कर्बला की सरज़मीं पर लिखी गई इमाम हुसैन की शहादत की कहानी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-06-2025
The story of Imam Hussain's martyrdom was written on the land of Karbala
The story of Imam Hussain's martyrdom was written on the land of Karbala

 

गुलाम क़ादिर

मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, जो दुखद घटनाओं से घिरा हुआ होता है और इसी कारण इसकी शुरुआत एक गमगीन माहौल के साथ होती है. इस महीने को इस्लामी इतिहास में विशेष महत्व प्राप्त है क्योंकि इसमें कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं.2 मुहर्रम को हज़रत हुसैन इब्न अली (रज़ि.) सन् 680 में कर्बला पहुँचे और वहीं उन्होंने अपना डेरा डाला.

यज़ीद की सेना चारों तरफ से उन्हें घेर चुकी थी. जब वह अपने साथियों के साथ कूफा की ओर जा रहे थे, तो उमय्यद सेना ने उन्हें रेगिस्तानी क्षेत्र कर्बला में रुकने को मजबूर कर दिया, जहाँ न पानी था और न ही कोई सुरक्षा की व्यवस्था.

7 मुहर्रम को यज़ीद के आदेश से हुसैन (रज़ि.) और उनके परिवार को पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई, जिससे उनके कैंप में मौजूद लोगों को भूख और प्यास का सामना करना पड़ा. 8 मुहर्रम को हज़रत ज़ैन उल आबिदीन (रज़ि.), जो हुसैन (रज़ि.) के बेटे थे और कर्बला की लड़ाई के एकमात्र जीवित बचे सदस्य थे, उनकी शहादत मानी जाती है.

9 मुहर्रम को हुसैन (रज़ि.) और उमय्यद सेना के बीच अंतिम बातचीत विफल हो गई. उमय्यद कमांडर उमर इब्न साद ने अस्र की नमाज़ के बाद हमला करने का निर्णय लिया लेकिन अन्य लोगों ने उन्हें अगले दिन तक प्रतीक्षा करने को कहा.

उस रात हुसैन (रज़ि.) और उनके साथियों ने इबादत और दुआओं में बिताई. 10 मुहर्रम को, जिसे आशूरा कहा जाता है, कर्बला की ऐतिहासिक और दर्दनाक जंग हुई जिसमें हज़रत हुसैन (रज़ि.) को शहीद कर दिया गया. इससे पहले उनके भाई अब्बास (रज़ि.) को फरात नदी के किनारे शहीद कर दिया गया और उनके परिवार के लगभग सभी पुरुषों को भी शहीद कर दिया गया.

दिन के अंत में उमय्यद फौज ने महिलाओं और बच्चों को बंदी बना लिया और उन्हें दमिश्क, सीरिया ले जाया गया. इसी दिन की एक और ऐतिहासिक घटना यह भी है कि हज़रत मूसा (अलै.) को फिरऔन से निजात मिली थी.

16 मुहर्रम को पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) ने मस्जिद-अक़्सा, यरुशलम को क़िबला बनाया था, यानी वह दिशा जिसमें मुसलमान नमाज़ पढ़ते थे, हालांकि बाद में यह दिशा मक्का स्थित काबा की ओर बदल दी गई. 17 मुहर्रम को "असहाब-ए-फील" यानी हाथी वाली सेना मक्का पहुँची थी, जिसका ज़िक्र कुरआन की सूरह अल-फील में है.

20 मुहर्रम को इस्लाम के पहले मुअज्ज़िन हज़रत बिलाल (रज़ि.) का इंतकाल हुआ. इस पवित्र महीने में रोज़ा रखना अत्यधिक पुण्य का कार्य माना जाता है. एक हदीस के अनुसार, पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) खुद भी 10 मुहर्रम को रोज़ा रखा करते थे.

