दयाराम वशिष्ठ / फरीदाबाद (हरियाणा)
राजधानी दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दूर हरियाणा के फरीदाबाद जिले का मुस्लिम बाहुल्य गांव खंदावली एक अलग ही तस्वीर पेश कर रहा है. डेढ़ दशक पहले इस गांव के बच्चे केवल मिड डे मील के लिए स्कूल पहुंचते थे, अब बच्चों की पढ़ाई ही ओढ़ना-बिछौना है. खासकर गांव की तस्वीर बदलने में बच्चियों और उनके अभिभावकों का बड़ा हाथ है. तमाम बंदिशों से बाहर निकलकर शहरों में जाकर शिक्षा ग्रहण कर रही है.
खेल में भी गांव के बच्चों ने कामयाबी के झंडे गाड़े हैं. कई मेडल गांव में लाए हैं. खंदावली की बच्चियां दिल्ली व एनसीआर के कॉलेज, यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाती हैं. जानकर आश्चर्य होगा कि गांव की बच्चियां डिग्री, डिप्लोमा व स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल कर रही हैं. गांव में पीएम मोदी का नारा ‘ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ खरा उतर रहा है.
शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव
खंदावली गांव में पिछले डेढ़ दशक में शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव देखने को मिला है. अभिभावक के बच्चों के शिक्षा के प्रति जागरूक होने के चलते ही आज उनका कॉलेज व यूनिवर्सिटी जाना संभव हो रहा है. दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया सेंट्रल यूनिवर्सिटी में में खंदावली की कई लड़़कियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं.
फरीदाबाद के नेहरू कॉलेज के अलावा दूसरे कॉलेजों में भी यहां की बच्चियां डिग्री-डिप्लोमा कर रही हैं. कुछ बच्चे एमबीबीएस की भी पढ़ाई कर रहे हैं और कई लड़कियां दिल्ली में से फार्मेसी कर रही हैं. षमा प्रवीण हिसार यूनिवर्सिटी से एएनएम, रूकसार व लाइवा समेत काफी लड़कियां उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही हैं.
पिछले दिनों गांव की बेटी एवं पूर्व सरपंच अब्दुल सत्तार की भतीजी एवं फार्मेसी की छात्रा लाइवा को दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर की ओर से भी सम्मानित किया जा चुका है. हाजी अरशद खान एडवोकेट की बेटी खतीजा खान आयुर्वेदिक से बीएमएस कर फरीदाबाद के बीके अस्पताल में प्रैक्टिस कर रही हैं, जबकि बेटा ईएसआई अलवर से एमबीबीएस की पढाई कर रहा है.
गांव में सरकारी अफसर, ड्राप आउट की समस्या भी
6 हजार की आबादी वाले खंदावली गांव में पीएचडी ,शिक्षक, वकील व इंस्पेक्टर समेत कई लोग सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं. बावजूद इसके ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या भी यहां कम नहीं. नेहरू कॉलेज में कार्यरत प्रोफेसर डॉक्टर अब्बु उरेरा इसी गांव से हैं.
उनका कहना, ‘‘ अभी भी उनके गांव में ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या 65 से 75 फीसदी है, जो चिंता का विषय है. कुछ परिजन केवल बच्चियों को शादी करने के उद्देश्य से बमुश्किल 10 वीं तक पढ़ाते हैं. 12वीं तक पढ़ाई जारी रखने वालों की संख्या थोड़ी है.
गांव पर एक नजर
आर्थिक दिक्कत बड़ा अड़ंगा
देश की आजादी के बाद खंदावली गांव के लोगों का मुख्य धंधा खेती बाड़ी रहा. कृषि से जुड़े होने के नाते यहां के लोग बोरिंग के काम में माहिर हैं. धीरे धीरे गांव के लोगों का बोरिंग कर हेडपंप लगाने का काम मुख्य धंधा बन गया. बच्चे घर का काम करने अथवा बाहर काम करके परिवार की आय में हाथ बंटाने लगे. वे स्कूल जाने की जगह धंधे में लग गए.”
