झारखंड का एक गांव जहां बस्ती है हिंदुस्तान की आत्मा

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 02-01-2024
A village in Jharkhand where the soul of India resides
A village in Jharkhand where the soul of India resides

 

सेराज अनवर / पटना

संभवतः यही हिंदुस्तान है . हिंदुस्तान की रूह अगर कहीं बस्ती है, तो उस जगह का नाम मैक्लुस्कीगंज है. हिंदू, मुसलिम, सिख और ईसाइयों का पवित्र स्थान विरले ही मिलता है, लेकिन यहां एक ही परिसर में मंदिर, मजार, चर्च और गुरुदारा स्थापित है. ये अंग्रेजों के जमाने से हैं और इनमें अभी भी कोई हेरफेर या बदलाव नहीं किया गया है.

झारखंड का दुलमी ऐसा ही गांव है यानी सर्वधर्म समभाव का जीता-जागता प्रतीक. यह गांव राजधानी रांची से 60 किलोमीटर दूर मैक्लुस्कीगंज में है. यहां का नजारा देखकर लोग नफरत करना भूल जायें. कोई यहां मत्था टेकता है, तो कोई फातिहा पढ़ता है.

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मजेदार बात यह है कि इस ऐतिहासिक स्थल की देखभाल करनेवाला भी कोई नहीं है. गांव का ही श्रवण यादव खुद इन सभी धर्मस्थलों की साफ-सफाई और पूजा का काम संभालते हैं. इस ख़ूबसूरत नजारा को देखने के लिए लोग झारखंड, बिहार, बंगाल से यहां आते हैं. सभी धर्मों के साये तले लोगों को सुकून पहूंचता है. देश में शायद यह इकलौती जगह है, जहां सभी धर्मस्थल मौजूद हैं और किसी तरह का कोई विवाद नहीं है. भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति का दर्शन करना चाहें, तो रांची-मैक्लुस्कीगंज रोड पर दुल्ली में स्थित सर्वधर्म स्थल पर जा सकते हैं. यहां एक ही परिसर में मंदिर, मजार, चर्च का क्रूज और गुरुदारा है. चारों धर्मों के लोग बड़ी संख्या में यहां आकर अपनी मन्नते मांगते हैं और सिर झुकाते हैं.

पहले जानिए मैक्लुस्कीगंज के बारे में

मैक्लुस्कीगंज ‘मिनी लंदन’ से मशहूर है. इस कस्बा को कभी एंगलो इंडियन कम्युनिटी ने बसाया था. यहां बड़ी संख्या में एंगलो इंडियन रहा करते थे. जिनकी आबादी समय के साथ साथ घटती चली गई. अब भी यहां एंगलो इंडियन लोगों को देखा जा सकता है. झारखंड के जंगलों के बीच इस सुंदर से कस्बे को बसाने का काम अर्नेस्ट टिमोथी मैक्लस्की नामक एक एंगलो इंडियन व्यापारी ने किया था. यहां की जमीन 1930 में रातु महाराज से लीज पर ली गई थी. आज का मिनी लंदन करीब 10,000 एकड़ की जमीन पर फैला है, जो अब खूबसूरत पर्यटन स्थल भी बन चुका है.

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ईसाइयों के रहने के लिए 300 से ज्यादा खूबसूरत बंगलो का निमार्ण करवाया गया था. यहां का समाज पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करता था. इसलिए उनका रहन-सहन और बात करने का ढंग पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित था. जिसके बाद में मैक्लुस्कीगंज को मिनी लंदन कहा जाने लगा. इसके बसने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. कहा जाता है कि जब टिमोथी मैक्लुस्की पहली बार आया, तो यहां की प्रकृति और आबो-हवा को देखकर मोहित हो गया. उसी वक्त उसने एंगलो इंडियन परिवारों को बसाने की जिद्द ठान ली .

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1930 की साइमन कमिशन की रिपोर्ट में एंगलो इंडियन का कोई जिक्र नहीं था. ब्रिटिश सरकार ने इसकी जिम्मेदारी से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया था. जसके कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था.

इसी बीच टिमोथी मैक्लुस्की ने तय किया कि भारत में ही अपने लोगों के लिए रहने कि व्यवस्था करेगा और फलस्वरूप मैकलुस्कीगंज का जन्म हुआ. जिसके बाद कई धनी एंगलो इंडियंस परिवारों ने यहां बंगले बनाना शुरू किया और देखते ही देखते यह खूबसूरत शहर में परिवर्तित हो गया.

मैक्लुस्की ने करीब 2 लाख एंगलो इंडियंस को यहां बसने का न्योता दिया था,जिसमें 300 परिवार आकर बसे थे. लेकिन धीरे-धीरे पलायन के बाद संख्या सिमट कर 20 पर आ गई.

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यहां से ज्यादातर परिवार अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के अन्य शहरों में जाकर बस गए हैं. खाली बंगले भूत बंगले जैसे लगने लगे, लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब बच्चे परिवार इस शहर को आबाद करने लगे. इसके बाद यहां कई स्कूल खोले गए.

सड़कें बनवाई गईं और जरूरत के सामान की दुकानें भी लगने लगीं. भले इस शहर की आबादी में गिरावट आयी है. मगर अब यह जगह खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में उभरी है. सैलानियों के लिए यहां के ज्यादातर बंगलों कों गेस्ट हाउस में तब्दील कर दिया गया. यहां पर मंदिर, मजार और गुरुद्वारे पर्यटकों के ध्यान आकर्षित करते हैं .

