आवाज द वाॅयस/ विजयवाड़ा
आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू (एएसआर) जिले के कूनावरम मंडल स्थित सुदूर आदिवासी गांव रामचंद्रपुरम की 19 वर्षीय धावक कुंजा राजिता ने दक्षिण कोरिया के गुमी में आयोजित 26 वीं एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत के लिए महिलाओं की 4×400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीतने के बाद अब ओलंपिक में पदक हांसिल करने केलिए पसीना बहा रही हैं. वह चाहती हैं कि भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर जब चमके तब उनकी भी इसमें भागीदारी हो.गरीबी और विषम परिस्थितियों से निकलकर महाद्वीपीय पदक तक पहुंचने का उनका यह सफर प्रेरणा का प्रतीक बन गया है.
छत्तीसगढ़ से चार दशक पहले आंध्र प्रदेश आए प्रवासी श्रमिक परिवार में जन्मी राजिता छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं.महज तीन साल की उम्र में अपने पिता मारिया को खोने के बाद, उनकी मां भद्रम्मा ने भारी आर्थिक संकट के बीच उन्हें पाला.
उनकी खेल प्रतिभा लोयोला इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट सोसाइटी (LITDS) द्वारा संचालित अरुपे हाई स्कूल, कटुकापल्ली में सामने आई.
यहीं सातवीं कक्षा के दौरान फादर येसु रत्नम ने उनकी दौड़ने की क्षमता पहचानी.उन्होंने कहा, "उसमें गति और फोकस था, मैंने उसमें एक चिंगारी देखी."
राजिता ने स्कूल स्तर पर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया और 2016में पहली बार 100 मीटर दौड़ में जीत दर्ज की.
इसके बाद उन्होंने मंगलगिरी के सीके जूनियर कॉलेज में इंटरमीडिएट की पढ़ाई की और फिर 2018 में नेल्लोर स्थित आंध्र प्रदेश स्पोर्ट्स अथॉरिटी (SAAP) में प्रवेश लिया.
वहां कोच वामसी किरण और कृष्ण मोहन के प्रशिक्षण में उन्होंने अभ्यास जारी रखा.वित्तीय कठिनाइयों और जाति प्रमाणपत्र जैसी प्रशासनिक बाधाओं के बावजूद, उन्होंने अपने लक्ष्य से समझौता नहीं किया
.राजिता को पहली बड़ी सफलता 2020 खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में मिली, जब उन्होंने अंडर-17 लड़कियों की 400 मीटर दौड़ में 57.61 सेकंड के समय के साथ रजत पदक जीता.
कोविड महामारी के दौरान जब गुंटूर स्थित टेनविक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बंद हो गया, तब उन्होंने कुछ समय के लिए जमैका के कोच माइक रसेल से प्रशिक्षण लिया.बाद में हैदराबाद में गोपीचंद की माइथरी फाउंडेशन ने उन्हें चुना और उनकी खेल यात्रा को नई दिशा दी.
द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता नागापुरी रमेश की देखरेख में उन्होंने SRM यूनिवर्सिटी-एपी में बीकॉम में दाखिला लेकर पढ़ाई और प्रशिक्षण को संतुलित किया.
इसके बाद वह केरल स्थित SAI कैंप में शामिल हुईं, जहां उन्होंने जमैका के कोच जेरी से उच्चस्तरीय प्रशिक्षण लिया.लगातार बेहतर प्रदर्शन के चलते उन्हें राष्ट्रीय महिला रिले टीम में स्थान मिला.
दक्षिण कोरिया के गुमी में उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर भारत को 4×400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक दिलाया.जीत के बाद उन्होंने फोन पर कहा, “यह मेरे लिए गर्व का क्षण है
.मैं SAI और अपने कोचों की आभारी हूं, जिन्होंने मुझ पर विश्वास जताया.” उनके भाई जोगैया ने भी सरकार से सहयोग की अपील करते हुए कहा, “हमें उस पर गर्व है, लेकिन उसकी आगे की यात्रा के लिए सरकारी मदद जरूरी है.”
SRM यूनिवर्सिटी-एपी के कुलपति प्रोफेसर मनोज के अरोड़ा ने कहा, “राजिता समग्र छात्र विकास की हमारी सोच का सजीव उदाहरण हैं.हमें उनकी आकांक्षाओं का समर्थन करते हुए गर्व हो रहा है.”राजिता की कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर प्रतिभा को सही मार्गदर्शन, अवसर और समर्थन मिले, तो वह किसी भी पृष्ठभूमि से निकलकर वैश्विक मंच पर देश का नाम रोशन कर सकती है.अब उनकी नजरें ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के सपने पर टिकी हैं.