सेराज अनवर/पटना
दहेज़ बड़ा मसअला है.इस सामाजिक कुरीति के कारण कई गरीब लड़कियों की शादी में कठिनाई होती है.यह बुराई किसी एक समुदाय की नहीं,हिन्दू-मुस्लिम दोनों इसके भुक्तभोगी हैं.लेकिन,इसी समाज में कुछ लोग फ़रिश्ता बन कर भी आते हैं.ऐसा मिसाल इनदिनों बिहार के गया से लेकर झारखंड के गढ़वा तक में देखने को मिल रही है.
कन्या विवाह विकास सोसाइटी ने उन बेटियों की शादी कराने का बीड़ा उठाया है,ग़ुरबत की वजह से जिनकी शादियां नहीं हो पा रही.'सामूहिक विवाह'की ज़िम्मेदारी हिन्दू-मुसलमान दोनों मिल कर उठा रहे हैं.
सोसायटी के संस्थापक विकास माली हैं तो संरक्षक मौलाना उमर नूरानी.इस मुहिम का खुशनुमा पहलू यह है कि एक तरफ जहां 50हिंदू लड़कियों की शादी होती है तो दूसरी तरफ 50मुस्लिम लड़कियों के हाथ पीले होते हैं.
बिहार में इस तरह का यह पहला अभियान है जो एक पंडाल के अंदर दो धर्मों की बेटियां की सामूहिक शादियां हो रहीं हैं.एक तरफ़ पंडित जी सात फेरे लगवा रहे होते हैं,तो वहीं पर काजी साहब निकाह पढ़ाते नज़र आते हैं.सभी बेटियों को आशीर्वाद दोनों क़ौम के लोग देने के लिए पहुंचते हैं.
दिसम्बर महीने के सिर्फ एक सप्ताह में आर्थिक रूप से कमजोर 10 I लड़कियों की शादी करायी गयी.पहली बार यह भी देखने को मिला कि कन्या दान के लिए उर्स में रजिस्ट्रेशन कैम्प लगा.संगठन द्वारा सामूहिक विवाह के तहत अब तक 1,3000 लड़कियों की शादी करायी गयी है,जिसमें 4,000 मुस्लिम बच्चियां भी शामिल हैं.हिन्दू-मुस्लिम साझी विरासत का झंडाबरदार संगठन समाज में नज़ीर पेश कर रहा है.
गया में कैंप,गढ़वा में सामूहिक विवाह
आम तौर पर उर्स में फातिहा-दरूद,चादरपोशी और तक़रीर होती है.मगर गया शहर के गेवाल बिगहा स्थित खानकाह बैत उल अनवार ने एक दिसम्बर को हज़रत नुरूल होदा क़ादरी के उर्स के मौके पर अलग ही तस्वीर पेश की.
जिसकी सराहना आज भी हो रही है.उर्स के मौके पर विवाह जागरूकता एवं पंजीकरण शिविर का आयोजन किया गया. इसके लिए एक बड़ा कैम्प भी लगाया गया .जहां इस बाबत उर्स में आए अकीदतमंदों को मौखिक और लिखित तौर पर जानकारी दी गयी.
यहां बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा समेत कई राज्यों से भारी संख्या में श्रद्धालु आये थे.इस बार श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र कन्यादान और सामूहिक विवाह जागरूकता एवं पंजीकरण शिविर रहा.
उर्स में वैसे लोग जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर थे और उनके घरों में लड़कियों की शादी है,लेकिन शादी के मौके पर अपनी लड़कियों के लिए उपहार और भोजन की व्यवस्था करने में मजबूर थे वैसे, लोगों का ब्योरा लिया गया ताकि उनकी बेटियों की शादी 'सामूहिक विवाह समारोह' में की जा सके. यह शिविर 'कन्या विवाह एवं विकास सोसाइटी 'की तरफ से लगाया था.
इस कैंप में रजिस्ट्रेशन के आधार पर 6दिसंबर को झारखंड के गढ़वा जिला में कन्या विवाह विकास सोसाइटी के तरफ से सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया जिसमें 101लड़कियों की बड़े ही धूमधाम से शादी कराई गई.