कौन थे मैकलुस्की?

मैकलुस्की के आइरिश पिता रेलवे में नौकरी करते थे. इस दौरान उन्हें बनारस के एक ब्राह्मण परिवार की लड़की से प्यार हो गया. समाज के विरोध के बावजूद इन दोनों ने शादी कर ली.

यही कारण था कि मैकलुस्की को बचपन से ही एंग्लो-इंडियन समुदाय से प्यार था. मैकलुस्की अपने समुदाय के लिए कुछ करना चाहते थे. इसलिए उसने सपनों के शहर मैकलुस्की गंज की नींव रखी. सन 1930 के दशक में अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की ने इस इलाके के रातू महाराज से 10 हजार एकड़ जमीन लीज पर लेकर सन 1933 में मैकलुस्कीगंज को बसाया था.

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इस दौरान कोलकाता व अन्य दूसरे महानगरों में रहने वाले कई धनी एंग्लो-इंडियन परिवारों ने मैकलुस्कीगंज में डेरा जमाया, जमीनें खरीदी और कई आकर्षक बंगले, चर्च, मंदिर, मस्जिद बनवाकर यहीं रहने लगे. झारखंड के घनघोर जंगलों और चामा, रामदागादो, केदल, दुली, कोनका, मायापुर, महुलिया, हेसाल और लपरा जैसे आदिवासी गांवों के बीच स्थित मैकलुस्कीगंज आज भी ब्रिटिश काल की याद दिलाता है.

इस कस्बे में आज भी ब्रिटिश काल के 365 खूबसूरत बंगले हैं. जिसमें आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एंग्लो-इंडियन लोग कितने आबाद थे. पश्चिमी संस्कृति के रंग-ढंग और अंग्रेजों की उपस्थिति के कारण ये कस्बा लंदन का अहसास कराता है. इसलिए लोग इस कस्बे को ‘मिनी लंदन’ भी कहने हैं.

मैकलुस्कीगंज में एक एंग्लो-इंडियन परिवार के पुराने बंगले को इंटर कॉलेज में बदल दिया गया है. आजादी के बाद जो एंग्लो-इंडियन परिवार यहां रह गए, वो फिर से मैकलुस्कीगंज को आबाद करने में जुट गए हैं.

आज यहां कई हाई प्रोफाइल स्कूल खुल गए हैं, जिनमें पढ़ने के लिए दूर-दूर से छात्र आते हैं. यहां पक्की सड़कें बनी हैं. जरूरत की हर चीज यहां आसानी से मिल जाती है. साथ ही मैकलुस्कीगंज (मिनी लंदन) में आज भी सांप्रदायिक सहिष्णुता का दिलकश नमूना देखने को मिलता है.

नूर हसन बाबा का मजार

सर्वधर्म स्थल पर नूर हसन बाबा के नाम की मजार है. उनकी मजार पर आज भी दूर-दराज से लोग चादर डाल मन्नतें मांगते हैं. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान नूर हसन बाबा दिल्ली से कोलकाता आए और फिर उनका रांची आगमन हुआ.

अंग्रेजों ने उन्हें रांची से दुल्ली ( मैक्लुस्कीगंज के पास) बुला लिया. यहीं रहकर नूर हसन बाबा अमल किया करते थे. उन्हें कव्वाली गाने का भी शौक था. उनका अंग्रेजों पर काफी असर था. नूर हसन बाबा कुछ दिनों के लिए कोलकाता गए, वहीं उनका इंतकाल हो गया. उनके बेटों ने उन्हें दुल्ली लाकर दफन किया.

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अंग्रेजों ने उनकी कब्र पर एक मजार बना दी. साथ ही उनकी इच्छा अनुसार एक राधा कृष्ण मंदिर एवं अर्ध निर्मित गुरुद्वारा बनवाया. इसी बीच भारत आजाद हुआ, जिससे अंग्रेज चर्च नहीं बनवा पाए.

उस स्थल पर लकड़ी का एक क्रूस लगा है. इस तरह अंग्रेजों ने यहां चार धर्म का सर्वधर्म स्थल बनवाया. सर्वधर्मस्थल के बगल में एक कुंड है. मान्यता है कि त्रेता युग में सीता ने इस कुंड में स्नान किया था. इसलिए इस कुंड का नाम सीता कुंड पड़ा. भगवान राम एवं लक्ष्मण की कई निशानियां थीं, जो अब मिट चुकी हैं.

सीताकुंड के ऊपरी भाग में अंग्रेजों का एक बड़ा बंगला आज भी जर्जर स्थिति में मौजूद है. जो अंग्रेज इस बंगले में रहते थे, उन्होंने ही सर्वधर्म स्थल का निर्माण करवाया था.

इस बंगले में 16 कमरे हैं, 2 कमरों में फायर प्लेस भी है .अब यह बंगला वीरान रहता है. नूरहसन बाबा की मजार पर प्रत्येक वर्ष 22 नवंबर को चादर चढ़ती है तथा उर्स लगता है. उस वक्त उनके खानदान के लोग कोलकाता से आते हैं.

रोजाना कई फरियादी अपनी फरियाद लेकर बाबा के मजार पर आते हैं और मन्नतें मांगते हैं. राधा-कृष्ण मंदिर में हर दिन कई श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना करते हैं. इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. क्रिसमस के समय ईसाई समुदाय के लोग यहां आकर क्रूस स्थल पर फूल चढ़ाते हैं तथा कैंडल जलाते हैं.

 

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