जावेद अख्तर /कोलकाता
सर सैयद अहमद हाई स्कूल, बंगाल का एक पिछड़ा क्षेत्र हावड़ा, शिक्षा का प्रकाश स्तंभ बनकर मुस्लिम बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल करने का प्रयास कर रहा है. मुख्य रूप से श्रमिक वर्ग वाले क्षेत्र में इस शैक्षिक शमा को जलाने का श्रेय कुछ राजनीतिक, सामाजिक और व्यावसायिक हस्तियों को जाता है जिन्होंने इसके लिए संघर्ष किया.
कई स्तरों पर सर सैयद अहमद खान के नाम पर इस स्कूल की स्थापना करने में सफलता मिली. इनमें मुहम्मद सलीम, शाह आलम, प्रिंस सलीम, शाहिद खान के नाम उल्लेखनीय हैं. इनके प्रयासों से यह क्षेत्र आज इस मुकाम पर है. यह स्कूल जो सैकड़ों बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की गारंटी देता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि स्कूल की आय का प्रमुख स्रोत विवाह घर के किराए से पूरा होता है, जो स्कूल का हिस्सा है.
सर सैयद अहमद हाई स्कूल में जहां आज 1700 बच्चे पढ़ते हैं. इसमें उर्दू मीडियम के साथ अंग्रेजी माध्यम में भी पढ़ाई होती है. उन्हें हायर सेकेंडरी की रैंक मिली हुई है. इस वर्ष से उच्च माध्यमिक शिक्षा प्रारंभ की जाएगी. स्कूल के शिक्षकों के साथ स्कूल प्रशासन से जुड़े लोग भी काफी सक्रिय हैं.
बच्चों की पढ़ाई पर भी उनकी नजर है. जिससे यहां बच्चों की शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार हुआ है. रिजल्ट से पता चलता है शिक्षा की गुणवत्ता इस स्कूल की बेहतर है.
विद्यालय की स्थापना कैसे हुई ?
यह 1995-96 की बात है. जिस जगह सर सैयद अहमद स्कूल स्थापित है, वहां एक खाली मैदान था. यह सरकारी जमीन है. वहां गाड़ियों की लोडिंग और अनलोडिंग होती थी. यह ड्रग तस्करों का भी अड्डा बन गया था. कहा जा सकता है कि यह बुराई का केंद्र बन गया था.
तब सरकार में सीपीएम थी. हावड़ा निगम पर भी सीपीएम का शासन था. जिस इलाके में ये मैदान था, वहां के पार्षद थे मोहम्मद सलीम. उस समय हावड़ा के तकियापारा इलाके में 8 प्राथमिक विद्यालय थे. चैथी कक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला मिलना मुश्किल था.
चूंकि इस क्षेत्र में केवल एक ही आधिकारिक उच्च माध्यमिक स्तर का विद्यालय था, इसलिए क्षेत्र के कुछ विश्वसनीय लोगों, विशेषकर उस समय के पार्षद मोहम्मद सलीम ने बच्चों के भविष्य को देखते हुए, यहां एक और उच्च माध्यमिक स्तर का विद्यालय स्थापित करने के बारे में सोचा.
इसके लिए क्षेत्र के लोगों को जमीन की जरूरत थी. इस दौरान उनकी नजर उस जमीन पर पड़ी, जहां आज सर सैयद अहमद हाई स्कूल है. उस समय परिवहन की लोडिंग और अनलोडिंग होती थी, जैसा कि ऊपर बताया गया है.
मोहम्मद सलीम ने अब्दुल अजीज, शमशाद खान, अब्दुल गफ्फार गांधी, प्रिंस सलीम, शाह आलम अंसारी जैसी क्षेत्र की कुछ महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ बैठक की. इसमें क्षेत्र में एक उच्च माध्यमिक विद्यालय की स्थापना के लिए आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया गया.
शाह आलम अंसारी और प्रिंस सलीम को संयोजक बनाया गया. हावड़ा तकिया पाड़ा के मार्टिन गोदाम में आगे की कार्रवाई के लिए एक बैठक बुलाई गई. बैठक के दूसरे दिन एक खाली मैदान में एक अस्थायी स्कूल स्थापित किया गया.
वहां कक्षाएं शुरू की गईं. सर सैयद अहमद हाई स्कूल को यहां तक पहुंचने के लिए काफी कठिन कदमों से गुजरना पड़ा. किसी समय झोपड़ी में स्कूल चलता था. यह स्कूल हावड़ा स्टेशन के पास बाइपास पर स्थित है. यहां खाली जमीन थी. इस जमीन पर स्कूल चलता था.