खासतौर पर 9वीं और 10वीं मुहर्रम का बड़ा महत्व है. 9वीं मुहर्रम की रात को हज़रत हुसैन (रज़ि.) के परिवार को कई दिनों की भूख और प्यास के बाद बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. 10 वीं मुहर्रम को कर्बला की ऐतिहासिक लड़ाई में हज़रत हुसैन (रज़ि.) ने अपने मासूम परिवार और इस्लामी मूल्यों की रक्षा करते हुए जान कुर्बान कर दी। यह बलिदान हमेशा के लिए इस्लामी इतिहास में अमर हो गया है.

मुहर्रम की महत्वपूर्ण तिथियाँ – मुहर्रम के पर्व और घटनाएँ

2 मुहर्रम: हज़रत हुसैन इब्न अली (रज़ि.) ने सन् 680 में कर्बला में प्रवेश किया और वहीं पर अपना डेरा डाला. यज़ीद की सेना चारों ओर से उन्हें घेरे हुए थी। जब वह कूफा की ओर जा रहे थे, तो उमय्यद सेना ने उन्हें रोक लिया और उन्हें कर्बला के वीरान रेगिस्तानी इलाके में डेरा डालने पर मजबूर कर दिया, जहाँ न पानी था, न कोई सुरक्षा.

7 मुहर्रम: यज़ीद के आदेश पर हज़रत हुसैन (रज़ि.) और उनके साथियों के लिए पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई. इसके बाद के दिनों में उनके कैंप में मौजूद लोग भूख और प्यास से बहुत परेशान हो गए.

8 मुहर्रम: हज़रत ज़ैन उल आबिदीन (रज़ि.), जो हुसैन (रज़ि.) के पुत्र थे और कर्बला की लड़ाई में एकमात्र जीवित बचे व्यक्ति थे, की शहादत इसी दिन मानी जाती है.

9 मुहर्रम: सन् 680 में इस दिन हज़रत हुसैन (रज़ि.) और उमय्यद सेना के बीच बातचीत विफल हो गई. उमय्यद कमांडर उमर इब्न साद (जिसकी मृत्यु 686 में हुई) ने अस्र की नमाज़ के बाद हमला करने की योजना बनाई, लेकिन अन्य नेताओं ने उसे अगले दिन तक इंतज़ार करने को कहा. इस रात हुसैन (रज़ि.) और उनके साथी इबादत में लगे रहे.

10 मुहर्रम (आशूरा): यही वह दिन था जब सन् 680 में कर्बला की ऐतिहासिक जंग हुई. इसी दिन हज़रत हुसैन इब्न अली (रज़ि.) को शहीद कर दिया गया, इससे पहले उनके भाई हज़रत अब्बास (रज़ि.) को फरात नदी के किनारे शहीद किया गया और उनके परिवार के अधिकतर पुरुषों को भी उमय्यद सेना ने शहीद कर दिया.

दिन के अंत में उमय्यद फौज ने हुसैन (रज़ि.) के कैंप की महिलाओं और बच्चों को बंदी बना लिया और उन्हें सीरिया की राजधानी दमिश्क ले जाया गया.इसी दिन हज़रत मूसा (अलै.) को फिरऔन से छुटकारा मिला था.

16 मुहर्रम: इस दिन पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) ने यरुशलम की मस्जिद-अक़्सा को क़िबला (नमाज़ की दिशा) के रूप में चुना था. बाद में यह दिशा बदलकर मक्का में स्थित काबा शरीफ़ कर दी गई, जैसा कि कुरआन की सूरह अल-बक़रा की आयत 144 में उल्लेखित है.

17 मुहर्रम: इस दिन "असहाब-ए-फील" (हाथियों वाली सेना) मक्का पहुँची थी. यह घटना कुरआन की सूरह अल-फील में वर्णित है.

 

20 मुहर्रम: इस दिन इस्लाम के पहले मुअज्ज़िन (अज़ान देने वाले) हज़रत बिलाल (रज़ि.) का निधन हुआ.