पटना के मेयर रहे अफज़ल इमाम को आज भी याद आती है बचपन में गंगा की सैर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 26-05-2024
Ganga walk and childhood memories of former Patna mayor Afzal Imam
Ganga walk and childhood memories of former Patna mayor Afzal Imam

 

सेराज अनवरपटना

बचपन अनमोल होता है. इस क़दर यादों को समेटे कि इंसान भाव विभोर हो जाता है.ख़ास कर गर्मी के दिनों में नानी के घर जाना. इमली के पेड़ पर चढ़ना,गंगा में नहाना,तपती दोपहरी में दोस्तों के साथ ऊधम मचाना यादगार लम्हा होता है.बिहार की राजधानी पटना में इस वक़्त ज़बरदस्त गर्मी पड़ रही है. 
 
बचपन में गर्मी की यादों में अफजल इमाम खो जाते हैं. वह भी क्या दिन थे. गर्मी की छुट्टी मानो नेमत थी. गंगा में छलांग लगाना, क्रिकेट खेलना,इमली तोड़ना तब गर्मी बिताने और एंजॉय का साधन यही था. 
 
अफज़ल इमाम को पटना के तीन ओवनबार लगातार मेयर रहने का फ़ख़्र हासिल है.पटना के दूसरे मुस्लिम मेयर हैं. 1967 में एहतेशामुल हक़ पहले मेयर बने थे. लम्बे अर्से के बाद अफज़ल इमाम ने 2010,2012 और 2015 में निरंतर मेयर पद पर विराजमान हो कर सभी रिकार्ड तोड़ दिये.पटना के पूर्व मेयर अफज़ल किशनगंज के नामी इंसान स्कूल के प्रोडक्ट रहे हैं. जिसका थीम ही इंसानियत रहा है.
 
 
पहले गंगा ऐसी नहीं थी
 
अफज़ल इमाम पटना के मशहूर मुस्लिम मुहल्ला आलमगंज के निवासी हैं. उनका आवास गंगा किनारे है.गंगा नदी से उनका गहरा लगाव रहा है. बचपन इसके साहिल पर गुज़रा है. अफज़ल इमाम और गंगा में ख़ूब धमाचौकड़ी होती रही है.आवाज़ द वायस से बातचीत करते हुए अफज़ल इमाम कहते हैं कि पहले गंगा ऐसी नहीं थी, इतनी मैली. 
 
गंगा साफ-शफ़ाफ और चमकदार थी. गंगा में जहाज़ चलता था. माहौल भी ऐसा नहीं था. हिन्दू मुस्लिम की फीलिंग नहीं थी. मुहल्ला में एक कोकिल महतो चाचा हुआ करते थे. अपने चाचा जैसा.बच्चों को बेहद प्यार करते थे. बीस-पचीस मुस्लिम लड़कों को दालमोट वग़ैरह अपने पैसा से दिलाते थे. हम सब बच्चे ख़ुश हो जाया करते थे. कोकिल चाचा के पोता हमारे साथी थे. साथ में खेलते थे.
 
तब ईद और होली एक साथ मनती थी.अफज़ल कहते हें कि नब्बे के दशक में ऐसा कुछ हुआ कि लोग सिमट कर रहने लगे.मेरे घर के सामने बच्ची गोप का घर है. आलमगंज माइनोरिटी का इतना बड़ा मुहल्ला है लेकिन वह आज भी इसी मुहल्ला में रहती हैं.आलमगंज में हिन्दू-मुस्लिम बहुत मुहब्बत से रहते थे. आज जैसी फ़ीलिंग नहीं थी. कोकिल चाचा का पोता हो या चाची बच्ची गोप का बेटा साथ गंगा में तैरते, दूर तक निकल जाते.गार्जियन को भी तब चिन्ता नहीं रहती थी.
 
