सेबों की घाटी फिर महकी: कठिन मौसम के बाद उम्मीदों की बहार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-10-2025
Apple Valley blooms again: Hope springs after a difficult season
Apple Valley blooms again: Hope springs after a difficult season

 

एहसान फ़ाज़िली, बांदीपोरा

उत्तर कश्मीर के बांदीपोरा ज़िले में इन दिनों खासा रौनक है.खेतों और बाग़ों में किसानों की व्यस्तता चरम पर है.यह वही समय है जब कश्मीर की मशहूर 'स्वादिष्ट' किस्म के सेब पूरी तरह पक कर तैयार हो जाते हैं.सुर्ख लाल, सुगंधित और रसीले इन सेबों की डाली-डाली पर बहार हैऔर लोग पूरे जोश से इन्हें तोड़ने, छांटने, पैक करने और ट्रकों में भरने के काम में जुटे हुए हैं.

इन मेहनतकशों में शामिल हैं नज़ीर अहमद जैसे किसान, जो सरकारी नौकरी के साथ-साथ अपने पैतृक बाग की पूरी ज़िम्मेदारी संभालते हैं.उनका बाग बांदीपोरा में स्थित है, जहां अक्टूबर की ठंडी सुबहों के बीच ‘स्वादिष्ट’ सेबों की कटाई हो रही है.ये वही सेब हैं जो हर साल दिवाली से पहले दिल्ली समेत देशभर की बड़ी मंडियों में भेजे जाते हैं, खासतौर पर आज़ादपुर मंडी में इनकी भारी मांग रहती है.

नज़ीर अहमद बताते हैं कि उनके दादा ने लगभग छह दशक पहले यह बाग लगाया था, जिसे उनके पिता ने पांच एकड़ तक फैलाया.आज, नज़ीर अहमद खुद इस पुश्तैनी धरोहर को संभालते हैं.उन्हें अच्छी तरह याद है कि जब वह किशोर थे, तब से ही दशहरा और दिवाली के आसपास सेब भेजने की यह भाग-दौड़ हर साल होती रही है.लेकिन हर साल की तरह चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं.

इस बार की सबसे बड़ी चुनौती सितंबर की शुरुआत में आई जब तीन सप्ताह तक जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-44) भूस्खलन और खराब मौसम के चलते पूरी तरह से बंद रहा.इससे सेब से लदे हज़ारों ट्रक घाटी में ही फँस गए.कई किसानों को मजबूरी में ट्रकों से सड़ चुके सेब बाहर फेंकने पड़े। नज़दीकी मंडियों में भरे गोदामों और दुकानों में भी हालात कुछ ऐसे ही थे—जहाँ समय पर निकासी नहीं हो सकी, वहां फलों का सड़ना तय था.

श्रीनगर स्थित परिमपोरा फल मंडी के अध्यक्ष और कश्मीर घाटी फल उत्पादक सह डीलर्स यूनियन के प्रमुख बशीर अहमद ने बताया कि इस बार राजमार्ग पर हुए जाम और नाकेबंदी ने पूरे कश्मीर के फल व्यापार को गहरा नुकसान पहुँचाया है.उन्होंने बताया कि खासतौर पर "गाला" किस्म के सेब, जो उच्च घनत्व खेती के तहत उगाए जाते हैं, सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.

गाला सेब, जो कश्मीरी सेब उत्पादन का लगभग 10प्रतिशत है, लगभग पूरी तरह से नष्ट हो गया.यही नहीं, कश्मीरी नाशपाती, आड़ू और अन्य मौसमी फल भी इस प्राकृतिक आपदा के शिकार बने.किसानों को केवल फसल का नुकसान नहीं हुआ, बल्कि वे आर्थिक रूप से भी बुरी तरह प्रभावित हुए.व्यापारियों और खरीदारों ने जो एडवांस भुगतान किया था, वह भी डूबने की कगार पर है.

इसके बावजूद, घाटी के अधिकांश किसान अब भी आशावान हैं.बशीर अहमद के मुताबिक, इस साल सेब का कुल उत्पादन 25लाख मीट्रिक टन तक पहुँचने की संभावना है, जो अब तक का एक रिकॉर्ड आंकड़ा हो सकता है.कश्मीर में सेब की खेती करीब 1.72लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जो भारत के कुल सेब उत्पादन का 78प्रतिशत हिस्सा है.

अब जबकि अक्टूबर का महीना अपने चरम पर है, मौसम एक बार फिर सेबों के अनुकूल हो गया है.घाटी में अब ठंडी सुबहों के साथ साफ आसमान और दिन में हल्की धूप किसानों के लिए राहत लेकर आई है.बगीचों में श्रमिक फेरन और ऊनी कपड़ों में सेब तोड़ते हुए नज़र आते हैं.तोड़े गए सेबों को गुणवत्ता और आकार के आधार पर ग्रेड किया जा रहा है.इसके बाद ये लकड़ी या गत्ते के बक्सों में पैक होकर दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों के लिए रवाना किए जा रहे हैं.

स्थानीय मंडियों में रौनक लौट आई है और ट्रकों की आवाजाही अब सामान्य हो चुकी है.यह सुनिश्चित करने के लिए कि दिवाली के त्योहार से पहले ये सेब बाजारों में पहुंच सकें, किसान और व्यापारी दिन-रात मेहनत कर रहे हैं.दिल्ली की आज़ादपुर मंडी, एशिया की सबसे बड़ी फल और सब्जी मंडी, में कश्मीरी सेबों की सबसे ज्यादा मांग होती है और हर साल त्योहारी मौसम में इनका विशेष स्थान होता है.

इस पूरे परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि किसानों ने धीरे-धीरे उच्च घनत्व बागवानी की ओर रुख किया है.विशेषज्ञों का मानना है कि उच्च घनत्व (HD) खेती से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है.हालांकि, इस साल इस तकनीक से उगाए गए फलों को अधिक नुकसान झेलना पड़ा क्योंकि गाला जैसे सेब जल्दी पक जाते हैं और अधिक संवेदनशील होते हैं.

कुल मिलाकर, जहाँ एक ओर सितंबर में आई प्राकृतिक आपदाओं ने किसानों को तात्कालिक झटका दिया, वहीं अक्टूबर के आते-आते मौसम ने करवट ली और अब अधिकांश किसान और व्यापारी इस सीज़न की बची हुई फसल से उम्मीद लगाए बैठे हैं.राहत की बात यह है कि कुल उत्पादन का केवल 10प्रतिशत ही प्रभावित हुआ है और बाकी सेब अब बाज़ारों में अपनी सुगंध और स्वाद से ग्राहकों को लुभा रहे हैं.

कश्मीर का सेब, केवल एक फल नहीं, बल्कि यहाँ के लाखों लोगों की आजीविका और पहचान है.तमाम मुश्किलों के बावजूद, कश्मीरी किसान हर साल की तरह इस साल भी अपने स्वादिष्ट सेबों के साथ देश की थाली में मिठास घोलने को तैयार हैं.