मलिक असग़र हाशमी / नई दिल्ली
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और छठ महापर्व के उत्साह के बाद अब राजनीतिक दलों ने अपनी अंतिम बिसात बिछानी शुरू कर दी है. इन चुनावों का सबसे तीख़ा और दिलचस्प पहलू इस बार मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व बन गया है. इस विषय पर सबसे बड़ा सियासी दाँव भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अल्पसंख्यक मोर्चे ने चला है. यह मोर्चा, जिसकी मुख्य पार्टी (बीजेपी) ने स्वयं इस चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है, वह अब आक्रामक रूप से तथाकथित 'सेक्युलर पार्टियों' पर निशाना साध रहा है.
मोर्चे का आरोप है कि सेक्युलर दल 18% मुस्लिम आबादी को केवल 'दरी बिछाने' के लिए इस्तेमाल करते हैं और सत्ता की वास्तविक भागीदारी से उन्हें दूर रखते हैं.बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने बिहार के 12,000 से अधिक प्रभावशाली बूथों पर मुस्लिम मतदाताओं को इस विरोधाभास को समझाने की व्यापक रणनीति तैयार की है.
उनकी कोशिश है कि मुस्लिम वोट बैंक को यह अहसास कराया जाए कि दशकों तक जिन दलों को उन्होंने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर समर्थन दिया, उन्होंने ही अवसर आने पर मुस्लिम नेतृत्व को हाशिए पर धकेल दिया है.
इस अभियान के तहत, मोर्चा न सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास कार्यों को गिनाएगा, बल्कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जैसे दलों द्वारा अपने सबसे वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं को मुख्यमंत्री पद या उप मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं बनाने के मुद्दे को भी ज़ोरदार तरीक़े से उठाएगा.
बीजेपी की चुनावी रणनीति का यह विरोधाभासी पहलू पार्टी के भीतर के मतभेदों को भी उजागर करता है. जहाँ एक ओर अल्पसंख्यक मोर्चा मुसलमानों के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जैसे मुखर नेता खुलेआम यह बयान देते हैं कि "मुसलमान नमक हराम हैं और वह बीजेपी को वोट नहीं करते हैं."
यह बयान न सिर्फ़ अल्पसंख्यकों तक पहुँचने के मोर्चे के प्रयासों को कमज़ोर करता है, बल्कि यह पूरे NDA गठबंधन के लिए भी नुक़सानदेह है. गठबंधन में शामिल जनता दल (यूनाइटेड) और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं और मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा उन्हें वोट भी देता है. इसलिए गिरिराज सिंह का यह बयान सीधे तौर पर गठबंधन के साझा सामाजिक समीकरण को चोट पहुँचाता है.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीक़ी ने अपने ही दल के वरिष्ठ नेता के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए सार्वजनिक रूप से उनकी आलोचना की. सिद्दीक़ी ने कड़े शब्दों में कहा, "गिरिराज जी बूढ़े हो गए हैं. मोदी जी का मंत्र स्पष्ट है कि जो वोट देता है वह भी हमारा और जो नहीं देता वह भी हमारा. अगर कोई वोट नहीं देता तो उसे 'नमक हराम' कहना क़तई उचित नहीं है."
उन्होंने आगे कहा कि गिरिराज सिंह को अपनी गरिमा में रहकर बात करनी चाहिए और अगर वह 'सठिया गए हैं तो रिटायरमेंट ले लें'. यह टिप्पणी बीजेपी के भीतर एक धड़े की विचारधारा (सबका साथ, सबका विकास) और दूसरे धड़े की कठोर हिंदुत्ववादी लाइन के बीच चल रहे तनाव को रेखांकित करती है.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीक़ी ने अपनी पार्टी के 'ज़ीरो टिकट' की स्थिति का बचाव करते हुए स्पष्ट किया कि बीजेपी समुदाय के आधार पर सियासत नहीं करती. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी केवल चुनाव जीतने वाले संभावित उम्मीदवारों को तरजीह देती है, भले ही वे किसी भी समुदाय से हों. यह एक स्थापित राजनीतिक तर्क है, जिसका इस्तेमाल पार्टी दशकों से कर रही है ताकि अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व न देने के आरोप से बच सके.
सिद्दीक़ी ने यह भी तर्क दिया कि जब विकास और कल्याणकारी सुविधाओं की बात आती है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीधा सिद्धांत है कि सरकार किसी एक धर्म या जाति की नहीं है और विकास का लाभ सभी तक पहुँचाने की कोशिश की जाती है. उनके अनुसार, NDA सरकार में मुसलमानों को घर, आयुष्मान कार्ड और कानून का राज मिला है.ये ऐसी सुविधाएँ हैं जो धर्म से ऊपर उठकर हर नागरिक को मिली हैं.
