कपड़ा एक्सपोर्ट में लाखों के नुकसान के बाद, अब असरफ अली बन चुके हैं लैदर कला हस्तशिल्प में बडे कारोबारी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 24-02-2024
After loss of lakhs in textile export, Asraf Ali has now become a big businessman in leather art handicrafts.
After loss of lakhs in textile export, Asraf Ali has now become a big businessman in leather art handicrafts.

 

दयाराम वशिष्ठ

हर व्यक्ति चाहता है कि वो जीवन में सफलता हासिल करे. कभी-कभी लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी जी-जान लगा देते हैं फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती है. लक्ष्य प्राप्ति के लिए मेहनत के साथ-साथ सही दिशा और हौसले की भी जरूरत होती है. जीवन में हार जीत होती रहती है लेकिन सफलता की सीढ़ियां वही लोग चढ़ पाते हैं जो असफल होने के बाद भी निराश नहीं होते हैं.

यह साबित कर दिया है हस्तशिल्पी असरफ अली ने. जिन्होंने न केवल कपडा एक्सपोर्ट बंद होने से लाखों का नुकसान झेला, अपितु फैक्ट्री तक बंद हो गई, बावजूद इसके हिम्मत नहीं हारी. आखिरकार आज कडी़ मेहतन व नेक इरादे से लैदर के बेहतर डिजाइन में नए आयटम बाजार में लाकर ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने से पीछे नहीं रहते.

असरफ अली का लक्ष्य है कि वह अगले एक साल में लैदर आयटम के ऐसे डिजाइन तैयार करने जा रहे हैं, जो उनके आयटम हाथों हाथ बिकने तय है.

बचपन में करते थे खेती बाडी, आज बन गए हैं बडे कारोबारी

अलीगढ के खैर के गांव बरखा में जन्मे असरफ अली के सफलता की बडी कहानी है. बचपन में अपने पिता ईस्माइल खान व भाइयों के साथ मिलकर गेहूं, बाजरा व गन्ना की खूब खेती की. समय ने करवट बदली और इनके बडे भाई उमर खान वर्ष 1984 में दिल्ली में आकर रोजगार की तलाश में सिलाई कढाई सीखने लगे. कुछ दिनों बाद उनका भाई यामीन खान भी दिल्ली पहुंच गया. वर्ष 1991 में तीसरा भाई मुस्तकीम व असरफ अली भी दिल्ली में जाकर रहने लगे.

जहां चारों भाइयों ने मिलकर एक मिशाल कायम करते हुए दिल्ली के खानपुर में फैक्ट्री स्थापित कर ली. जिसमें 50 मशीनें सिलाई कढाई की लगाकर एक्सपोर्ट का काम शुरू कर दिया. वर्ष 1998 तक एक्सपोर्ट का काम बहुत अच्छा चला. लेकिन इसके बाद एक्सपोर्ट का कारोबार खत्म होता चला गया. सिलाई कढाई का धंधा धीमा पड जाने से परिवार के लोगों को चिंता सताने लगी.

एक्सपोर्ट कारोबार बंद होने से मशीनें तक बेचनी पडी

असरफ अली ने अपने पुराने दिनों की याद करते हुए बताया कि एक्सपोर्ट बंद होने से फैक्ट्री में कारीगरों को पैसे देने के लाले पड़ गए. आखिरकार उन्हें फैक्ट्री बंद करके मशीनें तक बेचनी पडी़. चारों भाइयों ने एक एक मशीन अपने पास रखी और बाकी सभी बेचनी पड़ गई. इसके बाद उन्होंने जूट का काम शुरू किया, लेकिन उसमें भी कामयाबी नहीं मिल सकी.   

 

फैक्ट्री मालिक से बने सप्लायर, फिर भी हौंसला रहा बरकार

असरफ अली ने बताया कि संगम बिहार में उनके पड़ोसी के यहां लैदर की जैकेट बनती थी. फैक्ट्री बंद होने के बाद उन्होंने अपने पड़ोसी से लैदर की जैकेट लेकर बाजार में बेची, तब जाकर उनका गुजारा हुआ. लेकिन उन्होंने हौंसला नहीं खोया. विपरीथ परिस्थितियों में भी सभी भाई उसका मुकाबला करते रहे. बाद में उन्होंने अपने पिता, माता व परिवार के अन्य लोगों को भी दिल्ली बुला लिया. कुछ दिन तक लैदर की जैकेट बेचने के बाद उन्होंने भी लैदर के आयटम बनाने शुरू कर दिए.