 
हमलोग घर में रहते नहीं थे
 
अफज़ल इमाम कहते हैं कि इंसान स्कूल जाने से पहले की बात है.तेज़ धूप रहता था. एसी,कूलर का कन्सेप्ट नहीं था. टीवी वैगरह भी नहीं होता था.खेलने-कूदने का शौक़ था,घर में रहते नहीं थे.नमाज़ पढ़ते थे और गंगा में कूद जाते थे. गर्मी में एंजॉय गंगा में ही होता था. 99% दोस्तों को तैरना आता था. तैरते हुए बिचोबीच पहुंच जाते थे. बड़ा सा ट्यूब रखते थे साथ में.उस टाइम तीन-चार घंटा गंगा में ही गुजरता था.
 
वहां से निकलते तो शीश महल मदरसा के पास इमली का पेड़ हुआ करता था.पेड़ के नीचे क़ब्रिस्तान था,वहीं बैठे रहते. वहीं पर कथक का पेड़ था.बेल जैसा.बेल से भी मज़बूत. चबाने से खट्टा टाइप का होता था. इमली और कथक का ख़ूब मज़े लेते.नानी घर फुलवारी शरीफ़ में था, हमारी पैदाइश वहीं की है. दादी घर गया में था.
 
दादा-दादी को नहीं देखा.नानी घर फुलवारी शरीफ़ ख़ानक़ाह में बारावाफात  के समय बड़ा मेला लगता था.मेला में ख़ूब मज़ा करते. नानी का घर मिट्टी का था मगर था बहुत बड़ा.पांच-छह कट्ठा में था. आज की तरह गर्मी की छुट्टी में बाहर घूमने का कॉन्सेप्ट था नहीं. नानी घर के अलावा रिश्तेदार के घर गर्मियों में जाते थे.बड़ी- बड़ी बाल्टी में चौराहा से पानी भर कर लाते थे.
 
 
ख़ुद हैंडपम्प चलाते थे.ख़ूब चलाते तब पानी गिरता.पानी की बहुत ज़रूरत होती थी. बचपन में आज़ान देने का भी शौक़ था. आवाज़ अच्छी थी,लोग मुझे देखते तो आगे बढ़ा देते.अब्बा मोहम्मद शहाब उद्दीन पुलिस में थे, अम्मा अख़्तरी ख़ातून दीनदार महिला थीं.
 
इंसान स्कूल में दाख़िला
 
अफज़ल इमाम क़हत हैं कि बचपन में हम थोड़े सख़्त थे.वालिद साहब इसी कारण पटना से किशनगंज स्कूल में डाल दिया. इंसान स्कूल बिहार ही नहीं,असम,बंगाल में भी मशहूर था. दूर-दूर से बच्चे तालीम हासिल करने किशनगंज आते. इंसान स्कूल जैसा नाम है व्यावहार में भी वैसा ही था.सरकारी से भी बड़ाय स्कूल था. स्टैनडर्ड बहुत हाई था. इंसान को इंसान बनाने की शिक्षा मिलती थी वहां.स्कूल का तराना ही इंसानियत पर आधारित है.
 
इंसान बनेंगे हम इंसान बनायेंगे
जीने के तरीक़े अब सीखेंगे, सिखायेंगे
मुंह मोड़ न ख़िदमत से अपनो की, न ग़ैरों की 
जो हमको पुकारेगा हम दौड़ कर जायेंगे
 
विधायक अख़्तरुल ईमान से लेकर सांसद डॉ.मोहम्मद जावेद तक ने इंसान स्कूल से ही पढ़ाई की है. इंसान स्कूल का स्टैंडर्ड हाई था. सरकारी स्कूल भी उसके सामने फेल था. टीचर को भाई कहा जाता था. यहां तक की स्कूल के संस्थापक मरहूम सैयद अहसन को भी सैयद भाई से सम्बोधित किया करते थे. आज इंसान स्कूल के छात्र उच्च पदों पर विराजमान हैं. नजमुल होदा चेन्नई में डीजी रैंक के पदाधिकारी हैं. नदीम ज़फर जिलानी इंग्लैंड में शाही परिवार से जुड़े रहे. अभी क़तर के शाही परिवार में पदस्थापित हें.
 
