मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
मैं खुश किस्मत हूं कि उर्दू मेरी मादरी जबान हैं, जिससे मुझे एक पहचान मिली है. हमारा घराना उर्दू वाला था, जहां से हमें विरासत में उर्दू मिली. जब मैं रेडियो पर उर्दू में बोलता हूं, तो लोग ज्यादा पसंद करते हैं. ये मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि उर्दू जबान अगर मेरी मादरी जबान नहीं होती, तो मैं रेडियो पर मकबूल नहीं होता. ये बातें रेडियो के दुनिया के मकबूल आर जे नावेद ने जश्न ए रेख़्ता के प्रोग्राम में कहीं.

उन्होंने ने कहां कि मैं लोगों से ही उर्दू सिखा हूं. आस-पास के लोगों की फितरत से सीखा हूं, आप उर्दू के लिए लोगों को पढ़िए, मैंने पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान से उर्दू को सीखी है, बल्लीमारान के इलाके में एक मोहल्ला है, जहां से मैंने उर्दू सीखी है.
रेडियो की बात
आरजे नावेद ने रेडियो के एक प्रोग्राम को याद करते हुए कहा कि एक बार लखनऊ से एक लड़के ने प्रोग्राम के दौरान फोन किया, हालांकि मैं दौरान-ए-प्रोग्राम किसी का फोन नहीं लेता हूं, लेकिन मैंने जब कॉल रिसीव किया, तो उससे सिर्फ इसलिए बात की कि वह उर्दू में बात कर रहा था.

नई युवा पीढ़ी के हवाले से जावेद ने कहा कि उर्दू में आप बात करें, तो कोई तकलीफ नहीं होती है. बहुत खूबसूरत जुबान उर्दू है. आप अपनी जुबान को जबान रखिए. पूरी दुनिया में लोग उर्दू सीख रहे हैं.
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