कुर्रतुल ऐन हैदर : 15 हजार एकड़ जमीन के बदले मांग ली छोटे भाई की जान की माफी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-07-2023
कुर्रतुल ऐन हैदर : 15 हजार एकड़ जमीन के बदले मांग ली छोटे भाई की जान की माफी
कुर्रतुल ऐन हैदर : 15 हजार एकड़ जमीन के बदले मांग ली छोटे भाई की जान की माफी

 

madhupअशोक मधुप

0आज भाई− भाई की जान के प्यासे हैं. थोड़ी सी रकम और जमीन के लिए अपने सगे भाई का कत्ल करते से भी नहीं चूकते. मगर बिजनौर जनपद में छोटे भाई को फांसी से बचाने के लिए नहटौर के जमींदार बंदे अली ने  अपनी धेवती की जान की झूठी कसम ही नहीं खाई, अपितु उपहार में मिल रही  15 हजार  एकड़ जमीन सरकार से नहीं ली. उसके बदले भाई की जानकी बख्शीश मांग ली. भाई की जान तो माफ हो गई किंतु  पुश्तैनी  जमीन जब्त हो गई.

 विख्यात  उर्दू लेखिका कुर्रतुल ऐन हैदर के दादा बंदे अली रिटायर्ड तहसीलदार और नहटौर (बिजनौर) उत्तर प्रदेश के जमींदार थे. 1857 के गदर के समय वे नहटौर में रहकर अपनी जमींदारी का काम संभाल रहे थे.
 
छोटा भाई अहमद अली अंग्रेज फौज में मेरठ में तैनात था.1857 के विद्रोह में अहमद अली  बागी हो गया. अपने साथियों के साथ दिल्ली पंहुच गया. बहादुर शाह जफर को दिल्ली का सम्राट घोषित किया जा चुका था. 
 
वह उनकी फौज में शामिल हो गया .अहमद अली  अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ाई में पूरी ताकत से लड़ा. बगाबत के असफल और बहादुर शाह जफर के गिरफ्तार होने के बाद अहमद अली भी गिरफ्तार हो गया.
 
उसे फांसी की सजा का हुक्म दिया गया.वह किसी तरह से जेल  से भाग  निकला.बचते −बचाते नहटौर आ गया. रात में घर पहुंचा.दरवाजा खटखटाया. भाई ने दरवाजा खोला तो सलाम किया. कहा कि उन्हें फांसी की सजा  हुई है.
 
वह किसी तरह से  जेल से भाग आया. आपसे मिलने आए हैं.  हंसते हुए कहा कि अब आबे जमजम पीने की तैयारी है. हमारे  वांरट निकले हैं. अंग्रेज फौज को उनकी बुरी तरह तलाश है.
 
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बदं अली ने छोटे भाई  का हाथ पकड़ा और घर के तहखाने में ले जाकर छिपा दिया. चुपके से घर से लाकर तहखाने में खाना भी खिलाया.दिन में अंग्रेज फौज ने उनका घर घेर  लिया.
 
कहा कि छिपाया मुलजिम हमें सौंपो.बंदे अली  हंसे और फौज के बड़े अधिकारी मेजर मेक डाँनल्ड  को अपने साथ घर में ले गए; मेजर जब तक कुछ समझता ,वह तहखाने में छिपाए अंग्रेज अधिकारी कर्लटन और उनके परिवार की दो महिलाओं को तहखाने से निकालकर ले लाए.
 
कहा कि उन्होंने इन्हे छिपाया हुआ है.बगावत शुरू होते समय से बागियों से बचाने के लिए उन्होंने इन तीनों को  अपने घर के तहखाने में छिपा रखा था. लगता यह है कि  इनके घर में दो तहखाने थे.
 
एक में इन्होंने अपने फरार बागी भाई को  छिपाया था.  दूसरे में यह अंग्रेज फैमिली थी.मेजर इस परिवार को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ; इस परिवार की जान बचाने के लिए उसने बंदे अली की   तारीफ की. साथ ही कहा कि उन्हें उनका बागी भाई चाहिए. उन्हें सूचना है कि वह दिल्ली की जेल से भागकर यहां आया है.
 
