शहताज खान
"मेरी नज़र में रिटायरमेंट जैसी कोई चीज़ नहीं है बल्कि यह केवल एक पारिभाषिक शब्द मात्र है." यह कहना है डॉ. आबिद मुइज का. वह कहते हैं, "रिटायर का लेबल लगते ही अच्छे खासे व्यक्ति की सोच बदलती है और दूसरों की नज़र में उसके लिए सहानुभूति वाले भाव उत्पन्न होते हैं."
पेशे से पोषणविद डॉक्टर आबिद मुइज का विचार है कि रिटायरमेंट की जगह अगर यह कहा जाए कि "हमें आप की सेवाएं इस आयु तक चाहिए, उसके बाद यह मौक़ा हम किसी और को देंगे, तो बेहतर होगा."
यह बात तो हम सभी भलीभांति जानते हैं कि किसी भी सेवा में हर अधिकारी कर्मचारी की एक निश्चित समय के उपरान्त सेवानिर्विति होती है. वह कहते हैं कि समझना केवल इतना है कि यह सिर्फ़ प्रक्रिया का एक हिस्सा भर है.
डॉक्टर आबिद मुइज ने उम्र के किसी भी पड़ाव पर आराम की जगह काम को चुना. सऊदी अरब से पोषणविद (nutritionist) की अपनी सेवाएं इसलिए छोड़कर देश वापसी का सफ़र किया क्योंकि वह अपने मेडिकल पेशे से अर्जित अनुभवों और ज्ञान को उर्दू भाषा में लिख कर आम लोगों तक पहुंचाना चाहते थे.
डॉक्टर आबिद अभी तक 40 से अधिक किताबें लिख चुके हैं और कलम लगातार चल रही है. एक डॉक्टर का लेखक बनने के सफ़र में आज यह हाल है कि उनकी छह वर्ष की नवासी नूरा फातिमा कहती हैं कि "नाना जी आप ऊर्दू राइटर हैं, डॉक्टर नहीं."
जुनून, हौसला और तैवर आज भी वही है
कलम से आबिद मुइज का रिश्ता पुराना है. वह पोषणविद् रहते हुए भी ऊर्दू में "तंज़ ओ मिजाह" लिखने के साथ अपने पेशे से संबंधित चिकित्सा संबंधी जानकारियां लोगों को उपलब्ध कराते रहे थे. पचपन वर्ष की आयु में उन्होंने अपना रास्ता बदला और लेखन पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किया.
उन्होंने उर्दू साहित्य के साथ साथ, स्वास्थ्य से संबंधित पुस्तकें लिखना प्रारंभ किया. कोलेस्ट्रोल कम करें, रमज़ान और हमारी सेहत, डायबिटीज में शक्कर के साथ नमक का इस्तेमाल कम करें, शक्कर कम खाएं, खानें में हमारी सेहत है जैसी ढेरों पुस्तकें लिखने वाले डॉक्टर मुइज कहते हैं, "अगर हम अपने खाने-पीने पर ध्यान दें तो कई समस्याओं से निजात अपने-आप ही मिल जाएगी."
हैदराबाद में रहने वाले सैय्यद ख़्वाजा मुइजुद्दीन को अदबी दुनिया में आबिद मुइज और मेडिकल साइंस की दुनिया में उन्हें डॉक्टर आबिद मुइज के नाम से जाना जाता है. डॉक्टर साहब का काफ़ी समय देश से बाहर सेवाएं देते हुए बीता है. हैदराबाद वापस आने के बाद मौलाना आजाद ऊर्दू यूनिवर्सिटी (Centre for Promotion of Knowledge in Urdu as a consultant) में भी उन्होंने अपनी सेवाएं प्रदान की हैं.
उर्दू से जुनून की हद्द तक लगाव रखने वाले आबिद मुइज अब गहन अध्ययन और लेखन में ही अपना समय व्यतीत कर रहे हैं.
रिटायरमेंट एक भ्रम है
लोग आभास कराते हैं कि यह रिटायर है, यह बुज़ुर्ग है, यह खाली बैठा बेकार इंसान है, ऐसे ही लेबल लगा कर सक्रिय और नियोजित जीवन से दूरी बनाने को विवश कर दिया जाता है.
आबिद मुइज कहते हैं, "अगर नमाज़ की ही बात करें तो क्या किसी ख़ास आयु में नमाज़ न पढ़ने की इजाज़त है? बिलकुल नहीं, हां! कुछ छूट अवश्य मिलती है. जैसे खड़े हो कर नहीं पढ़ सकते तो बैठ कर पढ़िए, बैठ नहीं सकते तो लेटकर, इशारों से पढ़िए, लेकिन नमाज़ पढ़ते रहना है."
