहार के मुहर्रम में गंगा जमुनी तहजीब की झलक

 

सेराज अनवर/पटना

मुहर्रम माह का चांद शहीदान ए कर्बला की याद में आंसू बहाने के लिए बेताब कर देता है.हज़रत इमाम हुसैन ने हक़ और इंसानियत के लिए शहादत दी थी.उनकी शहादत इंसाफ,त्याग और बलिदान का सबक देती है. बिहार में हिंदू  धर्मावलंबी बड़ी अकीदत के साथ मोहर्रम का ताजिया बनाते हैं,'पैकर' लगते हैं और श्रद्धा के साथ जुलूस में शामिल होकर बोल मोहम्मदी  या हुसैन, हक हुसैन, हसन - हुसैन और या अली का नारा लगाते हैं.

यहां हिंदू समुदाय भी दशकों से मुहर्रम मनाता आ रहा है.बिहार के मुहर्रम में गंगा जमुनी तहजीब की झलक मिलती है.अधिकतर पैकार हिन्दू होते हैं.कई जगह पर हिन्दू-मुस्लिम मिल कर ताजिया बैठाते और पहलाम करते हैं.
 
कटिहार,नवादा,सासाराम,गया का मुहर्रम मशहूर है. ताजिया बनना शुरू हो चुका.ताजिया भी भिन्न-भिन्न तरीकों के,अनोखे अंदाज का. ताजिया की नक़्स निगारी ऐसी के देखते बनती है.कहीं का ताजिया मशहूर तो कहीं की मेहंदी.मोहर्रमी अखाड़ा का क्या कहना.अखाड़ा कमेटी की बैठकें चल रहीं हैं. पैग़ाम ए मुहर्रम का आयोजन भी हो रहा है.
 
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बिहार में एक गांव ऐसा भी जहां दशकों से हिन्दू मना रहे मुहर्रम

कटिहार जिले में हसनगंज प्रखंड पड़ता है.वहां एक गांव है महम‍दिया हरिपुर.इस गांव के नाम में भी हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की झलक दिखती है.यहां हिन्दू समुदाय भी दशकों से मुहर्रम मनाता आ रहा है.इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है.
 
कटिहार निवासी प्रो.मोजिब आलम के मुताबिक, इस गांव में पहले वकील मियां नाम के एक शख्स रहते थे.अपने बेटे के इंतकाल के बाद वो गांव छोड़कर चले गए.जाने से पहले उन्होंने अपने मित्र छेदी शाह को गांव में मुहर्रम मनाने को कहा था. 
 
चूंकि यह गांव हिन्दू बहुल इलाका है. 1200 की आबादी वाले इस गांव में वकील मियां के जाने के बाद कोई मुस्लिम परिवार नहीं बचा. ऐसे में उनके किए गए वादे को निभाते हुए इस गांव में हिन्दू ही मुहर्रम मनाते आ रहे हैं.महमदिया हरिपुर गांव में हिन्दू समुदाय के लोग मुस्लिमों की तरह मुहर्रम मनाते हैं.बड़ी संख्या में हिन्दू महिलाएं इसमें शामिल होती हैं. 
 
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हिन्दू समुदाय के लोग मजार पर चादरपोशी करते हैं. इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए नारे भी लगाते हैं. फातिहा भी पढ़ा जाता है. इतना ही नहीं, पूरे गांव में ताजिये का जुलूस भी निकाला जाता है.गंगा जमुनी तहजीब वाले इस गांव के लोगों का कहना है कि हम सभी मिलजुल कर यहां मुहर्रम मनाते हैं.
 
इसकी चर्चा दूर-दूर तक है. इसी तरह नवादा में भी हिन्दू भाई अकीदत के साथ मुहर्रम मनाते हैं.सामाजिक कार्यकर्ता मसीह उद्दीन बताते हैं, मेरे गांव में स्व.झरी पासी और बगल के पुनौल गांव में चौहान समाज का ताजिया बड़ी श्रद्धा के साथ बनता चला आ रहा है. प्यार, भाईचारा,एकता और हुसैन- ज़िन्दाबाद का पैगाम फैला रहा है.
 
