एहसान फाजिली, श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर के दक्षिणी क्षेत्र के बिजबेहरा कस्बे में एक मुस्लिम परिवार पिछले 35 वर्षों से एक हिंदू मंदिर की देखभाल कर रहा है. यह मंदिर जया देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो कश्मीर घाटी के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है.
इस परिवार ने तब से मंदिर की देखभाल शुरू की, जब 1989-90 के दौर में कश्मीरी पंडितों का सामूहिक पलायन हुआ और आतंकवाद के कारण कई धार्मिक स्थल बिना देखभाल के रह गए थे. यह एक उदाहरण है कि कैसे कश्मीर में अलग-अलग समुदायों के बीच सहयोग और भाईचारे की मिसाल पेश की जा रही है.
मंदिर की देखभाल का जिम्मा
बिजबेहरा कस्बे के जया देवी मंदिर की देखभाल 1989 के बाद से स्थानीय मुस्लिम परिवार परवेज अहमद शेख और उनके परिवार द्वारा की जा रही है. जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ, तो मंदिर की देखभाल का जिम्मा इस मुस्लिम परिवार ने लिया.
परवेज अहमद शेख बताते हैं, "मुसलमान होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पड़ोसियों की संपत्ति की देखभाल करें." उन्होंने यह जिम्मेदारी अपने पिता गुलाम नबी शेख से प्राप्त की थी, जो अब सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
उनका कहना है कि आतंकवाद के शुरुआती वर्षों में यह काम चुनौतीपूर्ण था, लेकिन धीरे-धीरे स्थितियाँ बेहतर हुईं. उनके भाई बिलाल अहमद शेख ने भी इस कठिन समय में मदद की थी.
धार्मिक उत्सवों में श्रद्धालुओं की उपस्थिति
गणेश चतुर्थी, महाशिवरात्रि, नवरात्रि और अमरनाथ यात्रा जैसे त्योहारों के दौरान मंदिर में कश्मीरी पंडित और घाटी के बाहर से आए श्रद्धालु एकत्र होते हैं. परवेज शेख के अनुसार, "इन अवसरों पर 100 से 150 श्रद्धालु पूजा में भाग लेने आते हैं." कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद भी वे इन अवसरों पर मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आकर अपनी धार्मिक मान्यताओं को बनाए रखते हैं.
बिजबेहरा का धार्मिक महत्व
बिजबेहरा शहर को कश्मीरी हिंदुओं के बीच मिनी काशी के रूप में जाना जाता है, और यहां कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं. इनमें सबसे प्रसिद्ध जया देवी मंदिर के अलावा, हरिजी लाल मंदिर और विजेश्वर मंदिर जैसे अन्य धार्मिक स्थल भी हैं, जिनकी देखभाल स्थानीय मुस्लिम परिवारों द्वारा की जाती है.
जया देवी मंदिर की संरचना
जया देवी मंदिर का क्षेत्रफल छह कनाल से अधिक भूमि पर फैला हुआ है और पिछले साल इस मंदिर की जमीन को अतिक्रमण से बचाने के लिए बाड़ लगाकर संरक्षित किया गया. मंदिर के पास क्षेत्रीय धार्मिक संस्थाएं और ट्रस्ट भी काम कर रहे हैं ताकि इन धार्मिक स्थलों की मरम्मत और संरक्षा की जा सके.
धार्मिक समन्वय का प्रतीक
यह मुस्लिम परिवार 35 वर्षों से मंदिर की देखभाल करके कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम एकता और सामूहिकता की मिसाल प्रस्तुत कर रहा है. यह कश्मीर की एकता और भाईचारे को फिर से जागृत करने का संकेत है, जो लंबे समय से संघर्षों और चुनौतियों से जूझता रहा है.
नादिमर्ग मंदिर और दक्षिण कश्मीर में शांति की प्रतीकता
दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के नादिमर्ग गांव में स्थित अर्दे नरेश्वर मंदिर को 20 साल बाद पुनः श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था. यह मंदिर 2003 में आतंकवादी हमले के बाद बंद हो गया था, जिसमें 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी.
लेकिन 5 अक्टूबर 2023 को इस मंदिर को फिर से खोला गया, और मंदिर के भीतर मूर्ति स्थापना पूजा आयोजित की गई. यह घटना कश्मीर में धार्मिक सहिष्णुता और शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी.
संस्कृतिक संरक्षण के प्रयास
कुलगाम के डिप्टी कमिश्नर अतहर आमिर खान ने नादिमर्ग में अर्दे नरेश्वर मंदिर के उद्घाटन के दौरान श्रद्धालुओं के लिए प्रशासनिक सुविधाओं की समीक्षा की और प्रशासन से यह सुनिश्चित करने का वचन लिया कि धार्मिक स्थल और सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण जारी रखा जाएगा.
बिजबेहरा और नादिमर्ग के उदाहरण कश्मीर में धर्मनिरपेक्षता और सामूहिकता के जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. मुस्लिम समुदाय का हिंदू मंदिर की देखभाल करना कश्मीर की सामाजिक समरसता का प्रतीक बन गया है. इस प्रकार, यह कहानी कश्मीर के सामाजिक ताने-बाने और धार्मिक एकता को उजागर करती है, जो वर्षों से संघर्षों के बावजूद जीवित है.