शूटर अदीबा अली बोलीं,दिव्यांग होने के बाद भी कभी हौंसला नहीं खोया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-12-2023
Adeeba Ali: A great example of courage in shooting
Adeeba Ali: A great example of courage in shooting

 

अमीना माजिद सिद्दीकी

दिल्ली के निजामुद्दीन बस्ती में रहने वाली 19 साल की अदीबा अली ने हिम्मत की एक नई मिसाल पैदा की है. विकलांग होने के बावजूद अदीबा अली ने मध्य प्रदेश राज्य शूटिंग अकादमी भोपाल द्वारा आयोजित 26वीं राष्ट्रीय शूटिंग चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में स्वर्ण और रजत पदक जीतकर हजारों लोगों को प्रेरणा दी है. आवाज-द वॉयस टीम ने की अदीबा अली से खास बातचीत की, प्रस्तुत हैं उसके कुछ खास हिस्से.

सवाल - राष्ट्रीय शूटिंग चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में जाने के लिए आपने कैसे सोचा  और कितने दिन इसकी तैयारी की?

जवाब - मुझे हमेशा से स्पोर्ट्स पसंद था, उस हादसे के बाद मैंने ढूँढना शुरू किया कि मेरे लिए क्या सबसे अच्छा है. काफी खोज के बाद मैं अपने कोच से मिली, जिनका नाम सुभाष राणा और रोहित सर है. फिर उन्होंने मुझे राह दिखाई कि पहले हम एक ट्रेक से शुरू करेंगे फिर जोनल, स्टेट और नैशनल जाएंगे. तो धीरे-धीरे तैयारी के बाद मैं नेशनल तक गई. और मुझे तैयारी करते हुए 10 महीने हो गए हैं.

सवाल - आपके साथ यह हादसा कैसे हुआ, जिसका आपने अभी जिक्र किया?

जवाब - 5 साल पहले बालकोनी से मेरा पैर फिसल गया था, मुझे चक्कर आ गए थे. पहले मुझे लगा कि मैं पीछे गिर रही हूँ पर नहीं, मैं आगे की तरफ गिरी थी. उसकी वजह से मेरी स्पाइन फ्रैक्चर हो गई थी और उस ही कारण मेरे पैर काम नहीं करते है.

सवाल - आपने इससे पहले और भी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है?

जवाब - मैं डिस्ट्रिक्ट लेवल, जोनल, पैरा जोनल, नॉर्थ जोन और पैरा नैशनल में भी हिस्सा ले चुकी हूं. यह मेरा 5वां मैच है.

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सवाल - आपको स्पोर्ट्स में जाने की प्रेरणा किससे मिली?

जवाब - मेरे पहले आइडल मेरे पिता हैं, वो हमेशा से स्पोर्ट्स को बढ़ावा देते रहे है और पापा को भी क्रिकेट का बहुत शौक है. तो पापा को इसकी अहमियत पता है कि स्पोर्ट्स खेलना कितना जरूरी है. जैसे पढ़ाई जरूरी है, वैसे ही स्पोर्ट्स भी जरूरी है और दूसरी मेरी आइडल है अवनी लेखरा, वो पहली महिला है, जिन्होंने शूटिंग और पैरा लिंपिक्स में गोल्ड मैडल जीता, वो मेरी लिए काफी बड़ी प्रेरणा हैं. अवनी एक राइफेल शूटर हैं.

सवाल - स्पोर्ट्स में आपके सफर की शुरुवात कैसे हुई, आपने कब सोचा कि आपको इस फील्ड में जाना चाहिए?

जवाब - मैं स्पोर्ट्स के साथ जुड़ना चाहती थी, तो मैंने ढूँढना शुरू किया. मैं पहले बास्केटबाल, फुटबॉल और भी बाकी स्पोर्ट्स में हिस्सा लेती थी. पर हादसे के बाद सब पीछे रह गया, तो मैंने ढूंढा के कौन सा सपोर्ट अब मैं खेल सकती हूँ, जो हो गया, वो हो गया. पर अब मुझे देखना था कि मैं क्या कर सकती हूँ. फिर मुझे पैरा गेम्स के बारे में पता चला कि जो विकलांग लोग होते है, वो भी अब खेल सकते हैं और इस खेल में वह काफी आगे बढ़े हैं. उससे मुझे पता चला कि विकलांग होने के बावजूद भी आप खेल सकते हैं. फिर मैंने देखा, तो मुझे शूटिंग के बारे में पता चला कि हां मैं इसके लिए बनी हूँ फिर मैंने खेलना शुरू किया. शुरू में इतना अच्छा नहीं हो पाता था. फिर समय के साथ अच्छा होता गया और खुद कि एक नई पहचान बनने लगी और अब शूटिंग मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है, मैं एक दिन प्रैक्टिस नहीं करती,तो लगता है कुछ खाली है.

सवाल - आपका आगे का क्या इरादा है?

जवाब - मेरे आगे का इरादा यही है कि मैं अच्छे से अच्छा करना चाहती हूं हर दिन. मैं बहुत मेहनत करना चाहती हूँ.

सवाल - जो लोग छोटी-छोटी बातों पर हार मान जाते हैं, उनको आप हमारे चैनल के माध्यम से क्या संदेश देना चाहेंगी?

जवाब - मैं यही कहना चाहूंगी कि आपको अपने ऊपर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि अगर आप खुद ही हार मानकर बैठ जाएंगे, तो बाकी लोग आपका साथ कैसे देंगे. अगर आपके अंदर यह होगा कि मेरे साथ जो भी हो, पर फिर भी मैं ये काम कर सकती हूँ, तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं. अपने ऊपर भरोसा रखना सबसे महत्वपूर्ण है.

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आवाज-द वॉयस टीम ने अदीबा अली की माता रेशमा अली से भी बात की और जानी उनके जीवन से जुड़ी बातेंः

रेशमा अली (अदीबा अली कि मां) - अदीबा हादसे के बाद बिस्तर पर लेटी रहती थी और हिम्मत हार गई थी. फिर उसके बाद उसने यह सोचा कि अपनी जिंदगी को  कैसे आगे बढ़ा सकती है और कैसे अच्छा कर सकती है. वह शुरुआत में डेढ़ साल तक बिस्तर पर थी, खाना-पानी सब बिस्तर पर था.

इसने धीरे-धीरे अपने आपको बदलना शुरू किया, पेंटिंग शुरू की. बिस्तर पर होने के बावजूद इसने पढ़ाई करी 10-12 व्हीलचेयर पर दी और अभी बी ए इंग्लिश कर रही है. उसके बाद इसने देखा कि और क्या कर सकती है, तो उसने अवनी लेखरा कि वीडियो देखी कि यह कर सकती है, तो मैं भी कर सकती हूँ.

इसने कभी पिस्टल हाथ में नहीं लेकर देखी थी. इसके कोच सुभाष राणा ने इस पर बहुत मेहनत करी. अदीबा 8 घंटे प्रैक्टिस करती है, जिंदगी में कुछ भी करने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत होती है और अदीबा ने वही किया और हम सबका नाम रौशन किया. आने वाले समय में मैं जगह-जगह कैम्प लगाऊंगी और लोगों को बताऊंगी कि आप विकलांग होने के बावजूद भी बहुत कुछ कर सकते हैं. हम लोगों को गाइड करेंगे कि यहां से एक नई जिंदगी की शुरुआत कैसे होती है.


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