सरकारी बाधाओं का सामना करना पड़ा
चूंकि यह केएमडीए की जमीन थी. उस वक्त प्रशासन को लगा कि ये लोग जमीन पर कब्जा कर लेंगे. ऐसे में प्रशासन ने पुलिस की मदद से स्कूल को वहां से हटाने की कोशिश की. वह स्कूल प्रशासन से जुड़े लोगों को तरह-तरह से परेशान करने लगा.
लेकिन इन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी. संघर्ष जारी रखा. अंत में प्रशासन को आंदोलन के आगे झुकना पड़ा. संस्थापकों को इसके लिए पर्याप्त बलिदान देना पड़ा . उनमें से कई की मौत हो चुकी है. अभी भी कई लोग जीवित हैं और स्कूल के विकास में लगे हुए हैं. उनका इरादा यहां वोकेशनल ट्रेनिंग देने का भी है ताकि बच्चे पास होने के बाद कुछ हाथ का काम सीख सकें.
सर सैयद अहमद के नाम पर
जब वहां स्कूल का ढांचा खड़ा हो गया और बच्चे वहां पढ़ने लगे तो यह निर्णय लिया गया कि स्कूल का नाम क्या रखा जाए ? इसके लिए एक और बैठक हुई. इसमें किसी ने सुझाव दिया कि स्कूल का नाम मौलाना आजाद के नाम पर रखा जाए क्योंकि वह भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे.
उन्होंने शिक्षा के लिए बहुत कुछ किया है. लेकिन मौलाना आजाद के नाम पर सहमति नहीं बनी. कुछ लोगों ने इसका नाम सर सैयद अहमद के नाम पर रखने का सुझाव दिया. इसे उचित ठहराते हुए कहा कि सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए कड़ी मेहनत की थी.
उनके प्रयासों का परिणाम आज एएमयू है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम पर एक विश्वविद्यालय चल रहा है. इस प्रकार बहुमत से इस स्कूल का नाम सर सैयद अहमद हाई स्कूल रखने का निर्णय लिया गया.
स्कूल कैसे काम करता है ?
यह स्कूल जनता के पैसे से चलता है. उनके धन के प्रमुख स्रोतों में से एक वह धन है जो उन्हें स्कूल की शिक्षा और विकास के समर्थन के लिए शादियों के लिए स्कूल हॉल को किराए पर देने से मिलता है. एक तरह से यह फंड इस स्कूल के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह काम करता है.
स्कूल की गतिविधियों को देखकर कई सांसदों और विधायकों ने अपने फंड से इन्हें फंड मुहैया कराया. इसके अलावा कई सामाजिक हस्तियां भी हैं जो स्कूल के विकास और प्रचार-प्रसार में अपना हाथ बंटाती हैं. स्कूल की एक और छत का निर्माण अभी चल रहा है.
स्कूल आज इस स्थिति में पहुंच गया है कि किराए से आने वाला पैसा अभी भी आ रहा है. जिससे स्कूल अच्छी स्थिति में पहुंच गया है. स्कूल प्रशासन का कहना है कि इससे यह सीख सकते हैं कि कैसे एक निजी स्कूल को अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है.
इस तरह यह स्कूल दूसरों के लिए मिसाल बनता जा रहा है. पहले, और अब भी उपनगरों में, शादियां स्कूलों में होती हैं. इन स्कूलों के अधिकारी इसके लिए मामूली शुल्क लेते हैं. आमतौर पर ऐसे उर्दू माध्यम स्कूल सरकार द्वारा संचालित होते हैं.इससे यह भी सीख सकते हैं कि कैसे एक निजी स्कूल को वापस अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है.
इस तरह यह स्कूल दूसरों के लिए मिसाल बनता जा रहा है. पहले, और अब भी उपनगरों में, शादियां स्कूलों में होती हैं. स्कूल इसके लिए मामूली शुल्क लेते हैं. हावड़ा के इस सर सैयद अहमद हाई स्कूल का मामला बिल्कुल अलग है. यह स्कूल के साथ विवाह भवन का भी काम करता है. शादी के पूरे सीजन में हॉल बुक रहता है.
सर सैयद अहमद हाई स्कूल की स्थापना में किसका हाथ ?
उस समय इस आंदोलन में पूर्व पार्षद मोहम्मद सलीम, शाह आलम, शहजाद सलीम, शाहिद खान आदि के नाम उल्लेखनीय हैं. काफी संघर्ष के बाद यह निर्णय लिया गया कि स्कूल का कुछ हिस्सा पंपिंग स्टेशन के लिए छोड़ना होगा .
विचार-विमर्श के बाद निगम के प्रस्ताव को इस शर्त के साथ स्वीकार कर किया गया कि पंपिंग स्टेशन की छत पर बच्चों के खेलने के लिए एक पार्क होगा. इस क्षेत्र में बच्चों, बुजुर्गों या महिलाओं के लिए कोई पार्क नहीं है. जमीन का बंटवारा हो गया. एक हिस्सा सरकार के कब्जे में चला गया और बाकी हिस्सा सर सैयद अहमद हाई स्कूल कमेटी के पास. इस प्रकार वहां एक निजी विद्यालय की स्थापना हुई और उसे चलाया जाने लगा.