प्रोफेसर डॉक्टर अब्बु उरेरा के अनुसार, शिक्षा प्राप्त करना सभी का अधिकार है. समाज में बदलाव लाने के लिए यह जरूरी है, लेकिन आर्थिक दिक्कत गांव के अभिभावकों के सामने रहती है. इसकी वजह से गावं के बच्चे पढ़ाई में पिछडते रहे. अलग बात है कि परिवार में आर्थिक दिक्कत होने के बावजूद जामिया से डिग्री हासिल कर रिजवाना ने उदाहरण किया पेश किया है.
रिजवान गांव की एक ऐसी लड़की है, जिसने एक उदाहरण पेश किया है. शुरू से कठिन डगर के बावजूद जामिया दिल्ली से गणित से बीएससी की डिग्री हासिल की है. पिता मोहम्मद इलियास मैकेनिक हैं. उनकी आमदनी न के बराबर है. भाई बीमार रहता था.
इलाज कराने के बावजूद 27 सितंबर 2019 को उसकी मौत हो गई. परिवार सदमे में डूब गया. फिर भी रिजवाना ने हिम्मत नहीं हारी. फिलहाल वह सेल्फ कोचिंग लेकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है. नवीं कक्षा में पढ़ते वक्त रिजवाना को आर्थिक दिक्कत के चलते कुछ समय के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा था.
तब गांव के अमजद खान फरिश्ता बनकर उनके घर आए. पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए उसे दोबारा स्कूल भेजना प्रारंभ किया. रिजवाना भी अपने छोटे भाई व दो बहनों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती रही है. रिजवाना जामिया से डिग्री हासिल करने के बाद खंदावली के एक प्राईवेट स्कूल में बतौर शिक्षिका बच्चों को पढ़ा रही है.
रिजवाना ने आवाज द वायस को बताया, ‘‘ वह स्कूल से मिलने वाले वेतन से घर खर्च चलाने के अलावा भाई ,बहनों को पढ़ा रही है. उसके परिजनों की इच्छा है कि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर काबिल बनें. मैं उसी लक्ष्य की ओर बढ़ रही हूं.’’
खेलों में गांव के बच्चों की धमक
गांव से जुड़ा यह किस्सा भी दिलचस्प है. वर्ष 2006 में रजौलका, पलवल से प्रहलाद सिंह व बल्लभगढ़ से राजेश अहलावत जेबीटी शिक्षक के पद पर खंदावली में बतौर गेस्ट टीचर सेवाएं देने पहुंचे. तब स्कूल में बच्चों की संख्या मात्र 300 थी. बच्चों का रुझान केवल मिड डे मील का भोजन लेने तक सीमित था.
उनकी अशिक्षा को देख शिक्षकों ने एक प्रयोग प्रारंभ किया. उन्होंने एक अन्य शिक्षक यादराम के साथ मिलकर पैरेंट्स मीटिंग का सिलसिला शुरू कर बच्चों को स्कूल में दाखिल कराने के लिए प्रेरित किया. उनकी मेहनत रंग लाई. स्कूल में बच्चों की संख्या निरंतर बढ़ती गई. इनमें बच्चियों की संख्या कहीं अधिक थी.
फिर उन्हें विभिन्न खेलों के प्रति प्रेरित और प्रशिक्षित किया गया. आज इस स्कूल के बच्चे खो-खो समेत अन्य खेलों में राज्यस्तरीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में लगातार मेडल ले रहे हैं. यहां के बच्चे पहले कभी गांव से बाहर नहीं गए थे. अब खेलों के माध्यम से उनकी हरियाणा में अलग पहचान बन गई है.
गांव के बच्चों को कई बार प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रदेश के विभिन्न शहरों फतेहाबाद, पानीपत, रेवाड़ी तक जाना होता है. आज इस स्कूल की पहचान पूरे हरियाणा में है. स्कूल के पीटीआई प्रकाश वीर ने बताया, ‘‘ यहां बच्ची अच्छी तालीम के साथ खेलों में भी अच्छा कर रहे हैं.’’
