कई राज्यों में हिंदी बनाम स्थानीय भाषा के तनाव से आंध्र प्रदेश अछूता, हिंदी को मिला सत्ता का साथ

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 26-08-2025
Andhra Pradesh is untouched by the tension between Hindi and local language in many states, Hindi got the support of the government
Andhra Pradesh is untouched by the tension between Hindi and local language in many states, Hindi got the support of the government

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
कई राज्यों में हिंदी बनाम स्थानीय भाषा का मुद्दा सियासी तौर पर उग्र रूप ले रहा है और कुछ स्थानों पर तो इस मुद्दे की आड़ में हिंसक घटनाएं भी हुई हैं। इसके विपरीत आंध्र प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य इससे अछूता नजर आता है. हालांकि कुछ नेता यहां भी गाहे-बगाहे हिंदी बनाम तेलुगु के मुद्दे को तूल देने की कोशिश करते रहे हैं.
 
भाषा विवाद ने देश के बड़े हिस्से को प्रभावित किया है, विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु को, लेकिन इन राज्यों के विपरीत आंध्र प्रदेश विभाजन से पहले भी हमेशा इस तरह के मुद्दों को लेकर शांत राज्य रहा है.
 
अपनी उत्कृष्ट धर्मनिरपेक्षता तथा अन्य संस्कृतियों और भाषाओं के प्रति अनुकरणीय स्वीकृति के लिए प्रसिद्ध आंध्र प्रदेश को अचानक तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा)के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(राजग)सरकार से हिंदी के लिए नए समर्थक मिल गए हैं.
 
जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सरकार के दौरान अंग्रेजी नेताओं के बीच विवाद का विषय थी। जगन मोहन सरकार ने 2019 और 2024 के बीच के कार्यकाल के दौरान अंग्रेजी को बढ़ावा दिया. वहीं मौजूदा सरकार में उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण, मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और अन्य के माध्यम से हिंदी का ध्यान आकर्षित कर रही है.
 
कुछ महीने पहले जनसेना के 12वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष एवं उप मुख्यममंत्री कल्याण ने बिना किसी का नाम लिए तमिलनाडु के ‘‘हिंदी विरोध’’ को लेकर निशाना साधा था.
 
कल्याण ने तमिल फिल्म उद्योग पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि तमिलनाडु हिंदी का स्वागत नहीं करता लेकिन तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करके उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों से पैसा कमाना चाहता है.
 
हाल के दिनों में खुले तौर पर हिंदी का समर्थन कर चुके कल्याण ने हैदराबाद में हाल ही में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि इस भाषा का विरोध करना ‘‘भविष्य की पीढ़ियों के विकास को सीमित करने’’ के समान है.
 
उन्होंने दोनों भाषाओं की रोचक तुलना करते हुए कहा कि तेलुगु भाषा जहां तेलगु भाषियों के लिए ‘मां’ है वहीं हिंदी ‘पेद्दम्मा’ (मौसी) है। उनकी इस तुलना की व्यापक पैमाने पर आलोचना हुई थी.
 
राजग के प्रमुख सहयोगी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडू ने हाल ही में दिल्ली की यात्रा के दौरान कहा था कि भारत में अब ऐसा समय आ गया है, जब कुछ लोग हिंदी सीखने की आवश्यकता पर सवाल उठा रहे हैं। साथ ही उन्होंने रेखांकित किया कि कई भाषाओं के ज्ञान ने ही पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव को महान बनाया था.
 
नायडू ने पूर्व प्रधानमंत्री का संदर्भ देते हुए कहा, “एक विद्वान (राव) 17 भाषाओं में पारंगत थे। अब हम सभी इस बारे में बात कर रहे हैं कि हमें हिंदी क्यों सीखनी चाहिए। उन्होंने न केवल हिंदी सीखी, बल्कि 17 भाषाएं भी सीखीं। इस तरह वे एक महान व्यक्ति बन गए.’’
 
कल्याण ने जनसेना स्थापना दिवस पर अपने उग्र भाषण के बाद हिंदी का समर्थन करते हुए सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, ‘‘मैंने कभी एक भाषा के रूप में हिंदी का विरोध नहीं किया। मैंने केवल इसे अनिवार्य बनाने का विरोध किया था....
 
राजनीतिक विश्लेषक अंजी रेड्डी कहते हैं कि जहां तक ​​आंध्र प्रदेश का सवाल है, तो हिंदी भाषा के मुद्दे का कोई राजनीतिक महत्व नहीं है, ‘‘क्योंकि पिछली शताब्दी में भाषाई राजनीति की शायद ही कोई भूमिका रही है’’, बावजूद इसके कि यह दक्षिणी राज्य 1953 में भाषाई आधार पर अलग होने वाला पहला राज्य था.