इस समारोह के सफल आयोजन पर स्थानीय द्वारा अभियान से जुड़े लोगों को सम्मानित किया गया.इस समारोह के दौरान सभी मेहमानों के भोजन की व्यवस्था भी की गयी.गढ़वा में विकास माली के साथ अयूब खान, उषा कुमारी,हसीबुल्लाह अंसारी, महजबीं, राजेश कुमार सिन्हा आदि का आयोजन को सफल बनाने सराहनीय प्रयास रहा
दुल्हन को ये दिये जाते हैं उपहार
उपहार के रूप में दुल्हन को आवश्यक वस्तुएं जैसे बिस्तर, गोदरेज, ट्रंक, गद्दा, रजाई, तकिया, चादर, स्टील पॉट सेट, गैस स्टोव, मिक्सर मशीन, कुकर सहित अन्य सामान और दूल्हा-दुल्हन के कपड़े आदि दिए जाते हैं.
इन सभी की कीमत एक लाख तक है. यह उपहार उन गरीब लड़कियों को भी दिया गया जिनकी शादी उनके घर से हुई. इस सोसायटी में कुछ महीनों तक 250 रुपये फीस के तौर पर जमा करना होता है.
वहीं यदि कोई व्यक्ति अपनी बेटी का विवाह कुछ दिन पहले बिना पूर्व पंजीकरण कराए सामूहिक विवाह समारोह में करना चाहता है तो उससे मात्र 5500 रुपये लिए जाते हैं.पिछले 13 वर्षों में गया जिले के अलावा विभिन्न जिलों में लगभग 13,000 गरीब लड़कियों का विवाह कराया गया है और ख़ास बात यह है कि विवाह में हिन्दू-मुस्लिम एकता की भी मिसाल पेश की जाती है.
एक ओर जहां हिन्दू लड़कियों की शादी पंडितों द्वारा उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार कराई जाती है, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम लड़कियों की शादी उसी स्थान के दूसरे हिस्से में क़ाज़ी द्वारा कराई जाती है.13,000में से 4,000से अधिक मुस्लिम लड़कियों की शादी भी हुई है.
मौलाना उमर नूरानी क्या कहते हैं
इस सोसाइटी का संस्थापक और अभियान का अगुआ विकास माली नाम का एक गैर-मुस्लिम युवक है. हालांकि विकास माली की इस मुहिम में मुस्लिम समुदाय के लोगों की भी बड़ी भागीदारी है .
विकास सोसायटी की यह मुहिम न केवल गरीब लड़कियों के माता-पिता के लिए एक सहारा है बल्कि समाज के लिए एक मशाल ए राह भी है. सामूहिक विवाह समारोह के संरक्षक और ख़ानक़ाह बैत उल अनवार के महत्वपूर्ण सदस्य मौलाना उमर नूरानी बताते हैं कि सामूहिक विवाह के कई फायदे हैं जिससे दहेज़ जैसा अभिशाप खत्म हो जाएगा.
यह इतनी बड़ी समस्या है कि इसके कारण गरीब लड़कियों की शादी समय पर नहीं हो पाती है.इससे गरीब समाज की सबसे बड़ी समस्या विवाह के अवसर पर होने वाले खर्च का समाधान के रूप में है.
साथ ही इसमें एक और बड़ी समस्या का समाधान यह है कि धार्मिक तनाव,नफरत, आपसी दूरियां और एक-दूसरे की खुशियों से दूर होने की समस्या तो खत्म होगी ही, हमारी सदियों पुरानी गंगा जमनी परंपरा, आपसी प्रेम भी कायम रहेगा.
इससे भाईचारा और अंतर-धार्मिक एकता को भी बढ़ावा देना.इस गठबंधन का एक खूबसूरत पहलू यह भी है कि एक तरफ 50हिन्दू लड़कियों की शादी होती है तो दूसरी तरफ 50मुस्लिम लड़कियों का भी निकाह पढ़ाया जाता है.
हम यह भी दिखा रहे हैं कि समाज में एकता का एक पहलू ऐसा भी सम्भव है.इस मुहिम के अगुआ विकास माली के भाई अर्जुन माली ने बताया कि 6 दिसंबर 2023 को सामूहिक विवाह समारोह में 40 मुस्लिम दुल्हनें भी थीं.