दस साल का सफ़र, उर्दू की शान: लौट आया जश्न-ए-रेख़्ता

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 30-10-2025
A ten-year journey, the pride of Urdu: Jashn-e-Rekhta is back!
A ten-year journey, the pride of Urdu: Jashn-e-Rekhta is back!

 

आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली

नई दिल्ली एक बार फिर उर्दू की महक से सराबोर होने को तैयार है.दिसंबर 5, 6और 7को बाँसेरा पार्क के खूबसूरत किनारों पर जश्न-ए-रेख़्ता 2025का आयोजन होने जा रहा है.यह सिर्फ़ एक साहित्यिक उत्सव नहीं, बल्कि उर्दू की रूह, उसकी नज़ाकत, शायरी, संगीत और तहज़ीब का एक सांस्कृतिक संगम है.इस साल का जश्न इसलिए भी खास है क्योंकि यह अपनी स्थापना के दसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है.

साल 2015 में जब रेख़्ता फ़ाउंडेशन ने इस सफ़र की शुरुआत की थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह एक वैश्विक आंदोलन का रूप ले लेगा.आज जश्न-ए-रेख़्ता दुनिया का सबसे बड़ा उर्दू भाषा, साहित्य और संस्कृति महोत्सव बन चुका है.फ़ाउंडेशन के संस्थापक संजीव सर्राफ के शब्दों में, “जश्न-ए-रेख़्ता जनता का त्योहार बन गया है,” और यह बिल्कुल सच है,क्योंकि यह महज़ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के दिलों में उर्दू की मोहब्बत की धड़कन है.

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इस वर्ष का आयोजन नई दिल्ली के बाँसेरा पार्क, गंगा विहार, सराय काले ख़ान में होगा.यमुना के किनारे बसा यह खूबसूरत स्थल कला और संस्कृति के इस भव्य आयोजन के लिए एक मुकम्मल मंज़र पेश करता है.तीन दिनों तक यहाँ पाँच मंचों—मेहफ़िल-ख़ाना, दयार-ए-इज़हार, सुख़न-ज़ार, बज़्म-ए-ख़्याल और ऐवान-ए-ज़ायक़ा—पर 300 से अधिक कलाकारों और 35से ज़्यादा सत्रों का आयोजन होगा.हर मंच उर्दू की किसी न किसी विधा को समर्पित होगा—शायरी, नज़्म, संगीत, कहानी और खानपान.

इस साल का कार्यक्रम बेहद आकर्षक है.“महकती खुशबू का सफ़र” में गुलज़ार साहब अपने शब्दों की जादूगरी से दर्शकों को मुग्ध करेंगे, जहाँ वे प्रेम, विरह और ज़िंदगी के गूढ़ पहलुओं पर बात करेंगे.“रंग-ए-मौसिक़ी” में सुखविंदर सिंह अपनी बुलंद आवाज़ में उर्दू संगीत की आत्मा को जीवंत करेंगे, जबकि सलीम-सुलेमान की जोड़ी “साज़ और समा” में संगीत की रूहानी परंपरा को नई दिशा देगी.

महान गीतकार साहिर लुधियानवी की याद में “दिल अभी भरा नहीं” नामक सत्र रखा गया है, जिसमें जावेद अख़्तर अपनी भावपूर्ण बातें साझा करेंगे, और शंकर महादेवन व प्रतिभा सिंह बघेल साहिर के अमर गीतों को अपनी आवाज़ देंगे.

इस साल का एक बड़ा आकर्षण होगा “द ऑर्केस्ट्रल क़व्वाली प्रोजेक्ट” का भारत में पहला प्रदर्शन, जहाँ रुशिल रंजन और अबी सम्पा की टीम पारंपरिक क़व्वाली को एक नए, आधुनिक रूप में पेश करेगी.इसके अलावा, हुमा ख़लील का संगीत-नाटक “रंग और नूर” उर्दू शायरी के सिनेमाई प्रभाव का जश्न मनाएगा.

लेकिन जश्न-ए-रेख़्ता सिर्फ़ मंच पर होने वाले सत्रों तक सीमित नहीं है.यह एक पूर्ण सांस्कृतिक अनुभव है.ऐवान-ए-ज़ायक़ा में आगंतुकों को देशभर के पारंपरिक पकवानों का स्वाद मिलेगा—लखनवी कबाब से लेकर हैदराबादी बिरयानी तक.रेख़्ता बुक्स बाज़ार में साहित्य प्रेमियों के लिए दुर्लभ किताबें और हस्ताक्षरित संकलन उपलब्ध होंगे, वहीं रेख़्ता बाज़ार में कारीगरी और दस्तकारी का प्रदर्शन होगा.रेख़्ता पवेलियन में इंटरैक्टिव सेशन्स और डिजिटल टूल्स के ज़रिए उर्दू सीखने का मौका भी मिलेगा.

हर शाम बाँसेरा पार्क रोशनी, संगीत और कविता के जादू में डूब जाएगा.यमुना किनारे आयोजित लाइट-एंड-साउंड शो इस उत्सव को एक स्वप्निल समापन देगा.तीनों दिन उर्दू की ख़ूबसूरती, सुरों की मिठास और दिलों की गहराई से लबरेज़ रहेंगे.

जश्न-ए-रेख़्ता दरअसल रेख़्ता फ़ाउंडेशन के सालभर के अथक प्रयासों का परिणाम है,किताबें प्रकाशित करना, उर्दू की पुरानी पांडुलिपियों को डिजिटाइज़ करना, Rekhta.org जैसे लोकप्रिय प्लेटफ़ॉर्म को चलाना, और नई पीढ़ी को इस भाषा से जोड़ने के लिए लर्निंग प्रोग्राम्स आयोजित करना.

दस सालों में जश्न-ए-रेख़्ता ने एक आंदोलन का रूप ले लिया है—एक ऐसा पुल जो पीढ़ियों, भाषाओं और संस्कृतियों को जोड़ता है.यह न सिर्फ़ उर्दू प्रेमियों के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो भाषा, कला और संगीत से प्रेम करता है.

अगर आप इस उत्सव का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो जश्न-ए-रेख़्ता की आधिकारिक वेबसाइट jashnerekhta.orgपर जाकर अपने टिकट बुक कर सकते हैं.पासेज़ एक दिन या तीनों दिन के लिए उपलब्ध हैं, और छात्रों के लिए विशेष छूट भी है। नज़दीकी मेट्रो स्टेशन सराय काले ख़ान-निज़ामुद्दीन है.

जश्न-ए-रेख़्ता 2025 सिर्फ़ एक महोत्सव नहीं, बल्कि एक अनुभव है—एक ऐसा अनुभव, जहाँ हर शेर एक कहानी सुनाता है, हर सुर एक एहसास जगाता है, और हर चेहरा उर्दू की मोहब्बत में मुस्कराता है.