हर बीप में जिंदा उम्मीद: फिलाडेल्फिया की ICU डॉक्टर डॉ. फातिमा डॉलर

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 08-11-2025
Hope alive with every beep: Dr. Fatima Dollar, an ICU doctor in Philadelphia.
Hope alive with every beep: Dr. Fatima Dollar, an ICU doctor in Philadelphia.

 

मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली

फिलाडेल्फिया के टेंपल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल की गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में बीप… बीप… बीप की आवाज़ के बीच खड़ी हैं — डॉ. फातिमा डॉलर, दाऊदी बोहरा समुदाय की वह महिला चिकित्सक जिनके लिए ICU सिर्फ कार्यस्थल नहीं, बल्कि “दूसरा घर” बन चुका है। हर पल जहाँ जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष होता है, वहीं डॉ. फातिमा शांति और दृढ़ता के साथ इंसानियत की सबसे कठिन परीक्षा देती हैं।

ह्यूस्टन में पली-बढ़ी डॉ. फातिमा डॉलर बचपन से ही डॉक्टरों के बीच रहीं। उन्होंने देखा कि कितने लोग अंततः ICU में पहुँचते हैं, जहाँ एक छोटी-सी चूक ज़िंदगी की डोर तोड़ सकती है। यहीं से उनके भीतर एक दृढ़ निश्चय जगा, सिर्फ डॉक्टर नहीं, दयालु चिकित्सक बनने का।

मेडिकल स्कूल तक की उनकी राह आसान नहीं थी। वेटलिस्ट में नाम देखकर उन्होंने लगभग उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन नियति को कुछ और मंज़ूर था। क्लास शुरू होने से एक हफ्ता पहले फ़ोन आया, “एक सीट खाली हुई है, हम आपको चाहते हैं।” यही कॉल उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया।

बाद में उन्होंने टेंपल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में पल्मोनरी क्रिटिकल केयर की फ़ेलोशिप की, और तभी से ICU उनकी पहचान बन गया। वह कहती हैं, “ICU सिर्फ चिकित्सा नहीं है, यह मन, दिल और आत्मा की परीक्षा है। यहाँ निर्णय तुरंत लेने होते हैं, और हर निर्णय किसी का जीवन तय कर सकता है।”

एक रात का ज़िक्र करते हुए डॉ. फातिमा बताती हैं, “एक बुज़ुर्ग महिला की हालत अचानक बिगड़ गई। मॉनिटर की अलार्म गूंजने लगीं, नर्सें दौड़ पड़ीं। तभी उनके परिवार का एक सदस्य सदमे में वहीं गिर पड़ा। उस क्षण पूरे कमरे में अफरातफरी थी। लेकिन मुझे शांत रहना था। अगर हाथ काँपते, तो शायद एक जान चली जाती।”

Dr Fatima Dollar with a patient

वह कहती हैं, “ICU में सबसे कठिन हिस्सा मशीनों या दवाओं से नहीं, बल्कि भावनाओं से जुड़ा है। जब रात के अंधेरे में किसी परिवार को यह बताना पड़ता है कि उनका प्रिय अब नहीं रहा — उस समय शब्द बोझ बन जाते हैं। लेकिन हमें कहना पड़ता है, पूरी संवेदना के साथ।”

उनके अनुसार, सबसे अच्छे चिकित्सक वही हैं जिनमें भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence) होती है। “डॉक्टर होना सिर्फ इलाज करना नहीं है, बल्कि यह जानना है कि कब चुप रहना है, कब किसी के दुख के साथ बस मौन में बैठना है,” वह कहती हैं।

ICU का तनाव भारी होता है, लेकिन डॉ. फातिमा ने अपने जीवन में संतुलन बनाना सीख लिया है। उनका सहारा है  उनका ईमान और उनका विश्वास। “क़ुरान पढ़ना मुझे शांति देता है, उद्देश्य की याद दिलाता है,” वह मुस्कराते हुए कहती हैं।

वह मानती हैं कि मेडिकल छात्रों को सिर्फ अंकों और रैंक से आगे बढ़कर मानवता को समझना चाहिए। “यदि आपका मन स्थिर है, तो आप बेहतर डॉक्टर बनेंगे। चिकित्सा पूर्णता नहीं, बल्कि संतुलन की कला है,” उनका कहना है।

डॉ. फातिमा तकनीकी रूप से भी अग्रणी हैं। अपने शोध में वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग फेफड़ों के स्कैन विश्लेषण और रोग की प्रगति को समझने में करती हैं। लेकिन वह साफ़ कहती हैं , “AI डॉक्टर की जगह नहीं ले सकता। यह एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन यह विश्वास या करुणा नहीं दे सकता। यह किसी का हाथ नहीं पकड़ सकता।”

उनका मानना है कि सही उपयोग से AI डॉक्टरों को राहत दे सकता है ताकि वे अपने असली काम — मरीजों के साथ मानवीय जुड़ाव — पर अधिक ध्यान दे सकें।

ICU में बिताए वर्षों ने डॉ. फातिमा को जीवन का गहरा अर्थ सिखाया है। “हम परिणाम को हमेशा नियंत्रित नहीं कर सकते,” वह कहती हैं, “लेकिन हम अपने दृष्टिकोण को नियंत्रित कर सकते हैं — विनम्रता, कृतज्ञता और मानवता के साथ।”

वह मानती हैं कि हर सफलता और हर असफलता, दोनों ही एक सीख हैं। “कभी हम किसी की जान बचाते हैं, कभी नहीं। पर वहाँ उपस्थित रहना ही सबसे बड़ा विशेषाधिकार है।”

और अपने अनुभवों से उन्होंने एक सार्वभौमिक संदेश निकाला है,“आपको परिपूर्ण होने की ज़रूरत नहीं है। बस कोशिश करते रहिए। असफलता भी आपको आगे बढ़ना सिखाती है। जीवन में, जैसे ICU में, हम परिणाम नहीं, लेकिन अपनी उपस्थिति नियंत्रित कर सकते हैं। और जब आप पूरे दिल से हर बार उपस्थित होते हैं, तो आप वहीं पहुँचते हैं, जहाँ आपको होना चाहिए।”

फिलाडेल्फिया के इस ICU में हर बीप, हर सांस, हर पल  डॉ. फातिमा डॉलर के समर्पण की गवाही देता है। वह सिर्फ मरीज़ों को नहीं, बल्कि आशा को जिंदा रखने वाली डॉक्टर हैं, जो कहती हैं,“यह पेशा मुझे बार-बार याद दिलाता है , इंसानियत ही चिकित्सा का असली सार है.”