बंदे अली ने समझाया – कैसी बात करतें हैं  उनका भाई यहां क्या गिरफ्तार होने आएगा. वह बचने के लिए चंडी की पहाड़ी  में जाएगा या नेपाल.  उनके उत्तर से मेजर पर असर पड़ा, किंतु उनके साथ का  लैफ्टिनेंट  तैयार नहीं था।  उसने कहा कि उन्हें पक्की सूचना है कि वह रात यहां आया है.घर की तलाशी लेनी पड़ेगी.
 
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बंदे अली ने उन्हें  अपने खानदान की अंग्रेजों के प्रति  वफादारी और इज्जत का वास्ता दिया। कहा कि तलाशी से उनके परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.  कुर्रतुल एन हैदर अपनी किताब कारें जहां दराज है, में अपने परिवार का एक हजार साल का इतिहास लिखती हैं.
 
इसी किताब के पहले भाग एक में वह यह किस्सा भी बताती हैं.कहती हैं   कि उनके दादा  बंदे अली ने  कहा कि हम मुसलमान ईमान के बड़े पक्के होते हैं.हम झूठ नहीं  बोलते.  बात करते समय उनकी गोद में उनकी बेटी का लड़का अजीज हैदर अली था. 
 
उन्होंने हैदर अली की जान की कसम खाई. इनके यहां छिपा कर्लटन इनसे बहुत प्रभावित था. घर में वह काफी समय से छिपा था.  उसे भी पता नही था कि घर में कोई और भी छिपा है. उसने इनकी बात की ताइद की. मेजर मेक डानल्ड भी इनकी बात से मुतमइन हुआ. हाथ मिलाया  और यह कहकर चला गया कि उन्हें गलत सूचना मिली है.
 
विद्रोह खत्म हो गया. अंग्रेजों का देश पर पुनः कब्जा हो गया.एक दिन अंग्रेज कमिश्नर ने इस बगावत के समय उनकी मदद करने वालों को सम्मानित करने और इनामात देने के लिए दरबार लगाया.
 
अंग्रेज अधिकारी कर्लटन और उनके परिवार की दो महिलाओं को अपने घर में छिपाए रखने के लिए बंदे अली को  चांदी की प्लेट में रखकर खान बहादुर का खिताब और बागियों की जब्तशुदा 15  हजार  एकड़ जमीन के पेपर इन्हें कमिश्नर ने  दिए  . जब्तशुदा  जमीन छोटी  रियासत के बराबर थी.
 
इन्होंने उपहार में मिली  प्लेट मेज पर रख दी. अपने अंगरखे से भाई की गिरफ्तारी का वारंट निकाला. कहा कि उन्हें ये जागीर नहीं चाहिए.  उनके भाई को माफ कर दिया जाए. वारंट देख  और इनकी बात सुन अंग्रेज कमिश्नर बहुत गुस्सा हुआ.
 
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उसने कहा कुछ नहीं. बंदे अली कुर्सी पर बैठ गए. कार्यक्रम आगे बढ़ा. इनके मन में धुक− धुक हो रही थी. सोच रहे थे, कि पता नही अब क्या होगा ॽ कार्यक्रम में शेरकोट और हल्दौर के चौधरियों को राजा का खिताब,अमीर खान के हमले में अंग्रेजों की मदद करने के लिए ताजपुर के चौधरी को राजा बहादुर ,उनके बेटे श्याम सिंह को राजा साहब का खिताब दिया गया.
 
दरबार खत्म हुआ. बंदे अली को दिया जाने वाला खान बहादुर का खिताब और जायदाद के पेपर अंग्रेज कमिश्नर ने रख लिए. कुछ दिन में अहमद अली की गिरफ्तारी के वांरट कैंसिल होने के आदेश जारी हो गए.
 
 विख्यात  उर्दू लेखिका  कुर्रतुल ऐन हैदर अपनी किताब कारे जहां दराज है, में इस घटना  का विस्तार से जिक्र करती हैं. कहती हैं कि बंदे अली ने अपने छोटे भाई की जान के बदले खान बहादुर का खिताब और उपहार में मिल रही 15 हजार एकड़ जमीन छोड़ दी.
 
इतना ही नही इसके बदले अंग्रेज से उनके परिवार की पुश्तैनी जायदाद भी ज्ब्त कर ली. वे यह भी कहती हैं कि गोद में लिए बालक जिस हैदर अली की बंदे अली ने कसम खाई थी,  उसकी मौत कसम खाने के कुछ दिन बाद ही हो गई थी.
 
(लेखक   वरिष्ठ  पत्रकार हैं)