महिलाओं के लिए लटकाने वाले साइड बैग से सफर किया शुरू

सबसे पहले महिलाओं के साइड में लटकाने वाले लैदर के बैग बनाए. दिल्ली हाट में लगाए गए स्टाल में पहले दिन अच्छी सेल हुई. इसके बाद उनका यह कारोबार निरंतर बढता चला गया. इसके बाद एक एक करके लैदर के अलग अलग डिजाइनों में 70 आयटम बनाने शुरू कर दिए. इनमें लेडीज़ बैग, सिलिंग बैग, लैपटॉप फाइल बैग, लगेज ट्रॉली, बेल्ट समेत मनमोहक डिजाइनों में लैदर के करीब 70 आयटम बनाए गए.

इसके चलते अब साल में 60 लाख रूपए से अधिक तक टर्न ओवर का कारोबार पहुंच चुका है. लैदर के बैग पर की गई कलाकारी देखने लायक है. पर्यटक जब उनकी दुकान के सामने से गुजरते हैं तो उन्हें लैदर के विभिन्न प्रकार के बैग अपनी ओर जरूर आकर्षित करते हैं. सूरजकुंड मेला हो या फिर अन्य कोई भी मेला, वहां इनकी स्टाल् पर नए नए डिजाइनों में तैयार लैदर के बैग पर्यटकों के खूब मन भाते हैं.

यहां तक कि ये भाई मिलकर ऐसा डिजाइन तैयार करते हैं कि वे ग्राहक खुद पर खुद आकर्षित होते हुए सामान खरीदने को मजबूर हो जाते हैं. खासकर महिलाओं के आयटम तैयार कर इन्होंने अपने कारोबार को खूब बढाया. बाद में चारों भाई उमर खान, यामीन खान, मुस्तकीम, असरफ अली ने अपना अलग अलग कारोबार शुरू कर दिया. बडे भाई यामीन खान अब हैंडीक्राफ्ट व हैंडीलूम कारोबार से जुडे हुए हैं. जबकि अन्य भाई मोती बनाने का कारोबार कर रहे हैं.

 

रोजगार भी करा रहे हैं मुहैया

लैदर कला हस्तशिल्प में महारथ हासिल करने के बाद अब असरफ अली दूसरों को रोजगार देने लायक बन गए हैं. फिलहाल अब इनके साथ लगभग एक दर्जन लोग इस रोजगार से जुड़े हुए हैं. आने वाले दिनों में जिस तरह से इनका कारोबार फल फूल रहा है, उससे काफी लोगों को रोजगार मिलने की संभावना होती जा रही है.

असरफ अली कहते हैं कि उसक लक्ष्य है कि अगले एक वर्ष में वह बाजार में बडे़ बडे़ शोरूम में मिलने वाले लैदर के डिजाइनदार आयटम का मुकाबला करते हुए नए नए डिजाइन के आयटम तैयार करेंगे. उन्होंने बताया कि वे दिल्ली हाट में वर्ष 1998 से स्टाल लगाते आ रहे हैं. पिछले सात सालों से निरंतर सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले में अपनी स्टॉल लगाते आ रहे हैं. यहां पर उनका रिटेल का व्यापार ज्यादा हो रहा है.

व्यापार के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म प्रणाली भी मिल रही है. सूरजकुंड शिल्प मेले में व्यापार को बढ़ावा मिलता है. मेले में उन्हें खूब ग्राहक मिल रहे हैं और दुकान की प्रसिद्धि भी बढ़ती जा रही है. उनका बेटा सैफ भी इस कारोबार को आगे बढाने की दिशा में लगातर काम कर रहे हैं. उनके द्वारा बनाए गए वॉयलेट 250 रुपए का तथा लैदर बैग मात्र 1200 रुपए से शुरू होकर 8 हजार रुपए तक बेचे जा रहे हैं.