चूँकि बीजेपी अकेले नहीं बल्कि NDA गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है, सिद्दीक़ी ने इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि गठबंधन ने मुसलमानों को व्यापक भागीदारी दी है. उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि बीजेपी के टिकट न देने के सवाल को अकेले नहीं देखा जाना चाहिए.
|
NDA घटक दल |
कुल सीटें |
मुस्लिम उम्मीदवार |
प्रतिनिधित्व (%) |
|---|---|---|---|
|
जेडी(यू) |
101 |
4 |
3.96% |
|
एलजेपी (आरवी) |
29 |
1 |
3.45% |
|
बीजेपी |
101 |
0 |
0.00% |
|
NDA कुल |
243 |
5 |
2.06% |
सिद्दीक़ी ने इन आँकड़ों का हवाला देते हुए दावा किया कि NDA ने कुल 243 सीटों में से 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रतिनिधित्व में भी पिछड़े वर्ग के मुसलमानों (पसमांदा) पर ज़्यादा ध्यान दिया गया है. जेडीयू द्वारा उतारे गए 4 मुस्लिम उम्मीदवारों में से 3 पिछड़े मुसलमान हैं, जो बीजेपी की पसमांदा राजनीति की नई रणनीति को दर्शाता है.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा की सबसे बड़ी रणनीति यह है कि वह तथाकथित 'धर्मनिरपेक्षता' की राजनीति करने वाले दलों को उनकी ही ज़मीन पर घेरे. सिद्दीक़ी ने सवाल उठाया कि जब बिहार में 18 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं, तो महागठबंधन ने न तो पर्याप्त मुस्लिम प्रत्याशी उतारे और न ही किसी वरिष्ठ मुस्लिम नेता को उप मुख्यमंत्री का चेहरा सामने लाया.
सिद्दीक़ी ने सीधे तौर पर महागठबंधन की जातिगत राजनीति पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि महागठबंधन ने एक ऐसे व्यक्ति को उप मुख्यमंत्री का चुनाव में चेहरा बनाकर उतारा है, जिसकी जाति के वोट चार प्रतिशत भी नहीं हैं.
वहीं, महागठबंधन यादवों (जो 14% हैं) को मुख्यमंत्री पद देगा. सिद्दीक़ी ने तंज कसते हुए पूछा, "अगर यादव (14%) को सीएम बनाया जाएगा और (एक अन्य जाति) जो सिर्फ़ 3% है, उन्हें डिप्टी सीएम बनाएगा, तो 18% मुसलमान कहाँ जाएगा, क्या सिर्फ़ दरी बिछाएगा?"
उन्होंने आरोप लगाया कि महागठबंधन सिर्फ मुसलमानों को सत्ता में आने के लिए इस्तेमाल करता है, उन्हें सत्ता में भागीदारी नहीं देता.यह मुद्दा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि बिहार में एक बड़ा वर्ग इंडिया गठबंधन से मुस्लिम उम्मीदवारों को कम उतारने और किसी मुस्लिम को उप मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाए जाने को लेकर खासी नाराज़गी दिखा रहा है.
पिछले चुनावों में लालू प्रसाद के करीबी और आरजेडी के सबसे सीनियर लीडर अब्दुल बारी सिद्दीक़ी को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने की माँग उठी थी. इस बार भी यही माँग उठ रही है, और ख़बरों के अनुसार, तेजस्वी को 'शहनशाह' बताए जाने से भी अब्दुल बारी सिद्दीक़ी कथित तौर पर नाराज़ चल रहे हैं.
जमाल सिद्दीक़ी ने अपनी जमीनी रणनीति को और विस्तार से समझाते हुए कहा कि बिहार में लगभग 12 हज़ार बूथ ऐसे हैं, जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ज़्यादा हैं. मोर्चे ने एक सघन अभियान चलाया है जिसका नाम है: 'एक बूथ, दस अल्पसंख्यक यूथ'. इस योजना के तहत, प्रत्येक प्रभावशाली बूथ पर दस अल्पसंख्यक युवाओं को तैनात किया गया है.
ये कार्यकर्ता घर-घर जाकर केंद्र और बिहार की NDA सरकार के लाभार्थियों से मिल रहे हैं. उनका मुख्य काम केवल मोदी और नीतीश के कामों को गिनाना नहीं है, बल्कि इंडिया गठबंधन द्वारा मुसलमानों की उपेक्षा के मुद्दे को भी उठाना है. सिद्दीक़ी ने दावा किया कि मुस्लिम समुदाय अब समझ गया है कि महागठबंधन ने उसे केवल इस्तेमाल किया है.
अंत में, बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि उनकी टीम बिहार में मुस्लिम समुदाय से संपर्क कर रही है और NDA के पक्ष में वोट देने की अपील कर रही है. उनका लक्ष्य है कि वे मुस्लिम मतदाताओं को यह समझा सकें कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उन्हें सत्ता की भागीदारी से लंबे समय तक वंचित रखा गया है.
जबकि NDA ने भले ही बीजेपी के बैनर तले टिकट न दिया हो, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से उन्हें सम्मान और सुरक्षा दी है और गठबंधन के दलों के ज़रिए उन्हें राजनीतिक भागीदारी भी सुनिश्चित की है.
इस तरह, बीजेपी एक ऐसे जटिल चुनावी समीकरण में प्रवेश कर रही है, जहाँ वह बिना मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, मुस्लिम वोटों की भागीदारी को लेकर दूसरों पर हमला बोल रही है। यह भारतीय राजनीति में एक नई और आक्रामक चुनावी रणनीति का संकेत है.यह विश्लेषण बताता है कि बिहार चुनाव में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का मुद्दा अब एक पहचान की लड़ाई से कहीं ज़्यादा भागीदारी और उपयोगिता की बहस बन गया है.