साकिब सलीम
‘‘अगर मेहरअली जीवित होते, तो कोई नहीं जानता कि वे क्या कर सकते थे. यहां तक कि उनके शुरुआती दिनों में भी उनका नाम जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस के नाम के बाद ही लिया जाता था... मैं दूसरों के बारे में नहीं जानता, लेकिन मेरे लिए यूसुफ का समर्पित जीवन हमेशा एक प्रेरणा रहेगा, गांधीजी के बाद.’’ जयप्रकाश नारायण ने यह बात मुंबई के सबसे युवा महापौर और भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त क्रांति के निर्माता यूसुफ मेहरअली की मृत्यु के बाद कही थी.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश जेल में हुई स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के परिणामस्वरूप 2 जुलाई 1950 को यूसुफ मेहरली की 44 वर्ष की आयु में युवावस्था में ही मृत्यु हो गई थी. वे जल्दी ही मुंबई और भारत में छात्र आंदोलन में शामिल हो गए और उसका नेतृत्व किया. एक उत्साही समाजवादी, मेहरली एक महान संगठक और वक्ता थे. 1927 में साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन के दौरान वे प्रमुखता से उभरे.
शाही सरकार के खिलाफ युवाओं को संगठित करने के लिए मेहरली ने बॉम्बे यूथ लीग की शुरुआत की थी. राजनीतिक आंदोलन की धमकियों के कारण साइमन कमीशन भारी सुरक्षा के बीच भारत पहुंचा.
मुंबई बंदरगाह पर कमीशन के सदस्यों तक पहुंचना एक कठिन काम था. इसलिए, मेहरली अपने साथियों के साथ कुली की पोशाक पहनकर उस बंदरगाह में दाखिल हुए जहां कमीशन को ले जाने वाला जहाज पहुँचना था.
जैसे ही कमीशन जहाज से उतरा, उन्होंने काले झंडे दिखाने शुरू कर दिए और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए. इस नारे ने भारतीय युवाओं की कल्पना को जकड़ लिया. पूरे देश में लोगों ने इस नारे को लगाया, दीवारों पर इसे लिखा और विरोध दर्ज कराने के लिए पतंग उड़ाई, बिना यह जाने कि मुंबई में एक युवक ने इसे गढ़ा था.
उदय गति तेज थी. मेहरअली एक महत्वपूर्ण समाजवादी विचारक और राजनीतिज्ञ बन गए. महात्मा गांधी के साथ उनकी निकटता जगजाहिर थी. अपने संस्मरणों में, बर्त्रम डेविड वोल्फ ने लिखा, ‘‘जब उन्होंने मुझसे गांधी के बारे में बात की, तो मुझे एहसास होने लगा कि स्नेह और अच्छे स्वभाव वाली अंतरंगता का एक गर्म बंधन था, जो यूसुफ को उनके साथ एक ऐसे रिश्ते में बांधता था, जो पिता और पुत्र, गुरु और शिष्य, दोस्त और दोस्त, असमान भागों में मिश्रित था.... उनके दिलों में सामान्य नैतिक सिद्धांत और गहरे स्नेह का एक बंधन था, और एक गर्म बंधन जो एक समर्पित शिष्य को एक महान शिक्षक से जोड़ता है.’’
कोई आश्चर्य नहीं, जब महात्मा गांधी ने 1942 में एक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया, तो मेहरअली उनके विश्वसनीय सलाहकार बन गए. उन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की और साथ ही आंदोलन का नाम भी गढ़ा, भारत छोड़ो आंदोलन, जिस पर गांधी जी सहमत हुए.
शिरुभाऊ लिमये ने बाद में याद किया, ‘‘अगस्त 1942 से कुछ महीने पहले, समाजवादी कार्यकर्ताओं ने पुणे में एक गुप्त शिविर लगाया था. इसे सेनापति बापट और यूसुफ मेहरअली ने संबोधित किया था. नेताओं की सामूहिक गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए, शिविर चलाने वालों ने भूमिगत संघर्ष की कुछ योजनाएं बनाईं. शीर्ष नेता सलाखों के पीछे जा सकते थे, लेकिन अन्य प्रमुख कार्यकर्ता भूमिगत हो गए.’’
एक अन्य स्वतंत्रता सेनानी प्रेम भसीन ने भी भावनाओं को साझा किया. उन्होंने लिखा, ‘‘यूसुफ मेहरअली ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर सबसे बड़े अहिंसक हमले के लिए ‘मैदान तैयार करने’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
अपने व्यापक संपर्कों और बॉम्बे के मेयर के रूप में अपनी स्थिति के साथ, उन्हें सरकार की योजनाओं का अंदाजा था और उन्होंने समय रहते कई लोगों को भूमिगत होने के लिए प्रेरित किया था.
पंजाब सरकार की गृह राजनीतिक फाइल, एफ. नं. 18/8/42 को यह रिपोर्ट मिली थी - ‘‘इस बीच सीएसपी ने कांग्रेस के कदम का पूरी तरह से पालन करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी. पूरन चंद आजाद, जिन्हें बॉम्बे भेजा गया था, अखिल भारतीय कांग्रेस समाजवादी पार्टी के सचिव यूसुफ मेहरअली के निर्देशों के साथ लौटे थेकि सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं को भूमिगत हो जाना चाहिए और व्यापक हिंसा शुरू करनी चाहिए.’’
मधु दंडवते ने यह भी याद किया, ‘‘जब बादल गरज रहे थे और बिजली चमक रही थी. बंबई के युवा मेयर और तूफानी समाजवादी नेता यूसुफ मेहरली ने मंच से दहाड़ते हुए कहा - ‘आने वाले स्वतंत्रता संग्राम में, जेलों को भरने के लिए गिरफ्तारियां देने का सामान्य कार्यक्रम नहीं होगा,
बल्कि हमें भारत में ब्रिटिश सरकार के पूरे प्रशासन को पंगु बनाना होगा.’ ये तीखे शब्द दर्शकों में से कई युवा दिमागों में घर कर गए. ..... गांधीजी ब्रिटिश शासकों के खिलाफ जो निर्णायक संघर्ष शुरू करना चाहते थे, उसके निहितार्थों को पूरी तरह से समझते हुए, गतिशील समाजवादी नेता यूसुफ मेहरली ने राष्ट्रीय नेताओं की अपेक्षित गिरफ्तारी की स्थिति में भूमिगत प्रतिरोध की अग्रिम योजना बनाने के लिए समाजवादी कार्यकर्ताओं के शिविरों की व्यवस्थित रूप से योजना बनाई थी.’’
यह इतिहास की कोई दुर्घटना नहीं थी कि समाजवादियों ने 1942 की क्रांति में भूमिगत गतिविधियों को एक केंद्र प्रदान किया. बेशक ब्रिटिश साम्राज्य के ऐसे दुश्मन को जेल में ‘विशेष देखभाल’ से निपटना पड़ा होगा. 1942 में जेल में मेहरअली को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगीं. समाचार पत्रों ने उनकी मृत्यु के बारे में बताया,
‘‘श्री मेहरअली को पिछले सप्ताह हृदय संबंधी परेशानी के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जो उन्हें 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान हिरासत में लिए जाने के बाद हुई थी.’’ इस तरह, मेहरअली ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध अंतिम जन आंदोलन का नेतृत्व किया और इस दौरान अपने प्राणों की आहुति दे दी.