1320 बच्चे कर रहे शिक्षा ग्रहण
स्कूल की प्रिंसिपल शशि यादव कहती हैं , ‘‘ इस स्कूल के बच्चे खेलों के साथ शिक्षा में भी नाम रोशन कर रहे हैं. 10 वीं कक्षा में कई बच्चों ने 80 फीसदी अंक हासिल किए हैं. यहां की लड़कियां बहुत काबिल हैं. उन्हें केवल प्रोत्साहित करने की जरूरत है.‘‘
उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा, ‘‘ 50 फीसदी से अधिक बच्चे अभी भी पढाई छोड़ कर घर बैठे हैं.इसके लिए वो समय समय पर पैरेंटस मीटिंग कर ड्रॉप आउट कम करने की कोषिष करती रहती हैं. शिक्षक भी इस समस्या पर काम कर रहे हैं. इस मामले में अभिभावकों को भी आगे आना पड़ेगा. इसके बावजूद खास बात यह है कि उनके स्कूल में आज भी लड़कों से ज्यादा लड़कियां शिक्षा ग्रहण करने में अगो हैं. छात्राओं की संख्या 693 है, जबकि कुछ विद्यार्थी स्कूल में 1320 हैं.
कोचिंग सेंटर की जरूरत
डॉक्टर अब्बु उरेरा का मानना है, गांव में कोचिंग सेंटर खोलने की जरूरत है. इससे बच्चों में उच्च शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ेगी. कोचिंग सेंटर खुलने से बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकेंगे. इससे पढ़ाई का भी माहौल बदलेगा.
लिंगानुपात में खंदावली आगे
लिंगानुपात में खंदावली खास अहमियत रखता है. गांव में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या अधिक है. इसके चलते ग्राम पंचायत को सम्मानित किया जा चुका है.मोहम्मद जाहिद कहते हैं, ‘‘ जागरूकता से बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं. लड़कियों के लिए इलाके में एक कॉलेज खोले जाने की जरूरत है.
भनकपुर, मादलपुर, लदियापुर, फिरोजपुर तगा, बीजोपुर समेत आसपास के गांवों से लड़कियों को शिक्षा के लिए शहरों में जाना पड़ता है. मोहम्मद जाहिद आगे कहते हैं, षिक्षा बढ़ेगी तो नई पीढ़ी आगे चलकर लिंगानुपात को दुरूस्त रखने में भी सहायक साबित होगी.
पहले कुरान, नमाज तक सीमित थे बच्चे
गांव के 70 वर्षीय अब्दुल रहीम आज शिक्षा के क्षेत्र में जागरूकता आने से बेहद खुश हैं. उनका कहना, ‘‘ पहले केवल उनके बच्चे कुरान व नमाज तक सीमित थे. आज शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़कर संस्कारवान बन रहे हैं. उनके पोते व पौती भी 10वीं व 12 वीं कक्षा में हैं.
गांव में शिक्षा का अलख जगाने में ग्राम पंचायत का विशेष योगदान रहा है. पूर्व सरपंच निसार अहमद ने बताया, ’’ उन्हें शिक्षक व प्रशासन का पूरा सहयोग मिला. शिक्षा के क्षेत्र में कमियों को पूरा करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से पत्राचार करते रहे. अब वे स्कूल में शिक्षकों की संख्या की मांग को पूरा करने में जुटे हैं.
पूर्व सरपंच अब्दुल सत्तार के अनुसार, पहले बच्चियों की पढ़ाई पर अभिभावकों कोई ध्यान नहीं था. बच्चों के रिश्तों के समय पढ़ाई के महत्व का अहसास होता था. इसके बाद लोगों में बच्चों को शिक्षित करने के प्रति जागरूकता आई.
गांव में गंदगी का आलम
भले ही गांव के बच्चे खेल व शिक्षा में गांव का नाम रोशन कर रहे हैं, लेकिन गांव में अभी भी गंदगी का आलम बना हुआ है. नालियां गंदगी से भरी हुई हैं. जगह जगह पानी भरा हुआ है. कनेक्टिवटी की बात करें तो सड़क जर्जर हालत में है. गांव के लोगों का मानना है कियहां सुधार की व्यापक जरूरत है.
जिला परिषद के चेयरमैन विजय लोहिया, गांव में सौंदर्यीकरण का जल्द काम शुरू होने की बात करते हैं. उन्होंने बताया कि गांव के तालाबों का आधुनिकीकरण किया जाएगा. नालियों का पानी सीधे तालाब में डालने की व्यवस्था होगी. कब्रिस्तान की चारदीवारी समेत कई अन्य विकास कार्य भी कराए जाएंगे.