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सासाराम में शाही अंदाज़ में मुहर्रम

यहां मुहर्रम मनाने की रवायत शेरशाही दौर से भी पहले से चला आ रहा है . शेरशाह सूरी के दौर से इसका चलन शाही अंदाज में मनाया जाता रहा है. विभिन्न ताजियां जुलूसों के दौरान मुस्लिम समुदाय के युवाओं द्वारा परंपरागत हथियारों के साथ युद्ध-कला कौशल को प्रस्तुत किया जाता है,जो इस जुलूस में लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहता है. 
 
यहां की ख्याति प्राप्त ताजिया के निर्माण में अब मोतियों के साथ चाइनीज इलेक्ट्रिक लाइट, शीशा सहित कई कीमती सामग्रियों का इस्तेमाल किया जा रहा है.कारीगरों की माने तो ताजिया निर्माण में लाखों का खर्च किया जाता है.
 
मोहर्रम पर्व को लेकर गया का कर्बला भी सज गया है.बगदाद की तरह यहां भी कर्बला है.मगर यहां कोई दफन नहीं है.यह सांकेतिक है.अकीदतमंदों का दावा है कि कर्बला में दाखिल होते ही शहादत हुसैन की याद और अहसास ज़िन्दा हो जाता है.
 
शांति समिति की बैठक कर्बला के खादिम डॉ सैयद शब्बीर अहमद की अध्यक्षता में  आयोजित की गई जिसमें गया सिटी डीएसपी पीएन साहू ,सदर अनुमंडल पदाधिकारी राकेश कुमार, कोतवाली थाना प्रभारी बबन बैठा,युवा राजद नेता आमिर सोहैल, पीस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव इकवाल हुसैन, वार्ड पार्षद इस्लाम अहमद,नादरागंज से हलीम खान  ,रंजन यादव शामिल थे.
 
muharram
 
कर्बला की रौनक़ मुहर्रम के चांद देखने से ही शुरू हो जाती है.पांच तारीख को मिट्टी बैठायी जाती है.पवित्र स्थान से मिट्टी लाने लोग ढोल-ताशा के साथ अखाड़ा खेलते रात में निकलते हैं.मिट्टी लाने के बाद इमामबाड़ा पर ढक दी जाती है.फिर यहीं पर मुहर्रम की नौ तारीख़ को ताज़िया बैठायी जाती है.सात तारीख की अर्धरात्रि में कर्बला से मेहंदी निकलता है.
 
मेहंदी ताज़ियाना होती है.बिहार में मेहंदी सिर्फ़ गया में निकलती है.मेहंदी जुलूस टावर चौक पर आकर खत्म होती है.कहते हैं कि सूरज की रौशनी पड़ने से पहले तक मेहंदी हरी-भरी रहती है.सूर्य का प्रकाश पड़ते ही मेहंदी मुरझा जाती है.
 
ऐसे तो बिहार के अधिकतर जगहों पर ताज़िया पहलाम के साथ 10 तारीख़ को ख़त्म हो जाता है.मगर गया में ग्यारह तारीख तक मुहर्रम मनाया जाता है.यहां का अखाड़ा काफी चर्चित है.अखाड़ा में एक से एक हुनरबाज़ अपना हुनर दिखाते हैं.
 
 
muharram
 
मुहर्रम पर शिया-सुन्नी उलेमा का खिताब

सामाजिक संस्था अल-हम्द में आज ‘पैग़ाम ए मुहर्रम’पर एक लेक्चर का आयोजन हुआ.यह महीना मुहर्रम का चल रहा है,जो इस्लामी साल का पहला महीना है.इस महीने की 10 तारीख को कर्बला में हजरत इमाम हुसैन को यज़ीदियों ने शहीद कर दिया था.
 