स्कूल कैसे बना
सर सैयद अहमद हाई स्कूल में जहां आज सत्रह सौ बच्चे पढ़ते हैं. इस स्कूल में उर्दू मीडियम के साथ-साथ अंग्रेजी मीडियम में भी पढ़ाई होती है. उन्हें हायर सेकेंडरी की रैंक मिली है. इस वर्ष से उच्च माध्यमिक शिक्षा प्रारंभ की जाएगी.
स्कूल के शिक्षकों के साथ स्कूल प्रशासन से जुड़े लोग भी काफी सक्रिय हैं. बच्चों की पढ़ाई पर भी उनकी नजर है. जिससे यहां बच्चों की शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार हुआ है. रिजल्ट से पता चलता है शिक्षा की गुणवत्ता इस बार इस स्कूल का रिजल्ट शत प्रतिशत रहा.
आज स्कूल कहाँ ?
धीरे-धीरे विद्यालय की प्रगति हुई.जनता के दान से विद्यालय भवन का निर्माण कराया गया. स्कूल का हॉल किराये पर दिया गया . इस प्रकार, स्कूल ने काफी तेजी से प्रगति की. इस तीन मंजिला इमारत को पहले माध्यमिक बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया गया और अब इसे उच्च माध्यमिक का दर्जा मिला है.
इससे विद्यालय समिति के लोगों के अलावा यहां पढ़ने वाले छात्र व शिक्षक काफी खुश हैं. स्कूल प्रशासन को कई बार स्थानीय राजनीति का भी शिकार होना पड़ा.उनका कहना है कि स्कूल को किराए पर क्यों दिया गया है. स्कूल को स्कूल ही रहने दें.
वे नहीं चाहते कि स्कूल का विकास हो. स्कूल को इसका सामना करना होगा. स्कूल आज जिस मुकाम पर पहुंचा है उसके पीछे भारी भरकम किराया ह.अगर स्कूल में शादियां नहीं होती तो आज यह इस मुकाम पर नहीं पहुंचा.
यहां करीब पंद्रह सौ बच्चे हैं. टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की कुल संख्या करीब 60 है. इनके वेतन पर साढ़े तीन लाख रुपये खर्च होते हैं. शुरुआत में सिर्फ उर्दू ही पढ़ाई जाती थी माध्यम लेकिन परिस्थिति के अनुसार इसे बदलना पड़ा. अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी में पढ़ाई करें. इस इरादे से इसे अंग्रेजी माध्यम बनाया गया. फीस भी मामूली है. साढ़े तीन सौ रुपये मासिक शुल्क लिया जाता है.
स्कूल प्रबंधन का इरादा यहां साइंस स्ट्रीम स्थापित करने का है.पश्चिम बंगाल में मिल्ली अलामिन मिशन सफलतापूर्वक चल रहा है. यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराई जाती है. बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र यहां सेप्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त कर रहे हैं.
यहां भी बोर्डिंग के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने की योजना है. बच्चों के लिए अलग-अलग ड्राइंग कक्षाएं हैं. इसी तरह, कराटे कक्षाएं और कंप्यूटर कक्षाएं भी अलग-अलग हैं. ऐसे में इन लोगों ने यहां व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करने का निर्णय लिया है. सर सैयद अहमद हाई स्कूल के उत्साही प्रिंस सलीम कहते हैं कि हम चाहते हैं कि यहां से सफल छात्र देश और कौम का नाम रोशन करें.
सरकार इसमें कैसे मदद कर रही है ?
पश्चिम बंगाल सरकार ने इसे आधिकारिक मंजूरी दे दी है. लेकिन उन्हें उस तरह के विशेषाधिकार नहीं मिलेंगे जो एक सरकारी स्कूल को मिलते हैं. अर्थात आधिकारिक पंजीकरण पर केवल परीक्षा आदि का आयोजन किया जा सकता है.
बाकी तो किताबों, स्कूल यूनिफॉर्म या मिड-डे मील का मामला है जो उन्हें नहीं मिल पाता. हाल में इसे हायर सेकेंडरी का दर्जा मिला है. स्कूल प्रबंधन भी चाहता है कि स्कूल इसी तरह चलता रहे. अगर स्कूल को सरकार ने अपने कब्जे में लिया तो प्रबंधन के हाथ काट दिए जाएंगे. वे स्कूल के बारे में कुछ नहीं कर पाएंगे, इसलिए उन्होंने आधिकारिक मंजूरी पर ज्यादा जोर नहीं दिया.