वह कहते हैं, "ठीक इसी तरह समय के साथ जब शरीर की क्षमता अनुसार उत्पादकता में कमी तो हो सकती है लेकिन पूर्ण विराम किसी प्रकार भी स्वीकार्य नहीं हो सकता."
वह आगे कहते हैं कि" जब छोटी आयु में ही किसी कारण रिटायर हो कर सक्रिय जीवन से अलग होना पड़ता है तब उस रिटायर्ड जीवन को क्या कहेंगे?" डाक्टर साहब रिटायरमेंट की कसौटी आयु को नहीं बल्कि शरीर की क्षमता और स्वास्थ्य को मानते हैं.रिटायरमेंट उनकी नज़र में एक शोशे से अधिक कुछ नहीं.
इन सरकारी कर्मचारियों की देखा-देखी सेवानिवृत्ति के लेबल का चलन बहुत आम हो गया है. जिसके पास पेंशन की सुविधा है वहां तक तो बात ठीक है लेकिन बिना किसी आय के स्त्रोत के जब लोग आराम करना चाहते हैं तब घर परिवार में आने वाली समस्याओं से हम सब भली भांति परिचित हैं." आराम कीजिए परन्तु किसी को कष्ट भी मत दीजिए.
रिटायर बूढ़ा या बुजुर्ग
बुज़ुर्ग और बूढ़े में अंतर पर आबिद मुइज का कहना है कि "बुजुर्गी" का अर्थ है कि आप अनुभवी हो गए हैं. आप दूसरों के साथ अपने अनुभव को बांट सकते हैं. लोगों को मशवरा दे सकते हैं. लेकिन इस के लिए आप को सक्रिय और व्यस्त जीवन जीते रहना होगा. वह आगे कहते हैं, "किसी में यह बुजुर्गी बहुत जल्दी आ जाती है तो किसी में तलाश करने से भी नहीं मिलती. मैं ने तो पचपन वर्ष के लोगों में भी बचपना देखा है , और बचपन में बुज़ुर्ग."
आबिद मुइज किसी भी समय, किसी भी आयु को रिटायर होने का सही समय नहीं मानते. वो बस चलते रहना जानते हैं. वह मानते हैं कि हमारे शरीर में परिवर्तन आना यह प्रकृति का नियम है. हमें उसके अनुरूप स्वयं को ढालना है और चलते रहना है. वह प्रशन करते हैं कि क्या हमने गरीब को कमज़ोर शरीर के साथ बोझ ढोते नहीं देखा है? वह चाहते हैं कि"या तो हर बूढ़े व्यक्ति को रिटायरमेंट मिले या फिर सभी काम करते रहें."
उठो सफ़र के नए सिलसिले तलाश करो
"मैं माहिरे तगजिया (पोषण विशेषज्ञ) तो हूं लेकिन माहिरे नफसियात (मनोविज्ञानी) नहीं हूं. इसलिए जब मैं ने अपने पेशे को स्टेथोस्कॉप की जगह कलम के द्वारा लोगों तक पहुंचाने का मन बनाया तो मैं लोगों को समझने में मार खा गया." वह बहुत दुखी मन से कहते हैं कि जिस जोश, जुनून और जज़्बे के साथ मैं अपने देश वापस आया था वो बहुत जल्दी ठंडा पड़ गया. यहां मुझे मायूसी हाथ लगी. आबिद मुइज का कहना है कि" लोगों ने सहयोग नहीं किया परन्तु मैं ने हार नहीं मानी है. अकेला ही चल रहा हूं.
लेकिन यह काम अकेले व्यक्ति का नहीं है. इस के लिए पूरी टीम की अवश्यकता है." उनका विश्वास है कि "अदब (साहित्य) ज़िंदगी का सलीका सिखाता है तो साइंस ज़िंदगी का तरीक़ा सिखाती है." अगर हमें मालूम होता कि कब, क्या और कितना खाना खाने की ज़रूरत है तो हम इतना न खाते जितना आज कल खा और सिर्फ़ खा रहे हैं."
अपने पेशे को अलविदा कह कर एक मक़सद ( उद्देश्य) के साथ एमबीबीएस, एमएससी डॉक्टर आबिद मुइज लोगों को आसान ज़बान में स्वास्थ्य सम्बंधित जानकारी देने में व्यस्त हैं. वह कहते हैं कि काम करते रहिए क्योंकि " हरकत में बरकत है."
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