दसवीं तारीख को यौमे आशूरा कहते हैं.पटना के हारून नगर स्थित अल-हम्द के दफ़्तर में आयोजित कार्यक्रम की खासियत यह रही कि शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमा,बुद्धिजीवी ने एक मंच से मुहर्रम के पैग़ाम को फैलाने का काम किया.
 
पटना सिटी स्थित मदरसा सुलेमानिया के पूर्व प्राचार्य और शिया आलिम मौलाना अमानत हुसैन ने अपने संबोधन में मुहर्रम के महत्व का ज़िक्र करते हुए कहा कि इमाम हुसैन की शख़्सियत ऐसी है कि जिसको हर मज़हब और मसलक के लोग मानते हैं.
 
सुनने से ज़्यादा उनकी शख़्सियत को दिल में उतार लें.हर मंजर का पसमंजर होता है.मुहर्रम ज़ख्म भी है और मरहम भी है.एक पैग़ाम है ज़ालिम के सामने सिर नहीं झुकाना.आज भी शरीयत को निशाना बनाया जा रहा है.
 
इमाम हुसैन ने शहादत दे दी मगर सिर नहीं झुकाया.मदीना में लोगों की कमी नहीं थी.मगर जब बात शरीयत पर आ गयी तो इमाम हुसैन निकल पड़ें.इमाम हुसैन जंग या तख़्त वो ताज के लिये कर्बला नहीं पहुंचे थे.हुसैन की कुर्बानी पूरी मानवता के लिए है.
 
उन्होंने अपनी जान देकर पूरी इंसानियत को बचा लिया .जिस तरह 15 अगस्त को प्रत्येक धर्म के लोग देश पर निछावर शहीदों को याद करते हैं.इमाम हुसैन को हम इस लिए याद करते हैं कि यदि उस वक़्त होते तो हम उनके साथ होते.उस वक़्त तो हम सब थे नहीं,इसलिए आज यह बताना चाहते हैं कि यकीनन हम कर्बला में इमाम हुसैन के साथ होते.
 
अल-हम्द के अध्यक्ष मुफ्ती सुहैल अहमद क़ासमी ने कहा कि मुहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है. इसी महीने से हिजरी कैलेंडर का आगाज होता है.इस महीने में इमाम हुसैन की शहादत का वाकया पेश आया जो आला दर्जा के इस्लाम और शरीयत पर अमल करने का सबक देता है.
 
shiya leaders
 
अल-हम्द के सरपरस्त अशफ़ाक़ रहमान ने पैग़ाम ए मुहर्रम को आमजन तक पहुंचाने पर ज़ोर दिया.उन्होंने कहा कि यह इस्लामी इतिहास से जुड़ा है.इमाम हुसैन की शहादत बुराई के आगे नहीं झुकने और हक़ के लिए मर मिटने का पैगाम देता है.
 
लेकिन,दुर्भाग्य से इस संदेश को आज मुस्लिम समुदाय के लोग ही मटियामेट करने पर तुले हैं.मुहर्रम के मौके पर ताजिया,अखाड़ा,डीजे,नाच-गाना और भिन्न-भिन्न बेहुदगियों से मुहर्रम के पैग़ाम को आज नई-नस्ल मजरूह करने पर आमादा है और उलेमा हज़रात कुछ नहीं कहते यह मुस्लिम समाज का विडम्बना है.कार्यक्रम में नाफे आरफ़ी,साजिद परवेज़,अनवारुल होदा,मौलाना मोहम्मद रज़ा उल्लाह,मौलाना मोहम्मद जमाल उद्दीन कासमी,मौलाना इक़बाल,अनवारुल्लाह,हाफ़िज़ महताब आलम,मोहम्मद हसनैन,नवाब अतीक़ उज़ ज़मा,मुफ्ती इमाम उद्दीन कासमी आदि भी शरीक रहे.