इम्तियाज़ पटना एसटीएफ में डीएसपी हैं.ख़ालिद रांची  में लेक्चरर हैं.अफज़ल इमाम पटना के मेयर बन गये. इंसान स्कूल का नाम बहुत दूर-दराज़ तक था.बिहार के हर ज़िले से लड़के आते ही थे. इसके अलावा कोलकाता,असम,दार्जिलिंग आदि से भी लड़के यहां पढ़ाई करने आते. स्कूल सभी को इंसान बनाता.ख़ास बात यह थी.
 
प्रेरणास्रोत शख़्सियत
 
अफज़ल इमाम कहते हैं कि इंसान स्कूल के संस्थापक सैयद अहसन ने मुझे प्रेरित किया. क़ाबिल आदमी थे. पद्मश्री से नवाज़े गये.राष्ट्रपति पुरुष्कार भी मिला. पागल को भी ठीक कर देते थे. इंसान स्कूल के तराना में ही ख़िदमत को मरकजियत दी गयी. आज की तारीख़ में मुझे कोई ज़्यादा प्रेरित नहीं करता. अल्लाह का करम है मुझ से लोग प्रेरित होते हैं.बहुत बड़ा आदमी बनने का शौक़ नहीं रहा.
 
हलाल तरीक़े से रिज़्क़ कमायें यही अल्लाह से दुआ है.बुजुर्गों की सोहबत में रहे हैं,बहुत सारे आलिम से भी क़ुर्बत रही है. अब बचपन वाली बात तो है नहीं.लोगों के सुख-दुःख में साथ रहें,समाज के लिए काम करें,इंसाफ करें यही शौक़ रह गया है. कमज़ोर लोगों के साथ खड़े रहना. तालीम के क्षेत्र कुछ काम होता ,कोशिश में हैं पूरा नहीं हो रहा.कुछ लोग मिले तो काम शुरू हो. समाज सेवा का शौक़ बचपन से रहा सियासत में बाद में आये. अब्बा नई दुनिया उर्दू हफ्तावार अख़बार लेते थे.
 
बचपन में नई दुनिया हम भी पढ़ा करते.एक दिन हाजी मस्तान के इंटरव्यू पर नज़र पड़ा.हाजी मस्तान को लेटर लिख दिया. उन्होंने दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ(डीएमएसएम)नाम से पार्टी बनायी थी. जवाब भी आ गया. जवाब उनके पीए मोहम्मद ख़ालिद ने लिखा था. उस वक़्त मैट्रिक भी नहीं किया था. फिर सियासत में दिलचस्पी बढ़ती गयी.
 
 
1991 में आइके गुजराल पटना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे बाद में प्रधानमंत्री भी बने. उस चुनाव से सियासत में हमारी दिलचस्पी बढ़ी.2002 में पटना नगर निगम का चुनाव हुआ और हम काउंसिलर निर्वाचित हो गये. तब से अभी तक काउंसिलर हमहीं हैं. अभी मेरी पत्नी महजबीं काउंसिलर हैं. तीन बार हम और दो बार से पत्नी काउंसिलर हैं.2010 में पहली बार मेयर निर्वाचित हुए.
 
हालांकि,72-75 सदस्यीय निगम में मुस्लिम काउंसिलर की संख्या कभी 6 से अधिक नहीं रही. अफज़ल कहते हैं कि हिन्दू भाइयों के सहयोग से हम तीन बार मेयर बने.पटना के दूसरे मुस्लिम मेयर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. 1967 में एहतेशामुल हक़ पहले मुस्लिम मेयर चुने गये थे.अफज़ल इमाम के दो बेटे हारिस इमाम और हामिज़ इमाम हैं. हारिस डीयू में पॉलिटिकल साइंस के छात्र हैं और हामिज़ जिंदल ग्लोबल में अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहे हैं.
 
अफज़ल इमाम कहते हैं बचपन कहीं पीछे छूट गया है. अब अपने काम में मशगूल हैं.घर की ज़िम्मेवारी है.बच्चों की ज़िम्मेदारी है. पत्नी महजबीं सपोर्टिंग हैं यह सुकून की बात है.